शीत सत्र में आसान नहीं होगी कांग्रेस की राह, बिहार चुनाव में हार के बाद टूटा मनोबल; क्या एकजुट रहा पाएगा इंडी गठबंधन?
बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की हार से राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी दलों में निराशा है। शीतकालीन सत्र में सरकार को घेरने की कांग्रेस की रणनीति को झटका लगा है। सहयोगी दल कांग्रेस के नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठा रहे हैं, जिससे विपक्ष में फूट की आशंका बढ़ गई है। ऐसे में, विभिन्न मुद्दों पर विपक्षी दलों के बीच सहमति बनाना कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती होगी।

राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे। (फाइल)
संजय मिश्र, नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की करारी हार का असर केवल सूबे की सियासत तक ही सीमित नहीं है बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर इसकी तपिश महसूस की जा रही है। विपक्षी खेमे के भीतर इसको लेकर हलचल है कि बिहार की हार से टूटे मनोबल के बाद संसद के शीत सत्र में विपक्ष के लिए अपने ज्वलंत मुद्दों के एजेंड़े के साथ सरकार को घेराना अब आसान नहीं होगा।
खासकर यह देखते हुए कि विपक्षी गठबंधन में शामिल कुछ क्षेत्रीय दल राज्यों में भाजपा-एनडीए को चुनौती देकर पछाड़ने में कांग्रेस के लगातार प्रदर्शन को लेकर न केवल असहज हैं बल्कि खुले रूप से सवाल भी उठाने लगे हैं।
शीत सत्र में सरकार को घेरने की तैयारी में कांग्रेस
विपक्ष संसद के शीत सत्र के दौरान चुनाव आयोग के 12 राज्यों में कराए जा रहे विशेष सघन मतदाता सूची पुनरीक्षण यानि एसआइआर, मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार के कथित पक्षपाती रवैये, अमेरिकी टैरिफ वॉर तथा ऑपरेशन सिंदूर के संदर्भ में ट्रंप की ओर से किए जा रहे लगातार दावे से लेकर दिल्ली धमाकों जैसे मुद्दों की अपनी फेहरिस्त के साथ सरकार को बैकफुट पर धकेलने की रणनीतिक तैयारी कर रहा था।
लेकिन बिहार चुनाव में महागठबंधन के लगभग सफाए ने विपक्ष की इन तैयारियों को गहरा आघात पहुंचाया है।
बिहार की जीत के एनडीए के हौसले बुलंद
बिहार में एनडीए की प्रचंड जीत के बाद सरकार जाहिर तौर पर संसद सत्र में बढ़े हौसले के साथ विपक्षी एजेंडे को सियासी विमर्श के केंद्र में नहीं आने देने के लिए दोगुने ताकत से प्रयास करेगी। विपक्ष की अगुवाई कर रही कांग्रेस के सामने एनडीए-भाजपा के इस बढ़े हौसले को चुनौती देने की राह आसान नहीं होगी क्योंकि आइएनडीआइए गठबंधन में बिहार की हार के बाद कई सहयोगी दल उसको घेर रहे हैं।
क्या एकजुट रह पाएगा इंडी गठबंधन?
वैसे सीटों पर जीत की कसौटी के लिहाज से राजद की स्थिति कांग्रेस से बहुत बेहतर नहीं है मगर राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष की अगुआ होने के नाते वह सहयोगी दलों के निशाने पर है। आइएनडीआइए का हिस्सा होते हुए भी कांग्रेस पर वार करने का मौका नहीं छोड़ने वाली तृणमूल कांग्रेस ने बिहार के नतीजों के तत्काल बाद ही राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष का नेतृत्व करने की उसकी क्षमता पर सवाल उठा दिए।
बिहार में कांग्रेस का हार पर सहयोगी दल हुए हमलावर
टीएमसी पहले भी संसद में कांग्रेस की अग्रणी भूमिका निभाने को लेकर न केवल असहज रही है बल्कि कई अवसरों पर अलग सियासी लाइन-लेंथ ली है। तृणमूल कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी भी बिहार की हार के बाद कांग्रेस पर हमलावर नजर आ रही है। दिल्ली चुनाव में आप की पराजय में कांग्रेस के वोट काटने की भूमिका को लेकर पहले से आक्रामक रही आप के नेता भी टीएमसी की ओर से व्यक्त की गई राय का अनुमोदन करते नजर आ रहे हैं।
विपक्ष को एकजुट रखना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती
विपक्षी खेमे में मची इस अंदरूनी हलचल के बाद एसआइआर विवाद, मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की योजना से लेकर ट्रंप-टैरिफ विवाद और हिंसा प्रभावित मणिपुर की स्थिति जैसे मसले पर आइएनडीआइए खेमे के दलों के बीच संसद में साझी रणनीति के लिए सहमति बनाना कांग्रेस के लिए मुश्किल चुनौती से कम नहीं है।

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