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    Exclusive: मौका मिले तो मैग्नस कार्लसन को चुनौती देना चाहूंगी : दिव्या देशमुख

    Updated: Mon, 04 Aug 2025 06:20 AM (IST)

    दिव्या देशमुख ने फिडे महिला शतरंज विश्व कप के फाइनल में कोनेरू हंपी को हराकर इतिहास रच दिया। दिव्या की मां उन्हें फिजिकल गेम से दूर रखना चाहती थीं इसलिए उन्होंने शतरंज को चुना। दिव्या ने बताया कि टूर्नामेंट में सभी खिलाड़ी उनसे सीनियर थे लेकिन उन्होंने अपना ध्यान केंद्रित रखा। उनका सपना है कि वे एक दिन मैग्नस कार्लसन के खिलाफ खेलें और उनसे बहुत कुछ सीखें।

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    दिव्या ने हाल ही में वर्ल्ड चैंपियन का तमगा हासिल किया है

     जिस उम्र में लोग अपने करियर को संवारने के बारे में सोचते हैं, उस उम्र में नागपुर की शतरंज खिलाड़ी दिव्या देशमुख ने विश्व चैंपियन बनकर इतिहास रच दिया। जॉर्जिया के बाटुमी में खेले गए फिडे महिला शतरंज विश्व कप के फाइनल में 19 वर्षीय दिव्या देशमुख ने हमवतन और अनुभवी खिलाड़ी कोनेरू हंपी को रोमांचक मुकाबले में शिकस्त देकर यह कारनामा किया। दिव्या की मां नहीं चाहती थी कि उनकी बेटी कोई फिजिकल गेम न खेले, इसलिए उन्होंने शतरंज को चुना। दिव्या का कहना है कि वह एक दिन मैग्नस कार्लसन के विरुद्ध खेलना चाहती हैं। विश्व चैंपियन दिव्या देशमुख से शेखर झा ने विशेष बातचीत की।

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    पेश हैं प्रमुख अंश :

    सवाल- आपने शतरंज को ही क्यों चुना। इसके पीछे क्या उद्देश्य था?

    दिव्या- शतरंज खेलने का फैसला मेरे पैरेंट्स का था। मेरी मां चाहती थी कि मैं कोई फिजिकल गेम ना खेलूं। इसलिए उन्होंने मुझे शतरंज खेलने के लिए प्रोत्साहित किया और मैं भी उसको शौक से खेलने लगी और उसके बाद उसी में करियर बनाया।

    सवाल- फिडे महिला शतरंज विश्व कप के फाइनल मुकाबले में आपके सामने भारत की अनुभवी खिलाड़ी बैठी थी। उस दौरान आपके दिमाग में क्या चल रहा था?

    दिव्या- टूर्नामेंट की बात करें तो उसमें हिस्सा लेने वाले सभी खिलाड़ी मेरे से सीनियर थे। पहले दौर में ही मेरा अनुभवी खिलाड़ी से सामना हुआ था। ऐसे टूर्नामेंट में अनुभव तो काम करता ही है। फाइनल चल रहा था तो सभी टेंशन में थे, लेकिन मैं सिर्फ और सिर्फ अपने ऊपर फोकस करने की कोशिश कर रही थी।

    सवाल- आपने अपनी करियर की पहली चाल किसके विरुद्ध खेली थीं। उस मुकाबले में आप हारी थीं या जीती थीं?

    दिव्या- मैंने पांच साल की उम्र से शतरंज खेल रही हूं। मुझे जहां तक याद है कि मैंने अपनी पहली चाल अपने पापा के विरुद्ध खेली थी, लेकिन इस मुकाबले में मुझे हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद मैं धीरे-धीरे आगे बढ़ती गई और आज इस मुकाम पर हूं।

    सवाल- शतरंज खेलने के साथ पढ़ाई से तालमेल बिठाना कितना कठिन है?

    दिव्या- शतरंज खेलने के साथ पढ़ाई को मैनेज करना काफी कठिन रहा है। खास कर पिछले कुछ सालों में। शतरंज खेलने में काफी ऊर्जा लगती है। लेकिन इसके बाद भी थोड़ा संतुलन होना चाहिए। पढ़ाई मेरे लिए काफी अहम है। इसलिए मैं हमेशा ही खेल और पढ़ाई के बीच ये संतुलन बनाने की कोशिश करती हूं।

    सवाल- अगर शतरंज में कोई करियर बनाने का सोचता है तो उसको क्या करना चाहिए?

    दिव्या- अगर किसी को शतरंज खेलना है तो मैं उन्हें प्रोत्साहित करूंगी। शतरंज खेलने के लिए आपको काफी दिमाग लगाना पड़ता है। आप टूर्नामेंट खेलते हैं, जिसमें आप हारते और जीतते हैं। लेकिन इससे आपको बहुत कुछ सीखने को मिलता है। अगर कोई बच्चा पेशेवर खेलना चाहता है तो उनके अभिभावक को पूरा सपोर्ट करना चाहिए।

    सवाल- आपको दुनिया के किस खिलाड़ी के सामने खेलना कठिन लगता है?

    दिव्या- ऐसा कोई नहीं है। हर खिलाड़ी अपने-अपने स्तर पर कठिन होते हैं। मुझे अगर खेलने को मौका मिले तो मैं दुनिया के नंबर एक शतरंज खिलाड़ी मैग्नस कार्लसन के साथ खेलना है। वह विश्व चैंपियन रहे हैं और उनके विरुद्ध खेलने से बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।