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    अनेक प्रश्नों के उत्तर देगा बिहार, लोगों के अंदर आक्रोश पैदा करने की रणनीति अपना रहा महागठबंधन

    By Awadhesh KumarEdited By: Swaraj Srivastava
    Updated: Fri, 10 Oct 2025 11:28 PM (IST)

    बिहार विधानसभा चुनाव पर सबकी नजर है। प्रशांत किशोर ने 'वोट चोरी' के मुद्दे को महत्व नहीं दिया। विपक्ष की आक्रोश पैदा करने की रणनीति से नुकसान हुआ। राजद की अधिकार यात्रा से राजग को लाभ हुआ। लोग शांति और विकास के प्रति सतर्क हैं। भाजपा का हिंदुत्व वोट बैंक मजबूत है। सरकार ने विकास कार्य किए और योजनाओं से लोगों को लाभ पहुंचाया। मतदाता स्थिरता और विकास के लिए मोदी-नीतीश सरकार पर भरोसा करेंगे या नहीं, यह देखना होगा।

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    अवधेश कुमार। बिहार विधानसभा चुनाव पर पूरे देश की दृष्टि लगी हुई है। बिहार के जमीनी हालात बताते हैं कि राहुल गांधी, कांग्रेस और अन्य पार्टियों के प्रचंड शोर के बावजूद धरातल पर तथाकथित वोट चोरी मुद्दा बिल्कुल नहीं है। बिहार में तीसरी शक्ति के रूप में खड़े होने की कोशिश कर रहे जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर ने इसका संज्ञान तक नहीं लिया। चुनाव प्रबंधक होने के कारण उन्हें मतदाता सूचियों, चुनाव की प्रवृत्तियों और परिणाम की अन्य अनेक नेताओं से ज्यादा अधिकृत जानकारी है।

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    उनके एसआइआर के प्रति निरपेक्ष भाव का संदेश लोगों में यही गया कि राहुल गांधी, तेजस्वी यादव या महागठबंधन के उनके अन्य साथी जानबूझकर चुनाव आयोग के साथ भाजपा के विरुद्ध लोगों के अंदर आक्रोश पैदा करने की रणनीति पर चल रहे हैं। इसकी हानि विपक्ष को इस रूप में हुई कि चुनाव पूर्व के एक महत्वपूर्ण काल में बिहार सरकार के विरुद्ध संभावित मुद्दे भी उभर नहीं सके। राजद और तेजस्वी यादव को इसका भान हुआ तो उसके बाद वह बिहार अधिकार यात्रा पर निकले। इसमें उन्होंने सामान्य मुद्दे अवश्य उठाए। वोटर अधिकार यात्रा के बारे में राजद की प्रमुखता वाले महागठबंधन के समर्थकों की टिप्पणी यही है कि जितनी ऊर्जा, संसाधन उसमें लगाए गए उससे वास्तव में राजग को ही लाभ हुआ।

    कुछ समय से भारत के लोगों के अंदर राजनीतिक निर्णय को लेकर सतर्कता बढ़ी है। नेपाल की हिंसक उथल-पुथल से बिहार चुनाव बिल्कुल अप्रभावित नहीं हो सकता। कुछ लोग भारत के अंदर ऐसे ही करने के प्रयास करते दिख रहे हैं। इसके कारण बहुत बड़ा वर्ग शांति, स्थिरता, विकास और सुरक्षा के प्रति संवेदनशील नजर आने लगा है। आपरेशन सिंदूर और उसके बाद कुछ देशों के भारत विरोधी रवैये से भी देश में राष्ट्रवाद का भाव प्रखर हुआ है। बिहार क्षेत्रवाद के सोच से राजनीतिक व्यवहार करने वाला राज्य अब नहीं रहा। पूरे देश में हिंदुत्व के आधार पर भाजपा का एक ठोस वोट बैंक बन चुका है और चुनावों में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

