ओडिशा विधानसभा में ‘वंदे मातरम्’ को लेकर विवाद, विपक्ष ने किया वाकआउट
ओडिशा विधानसभा में 'वंदे मातरम्' गीत को लेकर विवाद हो गया। विपक्ष ने पूरे गीत को बजाने के विरोध में सदन से वाकआउट किया। इस घटना ने राजनीतिक माहौल गरमा ...और पढ़ें
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ओडिशा विधानसभा में हंगामा। फाइल फोटो
जागरण संवाददाता, भुवनेश्वर। ‘वंदे मातरम्’ को लेकर ओडिशा विधानसभा में भी गहमागहमी रही। मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने कहा कि यह गीत हमें संघर्षपूर्ण स्वतंत्रता आंदोलन की याद दिलाता है। यह राष्ट्रगीत हमारी नसों में बहते रक्त की गति और हमारी सांसों की लय से जुड़ा हुआ है। जैसे कोई साधारण साहित्यकार कोई संकलन रचता है, बंकिमचंद्र वैसे साधारण लेखक नहीं थे।
‘वंदे मातरम्’ हमें स्वाधीनता संग्राम के संघर्षों की याद दिलाता है। यह राष्ट्रगीत शब्दों में जीवन भर देता है, हर पंक्ति में अग्नि जगा देता है। पहली बार भारतभूमि को भारत माता के रूप में चित्रित करते हुए यह गीत लिखा गया था। लोगों के बीच इसने एक क्रांतिकारी चेतना पैदा की थी। इसलिए, ‘वंदे मातरम्’ केवल एक गीत नहीं, भारत की आत्मा है।
‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर ओड़िया भाषा, साहित्य और संस्कृति मंत्री सूर्यवंशी सूरज ने मंगलवार को विधानसभा में एक विशेष संकल्प प्रस्तुत किया। चर्चा में हिस्सा लेते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद से ‘वंदे मातरम्’ को राष्ट्रगीत का सम्मान मिला है, लेकिन इसके महत्व को कम करने के लिए कुछ स्वार्थी समूह लगातार प्रयास कर रहे हैं। इसलिए प्रधानमंत्री ने एक बार फिर इन भावनाओं को जगाने के लिए ‘वंदे मातरम्’ जैसे राष्ट्रगीत को उत्सव के रूप में मनाने का निर्णय लिया है।
उन्होंने कहा कि अलग-अलग भारतीय भाषाओं में देशभक्ति गीतों के माध्यम से अंग्रेज सरकार के खिलाफ संघर्ष जारी था, लेकिन बंकिमचंद्र के ‘वंदे मातरम्’ का आकर्षण बिल्कुल अलग था। जाति, धर्म, वर्ग—सबसे परे हर आंदोलनकारी की यही आवाज थी। आंदोलनकारी ‘वंदे मातरम्’ गाते हुए पुलिस की गोलियों से हंसते-हंसते शहीद हो जाते थे, या मुस्कुराते हुए फांसी के तख्ते पर झूल जाते थे। क्योंकि ‘वंदे मातरम्’ सिर्फ राष्ट्रीयता का गीत नहीं, देश-माता की वंदना है।
भारत और भारतीयता हमारे अस्तित्व की जड़ हैं। जाति-धर्म से ऊपर हम सभी भारतीय हैं। महान भारतीयता का मंत्र 140 करोड़ लोगों को एकता में बांधकर रखता है।
मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि हम सभी विधायकों, विधायिकाओं और सांसदों के लिए यह ‘वंदे मातरम्’ के प्रति ऋण स्वीकार करने का पवित्र पर्व है। ‘वंदे मातरम्’ की ध्वनि सुनकर देशप्रेम की ज्वाला नसों में दौड़ उठती है, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि इस प्रेरणादायक राष्ट्रीय गीत को टुकड़े-टुकड़े कर दिया गया और किसी को खुश करने के लिए केवल दो पदों को ही राष्ट्रगीत का दर्जा दिया गया—यह लोगों से छिपा नहीं है।
मैं आज तक यह नहीं समझ पाया कि मां के चरणों में वंदना करने, मां का यशगान करने में झिझक किस बात की? ‘वंदे मातरम्’ और ‘भारत माता’ जाति और धर्म से कहीं ऊपर हैं। ‘वंदे मातरम्’ विभाजन का नहीं, देश को एक करने का मंत्र है।
चर्चा में भाग लेते हुए विपक्ष के उपनेता प्रसन्न आचार्य ने कहा कि ‘वंदे मातरम्’ केवल एक गीत नहीं, भारत की आत्मा, प्राण और पहचान है। यह पूरे देश को जोड़ने वाला गीत है। यह हमेशा भारतीयों की आत्मा को जागृत करता रहेगा। इसे लेकर विभाजन नहीं होना चाहिए। संविधान में इस गीत की पहली दो पंक्तियों को ही मान्यता मिली है। संविधान ने जो दिशा दी है, उसका पालन करना हम सबका कर्तव्य है।
कांग्रेस विधायक दल के नेता रामचंद्र काडम ने कहा कि जब देश में गंभीर परिस्थितियां पैदा होती हैं, तो उनसे ध्यान हटाने के लिए भाजपा सरकार उग्र राष्ट्रवाद को हथियार बनाती है। देश के गौरवशाली इतिहास को कलंकित करने का प्रयास नहीं होना चाहिए। ‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्ष का उत्सव स्वागतयोग्य है, लेकिन इसे राजनीतिक रंग नहीं दिया जाना चाहिए।
सभी पद बजाने को लेकर विवाद
मुख्यमंत्री के वक्तव्य के बाद संकल्प सर्वसम्मति से पारित हुआ। लेकिन विधानसभा में ‘वंदे मातरम्’ के सभी पद बजाने को लेकर विवाद खड़ा हो गया। गीत के दो पद बजाए जाने के बाद बीजद और कांग्रेस दोनों ने सदन से वाकआउट किया।
विपक्ष के उपनेता आचार्य ने कहा, हम ‘वंदे मातरम्’ का सम्मान करते हैं, लेकिन संविधान सर्वोपरि है। जब सरकारी कार्यक्रमों या विधानसभा में गीत गाया जाएगा, तब संविधान द्वारा मान्य गीत का ही पालन करना चाहिए। हम इस गीत का सम्मान करते हैं, परंतु संविधान के नियमों के अनुसार।

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