Back Image

Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck

    नामांकन वापसी के आखिरी क्षण तक महागठबंधन में सीटों पर रस्साकशी, कांग्रेस-राजद में क्यों नहीं बन रही बात?

    By SANJAY KUMAR MISHRAEdited By: Swaraj Srivastava
    Updated: Sun, 19 Oct 2025 10:00 PM (IST)

    बिहार में महागठबंधन के भीतर सीटों के बंटवारे को लेकर कांग्रेस और राजद में खींचतान जारी है। नामांकन वापसी के अंतिम समय तक कोई सहमति नहीं बन पाई है, जिससे दोस्ताना मुकाबले की स्थिति बनी हुई है। शीर्ष नेतृत्व के बीच संवाद का अभाव है और कांग्रेस, राजद के दबाव को स्वीकार करने को तैयार नहीं है। कांग्रेस नेता किशोर कुमार झा ने दोस्ताना मुकाबलों के नकारात्मक अनुभवों का हवाला दिया है।

    Hero Image

    रस्साकशी की गुत्थी सुलझाने की कसरत का अब तक कोई नतीजा नहीं  (फोटो: जागरण)

    संजय मिश्र, जागरण, नई दिल्ली। बिहार में पहले चरण के नामांकन वापसी में महज कुछ घंटे शेष हैं मगर महागठबंधन के दोनों प्रमुख दलों मे से कोई भी सीटों की रस्साकशी को लेकर पीछे हटने को तैयार नहीं दिख रहा है। कांग्रेस तथा राजद के रणनीतिकारों की इस रस्साकशी की गुत्थी सुलझाने की कसरत का अब तक कोई नतीजा नहीं निकला है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    ऐसे में चुनाव में कई सीटों पर दोस्ताना मुकाबले की उपज रही स्थिति दोनों पार्टियों के खेमों में बेचैनी बढ़ा रही है।चुनाव के दरम्यान सीट बंटवारे को लेकर बने इस हालात की तल्खी का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि दोनों पार्टियों के शीर्ष नेतृत्व के स्तर पर संवाद उम्मीदवारों की सूची जारी होने के बाद बढ़े विवाद को लेकर कोई बातचीत नहीं हुई है।

    कुछ सीटों पर दोस्ताना मुकाबला लगभग तय

    वहीं कांग्रेस खेमे से मिले संकेतों से साफ है कि उसकी दावेदारी वाली सीटों पर भी राजद के अपना उम्मीदवार उतारने के दबाव को पार्टी स्वीकार नहीं करेगी और ऐसे में महागठबंधन के दलों के बीच कुछ सीटों पर दोस्ताना मुकाबला लगभग तय माना जा रहा है। सूत्रों के अनुसार कांग्रेस तथा राजद के रणनीतकारों के बीच रविवार को भी फोन पर एक दूसरे के खिलाफ उतारे गए उम्मीदवारों को वापस लेने के मसले पर बातचीत हुई मगर कोई ठोस निष्कर्ष अब तक नहीं निकल पाया है।

    जबकि छह नवंबर को होने वाले पहले चरण के चुनाव के लिए नामांकन वापस लेने की अंतिम समय सीमा सोमवार है।बताया जाता है कि कांग्रेस की ओर से राजद नेता तेजस्वी यादव को चुनाव में गठबंधन की एकजुटता के नैरेटिव को होने वाले नुकसान की दलीलें देकर सीटों की गुत्थी सुलझाने का संदेश दिया गया है मगर उनकी ओर से कोई लचीलापन नहीं दिखाया गया है। इसके मद्देनजर ही कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की ओर से भी लालू प्रसाद या तेजस्वी यादव से इसको लेकर संवाद की कोई तत्परता नहीं दिखाई जा रही है।

    सीट बंटवारे का मामला सुलझाने का दावा

    सीटों की रस्साकशी का मामला सुलझाने के लिए पिछले हफ्ते तेजस्वी यादव दिल्ली आए थे और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे तथा केसी वेणुगोपाल से उनकी मुलाकात हुई थी। इस मुलाकात के बाद सीट बंटवारे का मामला सुलझाने का दावा किया गया मगर चुनावी मैदान में कुछ सीटों पर दोनों दलों का आमने-सामने होना जमीनी हकीकत है। बताया जा रहा है कि इस वास्तविकता को भांपते हुए ही बिहार कांग्रेस के प्रभारी कृष्णा अल्लावरू अपनी पार्टी के नेताओं को कुछ सीटों पर दोस्ताना मुकाबले के लिए तैयार होने का संदेश देने लगे हैं।

    हालांकि बिहार कांग्रेस के वरिष्ठ नेता किशोर कुमार झा ने इस बारे में कहा कि करीब तीन दशक के राजद-कांग्रेस गठबंधन में दोस्ताना मुकाबले का अनुभव अच्छा नहीं रहा है और इसलिए पार्टी के लिए जरूरी है कि राजद को दो टूक संदेश दिया जाए कि वह ऐसी नौबत को टाले क्योंकि राहुल गांधी ने महागठबंधन के लिए चुनाव का टोन सेट किया है। 2004 के लोकसभा में गठबंधन में राजद के चार सीटें देने के बाद आठ सीटों पर दोस्ताना मुकाबले का उदाहरण देते हुए झा ने कहा कि समझौते वाली चार में से दो सीटें कांग्रेस जीती जबकि अन्य आठ सीटों पर प्रदर्शन निराशाजनक रहा।

    इसी तरह 2005 के विधानसभा चुनाव में राजद ने कांग्रेस के लिए 52 सीटें छोड़ी तो पार्टी ने 30 सीटों पर दोस्ताना मुकाबले के लिए अपना उम्मीदवार उतारा मगर उसे केवल चार सीटों पर ही जीत मिली। इससे साफ है कि दोस्ताना मुकाबले का प्रयोग कांग्रेस तथा महागठबंधन दोनों के हक में नहीं है।