    वक्फ संशोधन कानून पर कुछ संगठनों के साथ राजद, कांग्रेस आदि के खड़ा होने तथा इस्लामिक कट्टरपंथ की घटनाओं पर उनकी चुप्पी के विरुद्ध गैर मुसलमानों के बड़े वर्ग में प्रतिक्रिया है। कांग्रेस के कारण विपक्ष जहां एसआइआर में फंसा रहा वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा और केंद्र सरकार ने आपरेशन सिंदूर से लेकर, अपनी विदेश नीति, रक्षा नीति को लोगों तक पहुंचाने के अभियान चलाए। प्रधानमंत्री ने लाल किले से लोगों को सीमा के साथ धार्मिक और नागरिक स्थलों की सुरक्षा के प्रति सचेत करते हुए सुदर्शन चक्र की योजना रखी। सरकार जीएसटी में कटौती कर बड़ा टैक्स सुधार लेकर आ गई जिससे परिवारों को खर्चे में थोड़ी राहत मिल रही है।

    विपक्ष के अभियान के समानांतर प्रधानमंत्री लगातार रेल, सड़क, हवाई अड्डा, अस्पताल, कालेज, स्कूल सहित आधारभूत संरचना एवं विकास परियोजनाओं का भी लोकार्पण एवं शिलान्यास करते रहे तो दूसरी ओर कई योजनाओं में महिलाओं, किसानों, मजदूरों आदि के खाते में सीधे रकम स्थानांतरित हुई। इनमें मुख्यमंत्री रोजगार योजना के तहत करीब एक करोड़ महिलाओं के खाते में भेजे गए 10 हजार रुपये तथा रोजगार में निवेश करने के प्रमाण पर भविष्य में दो लाख रुपये देने के वादे से भी माहौल बना है।

    भाजपा की नीति इस समय दिल्ली तथा उसके पूर्व हरियाणा, महाराष्ट्र में मिली जीत को कायम रखने की है। इसलिए वह किसी किस्म का जोखिम नहीं लेना चाहती। अब नीतीश कुमार को लेकर भाजपा के स्वर पूरी तरह बदल गए हैं। एक-एक नेता उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ने तथा पुनः उन्हें ही मुख्यमंत्री बनाए जाने का बयान दे रहे हैं। इसमें तेजस्वी यादव या अन्य नेताओं का यह कहना कि भाजपा चुनाव जीतने के बाद उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाएगी, जनता के गले नहीं उतर रहा। प्रशांत किशोर ने लगातार अपनी यात्राओं, सभाओं और वक्तव्यों से बिहार से जुड़े अनेक आवश्यक, लोगों को स्पर्श करने वाले मुद्दे उठाए।

    इससे जन जागरण हुआ है। बावजूद इसके बिहार का वर्तमान राजनीतिक समीकरण बदल जाने की संभावना जमीन पर नहीं दिखती है। मतदाताओं के सामने प्रश्न है कि केंद्र में नरेन्द्र मोदी और प्रदेश में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार को कायम रखकर राजनीतिक स्थिरता, सामाजिक न्याय, शांति, विकास, इस्लामिक कट्टरपंथ का सरकार द्वारा नियंत्रण और सुरक्षा के प्रति निश्चिंत रहें या कुछ स्थानीय मुद्दों के कारण उनके विरुद्ध जाएं?

    बिहार में हमने 2005, 2010, 2014 और 2019 में बहुत बड़ी संख्या में लोगों को जातीय सीमाओं से ऊपर उठकर मतदान करते देखा है। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि पिछले चुनाव में चिराग पासवान की लोजपा का राजग से बाहर आकर 137 सीटों पर उम्मीदवार खड़ा करने के परिणामस्वरूप राजद महागठबंधन को समतुल्य मत प्रतिशत एवं सीटें प्राप्त हुईं। इस बार लोजपा राजग गठबंधन में है तथा जीतन राम मांझी के हम एवं उपेंद्र कुशवाहा के लोकतांत्रिक मोर्चा के कारण भी इसकी शक्ति बढ़ी है। राजद नेतृत्व वाले महागठबंधन में पशुपति पारस, विकासशील इंसान पार्टी और झारखंड मुक्ति मोर्चा इसकी भरपाई करेंगे, ऐसा नहीं लगता।

    (लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)