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    Maharashtra Politics: ठाकरे ब्रदर्स के एक होने से बदल जाएगी महाराष्ट्र की राजनीति, क्या है उद्धव और राज ठाकरे का प्लान?

    Updated: Wed, 09 Jul 2025 07:54 PM (IST)

    मुंबई में चल रहा हिंदी-मराठी विवाद महानगरपालिका चुनाव का हथियार बन गया है। उद्धव ठाकरे अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए इसका उपयोग कर रहे हैं। उन्होंने राज ठाकरे से हाथ मिलाने का प्रस्ताव रखा बशर्ते वे महाराष्ट्रद्रोहियों से दूर रहें। सरकार ने प्राथमिक कक्षाओं में हिंदी की अनिवार्यता समाप्त कर दी जिसके बाद उद्धव और राज ने विजय रैली की घोषणा की।

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    Maharashtra Politics: हिंदी-मराठी विवाद के बीच ठाकरे बंधुओं की क्या है प्लानिंग।(फोटो सोर्स: पीटीआई)

    ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई। यह तो सर्वविदित है कि महाराष्ट्र में इन दिनों चल रहा हिंदी-मराठी विवाद मुंबई महानगरपालिका चुनाव के एक हथियार से अधिक कुछ भी नहीं है। इसी हथियार का उपयोग करके शिवसेना (यूबीटी) के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखना चाहते हैं।

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    लेकिन वह जानते हैं कि वर्तमान परिस्थितियों में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की जोड़ी के सामने वह अकेले किसी भी हथियार का उपयोग करके मुंबई मनपा पर जीत हासिल नहीं कर सकते। इसके लिए अब उन्हें अपने उसी चचेरे भाई के साथ की अपेक्षा है, जिसे पिछले 20 साल से वह फूटी आंखों में देखना नहीं चाहते थे।

    महाराष्ट्र के हित के लिए दोनों भाई साथ: राज ठाकरे

    यही कारण है कि करीब दो माह पहले जब फिल्म निर्माता-निर्देशक महेश मांजरेकर को साक्षात्कार देते समय जब राज ठाकरे यह कहा कि हमारे विवाद, झगड़े, अन्य बातें बहुत छोटी हैं। महाराष्ट्र इन सबसे बहुत बड़ा है। महाराष्ट्र के हित के लिए हम ये झगड़े भुलाने को तैयार हैं।

    राज ठाकरे के मुंह से निकली इस बात को उद्धव ठाकरे ने तुरंत लपक लिया, और उसी दिन चल रही अपनी एक सार्वजनिक सभा में यह प्रस्ताव दे डाला कि वह भी महाराष्ट्र के हित में किसी से भी हाथ मिलाने को तैयार हैं।

    बशर्ते वह यह तय करे कि वह महाराष्ट्रद्रोहियों के साथ उठना-बैठना बंद करेगा। ‘किसी से भी’ से उनका आशय राज ठाकरे से, और ‘महाराष्ट्रद्रोही’ से उनका आशय उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से था। क्योंकि महेश मांजरेकर को यह बयान देने से एक-दो दिन पहले ही एकनाथ शिंदे ने राज ठाकरे के घर जाकर उनसे मुलाकात की थी।

    एक सूर में बोल रहे दोनों भाई

    उद्धव के इस प्रस्ताव पर राज ठाकरे का कोई जवाब नहीं आया। लेकिन उद्धव गुट के प्रवक्ता संजय राउत और स्वयं उद्धव ठाकरे भी तब से बार-बार राज ठाकरे को लुभाने की कोशिश करते आ रहे हैं। संयोग से इसी दौरान राज्य सरकार के शिक्षा विभाग ने प्राथमिक कक्षाओं में हिंदी की शिक्षा अनिवार्य करने का आदेश जारी कर दिया।

    राज ठाकरे की ओर से इस पर तीखी प्रतिक्रिया आनी शुरू हुई तो उद्धव ने भी उनके सुर में सुर मिला दिया। जबकि स्वयं उन्हीं के मुख्यमंत्री रहते माशेलकर समिति बनाई गई थी, जिसने 12वीं कक्षा तक हिंदी का पठन-पाठन अनिवार्य करने की सिफारिश की थी।

