दोस्ती में 'दुश्मनी' साध रहे राजद और कांग्रेस, कई सीटों पर बनी फ्रेंडली फाइट की स्थिति
बिहार में महागठबंधन के भीतर तनाव बढ़ गया है, जहाँ राजद और कांग्रेस के बीच टिकट बँटवारे को लेकर 'दोस्ती में दुश्मनी' का माहौल है। लगभग दर्जन भर सीटों पर दोस्ताना मुकाबला होने की संभावना है, जिससे गठबंधन कमजोर हो रहा है। कांग्रेस अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता साबित करना चाहती है, जबकि राजद नेतृत्व बनाए रखना चाहता है। इस खींचतान से वाम दल भी असहज हैं, और गठबंधन में फूट का खतरा बढ़ गया है।

दर्जनभर सीटों पर फ्रेंडली फाइट की स्थिति बन चुकी है (फाइल फोटो)
अरविंद शर्मा, जागरण, नई दिल्ली। बिहार में महागठबंधन का समीकरण अब 'दोस्ती में दुश्मनी' के दौर में पहुंच गया है। टिकट बंटवारे को लेकर शुरू हुआ तनाव अब इतनी दूर निकल आया है कि कांग्रेस और राजद दोनों एक-दूसरे के खिलाफ मैदान में खड़े दिख रहे हैं।
लगभग दर्जनभर सीटों पर फ्रेंडली फाइट की स्थिति बन चुकी है और यह टकराव न सिर्फ चुनावी तालमेल को कमजोर कर रहा है, बल्कि भविष्य में गठबंधन की दिशा भी बदल सकता है।दरअसल, कांग्रेस इस बार बिहार में 'छोटे भाई' की भूमिका से आगे बढ़ने की कोशिश में है। दशकों से राजद की छत्रछाया में सिमटी पार्टी ने इस चुनाव में अपने दम पर खड़ा होने की रणनीति अपनाई।
कांग्रेस को दरकिनार कर प्रत्याशी मैदान में उतारे
उसने कई सीटों पर राजद की परंपरागत दावेदारी की अनदेखी करते हुए अपने प्रत्याशी उतारने का निर्णय लिया। इसका सीधा असर यह हुआ कि राजद भी पीछे नहीं हटा और कई सीटों पर कांग्रेस को दरकिनार कर प्रत्याशी मैदान में उतार दिए। नतीजतन, सहयोगियों के बीच समन्वय की जगह टकराव ने जन्म ले लिया।
यह तनाव सिर्फ सीटों तक सीमित नहीं है, बल्कि वर्चस्व की लड़ाई का रूप ले चुका है। राजनीतिक पर्यवेक्षक अभय कुमार का कहना है कि यह संघर्ष दरअसल गठबंधन के भीतर शक्ति-संतुलन का मसला है। कांग्रेस अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता फिर से साबित करना चाहती है, जबकि राजद यह संदेश देना चाहता है कि बिहार की विपक्षी राजनीति में नेतृत्व उसी के पास है।
कांग्रेस के कार्यकर्ता राजद को चुनौती दे रहे
इसी कारण यह खींचतान अब महागठबंधन की स्थिरता के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गई है। इस 'फ्रेंडली फाइट' का असर जमीनी स्तर पर भी साफ दिखने लगा है। कार्यकर्ताओं में भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है। कहीं राजद के समर्थक कांग्रेस प्रत्याशी के खिलाफ मोर्चा खोले बैठे हैं तो कहीं कांग्रेस के कार्यकर्ता राजद को चुनौती दे रहे हैं। ऐसे में मतदाता के बीच यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब दोनों दल गठबंधन में हैं तो एक-दूसरे के खिलाफ इतने तीखे तेवर क्यों?
स्थिति इतनी जटिल हो चुकी है कि वामपंथी घटक भाकपा, माकपा और माले भी असहज महसूस करने लगे हैं। दोनों बड़े दलों के झगड़े से परेशान होकर उन्होंने अपनी सीटें स्वयं तय कर प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है। साझा प्रचार की संभावना बेहद कमजोर दिख रही है। इससे गठबंधन की जमीनी ताकत पर प्रतिकूल असर होगा और विपक्षी एकजुटता का संदेश भी फीका पड़ने का खतरा मंडराने लगा है। अगर यह स्थिति चुनाव तक बनी रही तो महागठबंधन का यह भीतरी संघर्ष भविष्य में वास्तविक टूट का कारण बन सकती है।
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