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    हड्डियों की मरम्मत में मददगार प्रोटीन पर NIT ने की रिसर्च, हड्डी के फ्रैक्चर और रोगों का होगा उपचार

    Updated: Wed, 13 Aug 2025 06:19 PM (IST)

    राउरकेला एनआईटी के शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि मानव शरीर में मौजूद प्राकृतिक शर्करा जैसे अणु हड्डियों के निर्माण और मरम्मत के लिए जिम्मेदार बोन मॉर्फोजेनेटिक प्रोटीन-2 के व्यवहार को कैसे प्रभावित करते हैं। बायोकैमिस्ट्री में प्रकाशित शोध के अनुसार इस खोज का उपयोग हड्डी और उपास्थि पुनर्जनन बेहतर इम्प्लांट और प्रोटीन-आधारित दवाओं के विकास में हो सकता है।

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    हड्डियों की मरम्मत में मददगार प्रोटीन पर NIT ने की रिसर्च

    जागरण संवाददात, राउरकेला। राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) राउरकेला के शोधकर्ताओं ने मानव शरीर में पाई जाने वाली प्राकृतिक शर्करा जैसे अणु हड्डियों के निर्माण और मरम्मत के लिए जिम्मेदार प्रोटीन, बोन मॉर्फोजेनेटिक प्रोटीन-2 के व्यवहार को कैसे प्रभावित कर सकती है? इसका पता लगाया है।

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    प्रतिष्ठित पत्रिका बायोकैमिस्ट्री में प्रकाशित इस शोध के निष्कर्षों का उपयोग हड्डी और उपास्थि पुनर्जनन के उन्नत उपचार, बेहतर इम्प्लांट और अधिक प्रभावी प्रोटीन-आधारित दवाओं के विकास में किया जा सकता है।

    प्रोटीन मनुष्य के शरीर में विभिन्न कार्य करते हैं। टिश्यू के निर्माण और रासायनिक प्रतिक्रियाओं में सहयोग देने से लेकर कोशिकाओं के बीच संकेतों के रूप में कार्य करने तक बड़ी जिम्मेदारी निभाते हैं।

    हालांकि सर्वोत्तम उत्पादकता के लिए इनका त्रि-आयामी आकृतियों में सटीक मुड़ना या खुलना आवश्यक है। प्रोटीन क्यों और कैसे खुलते हैं? यह समझना जीव विज्ञान का एक प्रमुख लक्ष्य है। इसका प्रभाव चिकित्सा, जैव प्रौद्योगिकी और ड्रग डिलिवरी पर पड़ता है।

    इस संदर्भ में हड्डी और उपास्थि के निर्माण, चोटों को ठीक करने और स्टेम कोशिकाओं को अस्थि-निर्माण कोशिकाओं में परिणत करने में बीएमपी-2 महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

    हालांकि मनुष्य के शरीर में यह प्रोटीन विभिन्न ग्लाइकोसामिनोग्लाइकेन्स (जीएजी), संयोजी ऊतकों और जोड़ों के द्रव्य में पाए जाने वाले विशेष शर्करा जैसे अणुओं के साथ परस्पर प्रक्रिया करता है।

    एनआईटी राउरकेला की रिसर्च टीम के रसायन विज्ञान विभाग के प्रो. हरेकृष्ण साहू के मार्गदर्शन में यह शोध किया। इसमें शोध विद्वान देवी प्रसन्ना बेहरा और सुचिस्मिता सुबादिनी की अहम भागीदारी रही।

    उन्होंने यह शोध किया कि विभिन्न जीएजी किस तरह बीएमपी-2 को प्रभावित करते हैं, जब यूरिया से प्रेरित रासायनिक डीनैचुरेशन के रूप में ‘स्ट्रेस’ में आ जाते हैं।

    टीम ने यह देखा कि बीएमपी 2 एक तरह के सीएजी - सल्फेटेड हायलूरोनिक एसिड (एसएचए) की मौजूदगी में सामान्य हायलूरोनिक एसिड या बिना किसी एडिटिव्स की तुलना में तेजी से खुला।

    शोधकर्ताओं ने पाया कि एसएचए सीधे बीएमपी-2 प्रोटीन से जुड़ता है, इसकी संरचना धीरे-धीरे बदलता है और इसे अधिक नियंत्रण के साथ खुलने में मदद करता है।

    प्रो. हरेकृष्ण साहू ने इस शोध के निष्कर्षों और इससे संभावित वास्तविक लाभों के बारे में बताया कि बीएमपी-2 मनुष्यों में पाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण प्रोटीन है। यह बोन टिश्यू के ग्लाइकोसामिनोग्लाइकन से सम्पन्न बाह्यकोशिकीय मैट्रिक्स में मौजूद रह कर हड्डियों के निर्माण और पुनर्निर्माण में बुनियादी भूमिका निभाता है।

    हमारा शोध यह दर्शाता है कि जीएजी-बीएमपी-2 के बीच खास परस्पर प्रक्रियाएं किस तरह खुलने की गतिविधि और संरचनात्मक स्थिरता को प्रभावित करती हैं।

    इस सूझबूझ के साथ स्कैफोल्ड डिज़ाइन से बीएमपी-2 के कार्य की अनुकूलता सुरक्षित रखने, जैवसक्रियता लंबा करने, खुराक की जरूरत कम करने और साइड इफैक्ट कम करने की सक्षमता मिलती है।

    इसके साथ-साथ यह कार्य प्रोटीन संरचना और गतिविधि के मॉड्युलेशन के लिए जीएजी कार्यात्मक समूह के संशोधनों के अनुकूलन का यांत्रिक आधार देता है, जो अगली पीढ़ी की दवाइयों के निर्माण का मार्गदर्शक बनता है।

    बीएमपी-2 प्राकृतिक रूप से जीवों में और मुख्य रूप से एक प्रोटियोग्लाइकन कॉम्प्लेक्स का हिस्सा बन कर मौजूद रहता है। इसके परिणामस्वरूप जीएजी चेन्स के साथ इसकी परस्पर प्रक्रियाएं इसकी अनुकूलता की गतिविधि का अभिन्न हिस्सा हैं।

    ये परस्पर प्रक्रियाएं प्रोटीन ऑस्टियोइंडक्टिव क्षमता को गंभीर रूप से प्रभावित करती हैं। जीएजी के कार्यात्मक समूह में संशोधन जैसे कि टार्गेटेड सल्फेशन ऐसी परस्पर प्रक्रियाओं को गहराई से नियंत्रित कर सकता है, जिसके परिणामस्वरूप भौतिक-रासायनिक तनाव में भी बेहतर संरचनात्मक स्थिरता मिलने के साथ-साथ जैव सक्रियता बनी रहती है।

    यह उच्च-रिज़ॉल्यूशन आणविक समझ इस संभावना को रेखांकित करती है कि जीएजी संशोधनों को इस प्रकार इंजीनियर किया जा सकता है, जो न केवल प्रतिकूल परिस्थितियों में बीएमपी-2 की कार्यक्षमता को बनाए रखें, बल्कि इसके चिकित्सीय वितरण को अनुकूलित करें।

    रणनीतिक सल्फेशन या अन्य क्रियात्मक समूह परिवर्तनों के माध्यम से जैव-सक्रियता को बढ़ाएं और उन्नत स्थिरीकरण रणनीतियों द्वारा प्रोटीन के शेल्फ जीवन को भी बढ़ाएं।