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    यूपी BJP में नए अध्यक्ष की तलाश तेज, अखिलेश के PDA फॉर्मूले को चुनौती देने की तैयारी; इन नामों पर चर्चा

    By JITENDRA SHARMAEdited By: Abhishek Pratap Singh
    Updated: Sat, 29 Nov 2025 09:58 PM (IST)

    भाजपा उत्तर प्रदेश में अध्यक्ष पद के लिए अप्रत्याशित निर्णय ले सकती है। पार्टी दलित-पिछड़ों की राजनीति के बीच, ब्राह्मणों को साधने या किसी महिला नेता ...और पढ़ें

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    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह। (फाइल फोटो)

    जितेंद्र शर्मा, नई दिल्ली। बीते कुछ वर्षों में अपने निर्णयों से हतप्रभ करती रही भाजपा इस बार उत्तर प्रदेश के लिए पार्टी अध्यक्ष के चयन में भी ऐसा कुछ कर सकती है। दलित-पिछड़ों की राजनीति पर चल रही दलीय प्रतिस्पर्धा के कारण स्वाभाविक रूप से कुछ नेताओं के नाम दावेदारी की चर्चा में हैं, लेकिन पार्टी में अंदरखाने दो और विकल्पों पर सुगबुगाहट तेज हुई है।

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    चर्चा है कि गठबंधन सहयोगियों और जिलाध्यक्षों के सहारे जमीन पर जातीय समीकरण साध चुकी भाजपा सूबे के 20 प्रतिशत सवर्णों में सबसे अधिक भागीदारी वाले ब्राह्मणों को साधने के लिए 2017 की तरह किसी ब्राह्मण को भी संगठन की कमान सौंपने का दांव चल सकती है या फिर ऐसी महिला नेता को आगे लाया जा सकता है जो कई समीकरणों को एक एक ही साथ साध सकती हैं।

    भाजपा कर रही जातीय समीकरण साधने की कोशिश

    उत्तर प्रदेश में वर्ष 2027 के प्रारंभ में विधानसभा चुनाव होने हैं जिसमें उसके सामने समाजवादी पार्टी की चुनौती है। 2024 के लोकसभा चुनाव में अपने पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक यानी पीडीए फार्मूले से सपा ने भाजपा को जोरदार झटका दिया है। इसे देखते हुए ही भाजपा ने गहन विचार मंथन के बाद संगठन सृजन किया है। 98 संगठनात्मक जिलों में 84 के जिलाध्यक्ष घोषित किए जा चुके हैं। इनमें 45 सवर्ण, 32 अन्य पिछड़ा वर्ग और सात अनुसूचित जाति से अध्यक्ष बनाकर जातीय समीकरण साधने का प्रयास किया है।

    प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा कर सकती है भाजपा

    अब माना जा रहा है कि बहुत जल्द पार्टी प्रदेश अध्यक्ष की भी घोषणा कर सकती है। इस बीच दावेदारी की अटकलों ने फिर जोर पकड़ा है। पिछड़ा वर्ग से प्रदेश सरकार में मंत्री धर्मपाल सिंह, केंद्रीय मंत्री बीएल वर्मा, सांसद बाबूराम निषाद सहित कई नाम चर्चा में चल रहे हैं तो दलितों में पूर्व केंद्रीय मंत्री रामशंकर कठेरिया और एमएलसी विद्या सागर सोनकर के नाम प्रमुखता से लिए जा रहे हैं।

    अखिलेश के पीडीए फॉर्मूले को ध्वस्त करने में जुटी भाजपा

    इस बीच पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारी ने संभावना जताई कि आवश्यक नहीं कि भाजपा पीडीए की उस पिच पर खेले, जो सपा मुखिया अखिलेश यादव ने बनाई है। चूंकि, भाजपा ने विपक्ष के जातीय दांव को बिहार में निष्फल कर दिया है, इसलिए पार्टी को सबसे अधिक विश्वास मोदी मैजिक और पीडीए वर्ग से ही आने वाले बड़े लाभार्थी वोटबैंक पर है।

    पार्टी पदाधिकारी के अनुसार, दलित-पिछड़ों की उफान लेती राजनीति में विपक्ष द्वारा ब्राह्मणों की भाजपा से नाराजगी के मुद्दे को भी हवा दी जाती है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यूं तो संत होने के नाते जाति के दायरे में नहीं आते, लेकिन विपक्ष ही उन्हें ठाकुर बताता है तो इस वर्ग का प्रतिनिधित्व हो जाता है। करीब 12 प्रतिशत ब्राह्मण आबादी को साधने के लिए जैसे 2017 के चुनाव में महेंद्र नाथ पांडेय को अध्यक्ष बनाया गया था, वैसे ही इस वर्ग से कोई चेहरा आ सकता है।

    महिला को भी सौंपी जा सकती है अध्यक्ष पद की कमान

    इसके अलावा पार्टी में एक सुगबुगाहट तेजी से बढ़ी है कि बिहार की सफलता में महिला मतदाताओं की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए भाजपा यूपी में पहली बार किसी महिला को भी अध्यक्ष बनाने पर विचार कर सकती है। इनमें साध्वी निरंजन ज्योति भी एक दावेदार मानी जा रही हैं जो आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करने के साथ हिंदुत्व और पिछड़े वर्ग की चेहरा हैं।

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