    फिर जब सरकार के इस निर्णय के विरोध में राज ठाकरे ने आंदोलन की घोषणा की, तो उद्धव ने भी मोर्चा निकालने की घोषणा कर दी। लेकिन इन दोनों के मोर्चे निकलने के पहले ही सरकार ने नया आदेश निकालकर प्राथमिक कक्षाओं में हिंदी की अनिवार्यता समाप्त कर दी। तो सरकार के इस निर्णय को मराठी की विजय प्रदर्शित करते हुए उद्धव और राज दोनों ने पांच जुलाई को विजय रैली करने की घोषणा कर दी।

    इस रैली के जरिए 20 साल बाद वह अवसर आ रहा था, जब दो चचेरे भाई उद्धव और राज ठाकरे एक मंच पर एक साथ दिखाई देनेवाले थे। निश्चित रूप से यह अवसर उन सभी मराठीभाषियों के लिए विशेष था, जो पिछले साथ साल से शिवसेना और इसके संस्थापक बाबासाहेब ठाकरे में अपनी आस्था रखते आए थे।

    मुंबई के मराठियों का ऐसा वर्ग नहीं चाहता था कि ठाकरे परिवार टूटे और उसका नुकसान शिवसेना को उठाना पड़े। 2006 में जब राज ठाकरे ने शिवसेना से अलग पार्टी बनाने की घोषणा की थी, तब भी मुंबई के कई विशिष्ट मराठी जनों ने उन्हें शिवसेना में ही बने रहने के लिए मनाने की कोशिश की थी।

    तब स्वयं बालासाहेब ठाकरे जीवित थे। लोगों को लगता था कि एक दिन स्वयं बालासाहेब ठाकरे ही राज को बुलाकर शिवसेना में कोई महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी देकर उन्हें घरवापसी के लिए मना लेंगे। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। राज और उद्धव में, और उनके परिवारों के बीच भी कड़वाहट बहुत बढ़ गई थी। फिर भी मुंबई-ठाणे के आम मराठी मानुष के मन में दोनों भाइयों को एक साथ देखने की इच्छा मरी नहीं थी।

    अब साथ ही रहेंगे दोनों भाई: उद्धव ठाकरे

    मराठी मानुष की यही इच्छा पांच जुलाई को वरली के नेशनल स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स डोम के मंच पर उद्धव और राज को एक साथ देखकर खिल उठी। वहां उमड़ी भीड़ देखकर चेहरा तो उद्धव ठाकरे का भी खिल उठा। उन्होंने देवेंद्र फडणवीस और एकनाथ शिंदे को लेकर अपने मन की भड़ास निकालते हुए यह घोषणा भी कर दी कि हम साथ आ गए हैं, तो अब साथ ही रहेंगे। और मुंबई और महाराष्ट्र पर कब्जा भी करेंगे।

    लेकिन राज ठाकरे के मुंह से ऐसा कुछ भी नहीं निकला। उन्होंने जब हिंदी पढ़ाने के आदेश का विरोध करने के लिए जब मोर्चा निकालने की घोषणा की थी, तब भी कहा था कि यह मोर्चा गैरराजनीतिक है, और जब विजय रैली की योजना बनी, तब भी इसे राजनीति से दूर रखने की बात कही थी।

    वह अपनी इस बात पर पांच जुलाई की रैली में कायम रहे। यहां तक कि आठ जुलाई को मीरा रोड में उनकी पार्टी मनसे द्वारा निकाला गया मोर्चा भी प्रत्यक्ष तौर पर मराठी एकीकरण समिति के बैनर तले आयोजित किया गया, नाकि मनसे के बैनर तले। उन्होंने अपने प्रवक्ताओं को भी किसी प्रकार के राजनीतिक वक्तव्य से दूर रहने की हिदायत दे रखी है।

    जब उद्धव ठाकरे की ओर से बार-बार यह जताने की कोशिश की जा रही है, जैसे अब राज ठाकरे की मनसे के साथ उनका गठबंधन हो ही गया हो। राजनीतिक गठबंधन को लेकर फिलहाल राज ठाकरे की उदासीनता बता रही है कि वह 20 साल पहले शिवसेना में अपने साथ हुए व्यवहार को भूले नहीं हैं।

    उदासीनता का दूसरा कारण यह भी है कि अभी स्थानीय निकाय चुनावों में तीन-चार महीने बाकी हैं। तब तक महाराष्ट्र की राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा, इसका अनुमान अभी से लगाना किसी के लिए भी मुश्किल ही होगा। इसलिए उद्धव ठाकरे अपनी तरफ से कोई भी संकेत देते रहें, उसे राज की ‘हां’ तो कतई नहीं समझा जा सकता।

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