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    मानसून सत्र में फिर दिखी विपक्ष की एकजुटता, SIR से लेकर उपराष्ट्रपति पद के कैंडिडेट तक मिले सुर में सुर

    Updated: Fri, 22 Aug 2025 10:00 PM (IST)

    मानसून सत्र में बिहार मतदाता सूची पुनरीक्षण के मुद्दे ने विपक्षी दलों को एकजुट होने का अवसर दिया। आईएनडीआईए दलों के बीच राजनीतिक मुद्दों पर दूरियां कम हुईं। तृणमूल कांग्रेस के नरम रुख और आप के समर्थन ने एकजुटता दिखाई। एसआईआर विवाद और उपराष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी दलों का समन्वय दिखा।

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    विपक्षी आईएनडीआईए के दलों की आपसी दूरियां घटती नजर आयीं (फोटो: पीटीआई)

    संजय मिश्र, जागरण, नई दिल्ली। मानसून सत्र भले ही बिहार में मतदाता सूची के विशेष सघन पुनरीक्षण के सियासी बवंडर से भंवर से बाहर नहीं निकल पाया मगर इसने विपक्षी दलों को एकजुटता के ट्रैक पर लौट आने का मौका जरूर दे दिया। सदन में ज्वलंत सवालों और राजनीतिक मुद्दों को लेकर विपक्षी आईएनडीआईए के दलों की आपसी दूरियां घटती नजर आयीं।

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    विपक्ष की अगुवाई कर रही कांग्रेस को लेकर असहज रही तृणमूल कांग्रेस के तेवर जहां नरम नजर आए। वहीं आईएनडीआईए से बाहर होने के बावजूद आम आदमी पार्टी विपक्षी खेमे के साथ ही कदम ताल करती दिखी। ऑपरेशन सिंदूर या एसआईआर पर चर्चा हो या उपराष्ट्रपति चुनाव की उम्मीदवारी इन सब पर विपक्षी दलों के बीच आपसी सामंजस्य की नई झलक वापसी दिखाई पड़ी।

    बी सुदर्शन रेडडी को उम्मीदवार बनाया

    विपक्षी दलों के लिए गुरूवार को समाप्त हुआ मानसून सत्र इसलिए भी अहम रहेगा कि आईएनडीआईए के घटक दलों का आपसी द्वंद्व लंबे अर्से बाद उनकी राजनीतिक लड़ाई में अवरोधक नहीं बना। वस्तुत: भाजपा के खिलाफ राजनीतिक लड़ाई में विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व करने में कांग्रेस की अग्रणी भूमिका स्वीकार करने को लेकर उहापोह में रही तृणमूल कांग्रेस और आप दुविधा के दौर से निकली नजर आयीं।

    विपक्षी पार्टियों का यह समन्वय राजनीतिक मुद्दों की जमीनी लड़ाई में साथ आने की शुरूआत में भी तब्दील होता दिख रहा है। एसआईआर विवाद पर राजनीतिक तथा कानूनी लड़ाई में कदम ताल तो उपराष्ट्रपति चुनाव में बी सुदर्शन रेडडी को विपक्ष का संयुक्त उम्मीदवार बना इसे वैचारिक लड़ाई का सामूहिक प्रतीक बनाना इसका उदाहरण है। विपक्षी दलों के सियासी एकजुटता के ट्रैक पर लौटने का यह संकेत आईएनडीआईए की अगुवाई कर रही कांग्रेस के लिए राहतकारी है।

    लोकसभा चुनाव में दिखी थी एकजुटता

    खासकर यह देखते हुए कि पिछले दो सत्रों में विपक्षी पार्टियों के बीच ऐसे सामंजस्य का अभाव नजर आया था। लोकसभा चुनाव 2024 के बाद 232 सीटों के साथ मजबूत विपक्ष के रूप में उभरे आईएनडीआईए गठबंधन ने पिछले साल 18वीं लोकसभा के पहले मानसून सत्र में अपनी एकता और तेवर के मजबूत संदेश दिए थे। लेकिन हरियाणा और फिर महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की हार के बाद बीते शीत सत्र तथा बजट सत्र में टीएमसी और आप जैसे दल उससे खींचे-खींचे दिखाई दे रहे थे।

    दिल्ली में हुए चुनाव में कांग्रेस तथा आप के बीच तो सीधी तलवारें खींच गई और इन दोनों पार्टियों ने कांग्रेस नेतृत्व पर निशाना साधने तक से गुरेज नहीं किया। लेकिन बिहार में अचानक 24 जून से एसआईआर कराने के चुनाव आयोग के फैसले ने विपक्षी पार्टियों को आपसी मतभेदों को किनारे रखते हुए साथ आने का मार्ग प्रशस्त कर दिया और मानसून सत्र इसका मंच बन गया। विपक्ष के बीच बहाल होते आपसी भरोसे का ही नतीजा रहा कि ऑपरेशन सिंदूर पर संसद में हुई चर्चा के दौरान आईएनडीआईए की पार्टियों ने सत्ता पक्ष को एकतरफा नैरेटिव का मौका नहीं दिया।

    एसआईआर विवाद की चिंगारी से आए साथ

    लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी ने इसके बाद बेंगलुरू सेंट्रल लोकसभा सीट के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में एक लाख से अधिक फर्जी वोटरों के मामला सामने लाते हुए वोट चोरी का दावा कर एसआईआर विवाद की चिंगारी और सुलगा दी। इस दावे के बाद विपक्ष की सभी पार्टियां संसद से लेकर सड़क तक राहुल गांधी के साथ मजबूती से जमीनी लड़ाई में साथ खड़ी दिखीं।

    मानसून सत्र में विपक्षी विमर्श की काट के लिए सरकार ने जब प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री तथा मंत्रियों की गिरफ्तारी के बाद उन्हें बर्खास्त किए जाने का विधेयक लोकसभा में पेश किया तब भी विपक्षी दलों ने एकजुट आक्रामकता दिखाई। एसआईआर-उपराष्ट्रपति चुनाव पर विपक्षी के बीच बढ़े सहयोग को टीएमसी नेता डेरेक आब्रोयान ने टीम वर्क बताते हुए कहा भाजपा-आरएसएस के खिलाफ लड़ाई में हम सब एकजुट हैं। शिवसेना यूबीटी नेता संजय राऊत ने भी भी कुछ इसी तरह की टिप्पणी की।

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