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    जगदीप धनखड़ से राधाकृष्णन तक... कैसे NDA ने लिया टर्न? RSS-दक्षिण भारत ही नहीं; इन फैक्टर्स पर भी है BJP की नजर

    Updated: Mon, 18 Aug 2025 04:50 PM (IST)

    जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद बीजेपी ने सीपी राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति पद के लिए चुना है। वे धनखड़ से अलग नरम स्वभाव के नेता हैं और दक्षिण भारत में बीजेपी के विस्तार की रणनीति का हिस्सा हैं। राधाकृष्णन का जनसंघ और आरएसएस से गहरा नाता है। इससे बीजेपी आरएसएस फैक्टर को भी साध पाएगी।

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    राधाकृष्णन का चयन ओबीसी समुदाय और दक्षिण भारत में बीजेपी के विस्तार की रणनीति को दिखाता है।

     डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद बीजेपी ने उनके उत्तराधिकारी के रूप में सीपी राधाकृष्णन को चुना है।

    धनखड़ की तुलना में वह एकदम अलग मिजाज के हैं। राधाकृष्णन दक्षिण भारत के अनुभवी नेता हैं, जिनका जनसंघ और आरएसएस से गहरा नाता है।

    धनखड़ की मुखर और टकराव भरी शैली के उलट राधाकृष्णन का स्वभाव नरम और सबको जोड़े रखने वाला है। यह बदलाव बीजेपी की रणनीति में एक बड़े चेंज की ओर इशारा करता है।

    धनखड़ का चयन 2022 में जाट आंदोलनों के बीच हुआ था। यह जाट समुदाय को यह संदेश देने की कोशिश थी कि उनकी आवाज सुनी जा रही है। वहीं, राधाकृष्णन का चयन ओबीसी समुदाय और दक्षिण भारत में बीजेपी के विस्तार की रणनीति को दिखाता है। कर्नाटक को छोड़कर, दक्षिण में बीजेपी को अब तक मजबूत जमीन नहीं मिली है।

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    दक्षिण की सियासत में नया चेहरा

    राधाकृष्णन ने तमिलनाडु में डीएमके की आलोचनाओं का जवाब सूझबूझ से दिया है। हाल ही में उन्होंने मुख्यमंत्री एमके स्टालिन से सियासी मुलाकात की। उदयनिधि स्टालिन के सनातन धर्म वाले बयान पर उन्होंने नरमी से जवाब दिया और उन्हें "बच्चा" कहकर टिप्पणी को खारिज कर दिया था।

    महाराष्ट्र में भी उन्होंने विवादित पब्लिक सिक्योरिटी बिल पर विपक्ष की याचिका को संभाला था, लेकिन उनके एक्शन्स उनकी वैचारिक निष्ठा और अनुभव पर आधारित थीं।

    आरएसएस से गहरा नाता

    धनखड़ का आरएसएस से कोई गहरा रिश्ता नहीं था। उनके लिए कहा जाता है कि वह एक व्यवहारिक सियासी चेहरा थे। दूसरी ओर, राधाकृष्णन 17 साल की उम्र से जनसंघ और आरएसएस से जुड़े रहे हैं। उनकी वैचारिक जड़ें बीजेपी के लिए अहम हैं। धनखड़ की तीखी और कानूनी दलीलें संसद में सहमति बनाने में मुश्किल पैदा करती थीं।

    राधाकृष्णन का चयन संसद के सुचारु संचालन के लिए एक संतुलित व्यक्तित्व की जरूरत को दिखाता है। वह सियासी बोझ से मुक्त हैं और विपक्ष उन्हें सहमति वाला उम्मीदवार मान सकता है। जहां धनखड़ की सियासत जाति और क्षेत्र तक सीमित थी, राधाकृष्णन राष्ट्रीय समावेशिता का प्रतीक हैं।

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