'नेपाल के घटनाक्रम पर कुरैशी की टिप्पणी लापरवाहीपूर्ण', भाजपा ने उठाए सवाल
भाजपा ने नेपाल में हुई हालिया अराजकता को जीवंत लोकतंत्र बताने पर पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी के बयान को दुस्साहसी करार देते हुए कहा कि उनके इस बयान से कोई आश्चर्य नहीं होता क्योंकि कुरैशी के ही कार्यकाल में भारत के चुनाव आयोग ने अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस की ओपन सोसाइटी फाउंडेशन से जुड़े एक संगठन से एक समझौते पर दस्तखत किए थे।

पीटीआई, नई दिल्ली। भाजपा ने नेपाल में हुई हालिया अराजकता को 'जीवंत लोकतंत्र' बताने पर पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी के बयान को दुस्साहसी करार देते हुए कहा कि उनके इस बयान से कोई आश्चर्य नहीं होता क्योंकि कुरैशी के ही कार्यकाल में भारत के चुनाव आयोग ने अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस की ओपन सोसाइटी फाउंडेशन से जुड़े एक संगठन से एक समझौते पर दस्तखत किए थे।
भाजपा ने कही ये बात
भाजपा के आइटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) एस.वाई. कुरैशी ने मंगलवार को एक्स हैंडल पर नेपाल की स्थिति और चुनावी सुधारों पर दो वीडियो साझा किए।
मालवीय लगाए आरोप
मालवीय ने आरोप लगाया कि कुरैशी के कार्यकाल के दौरान भारत के चुनाव आयोग ने अंतरराष्ट्रीय चुनाव प्रणाली के लिए फाउंडेशन (आइएफईएस) के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए, जो जॉर्ज सोरोस की ओपन सोसाइटी फाउंडेशन से जुड़ा हुआ है, जो एक ज्ञात 'डीप स्टेट' का आपरेटर और कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार का करीबी सहयोगी है।
उन्होंने दावा किया कि कुरैशी ने खुद स्वीकार किया था कि 2007 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के बाद एक ''बड़े नेता'' ने उनसे शिकायत की थी, ये कह कर ''आपने हमारे फर्जी मतदाताओं को वोट देने की अनुमति नहीं दी।'' उस समय, कुरैशी चुनाव आयुक्तों में से एक थे, और समाजवादी पार्टी (जो मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति के लिए कुख्यात है) सत्ता में थी लेकिन चुनाव हार गई।''
मालवीय ने कहा,''अगर कुरैशी को यह पता था, तो उन्होंने इन वर्षों में उस नेता को क्यों ढाल बनाकर रखा? क्या समाजवादी पार्टी वोट चोरी में लिप्त थी? वह नेता कौन था?''
उन्होंने सवाल उठाया कि कुरैशी, जो 2006-2010 तक चुनाव आयुक्त और फिर 2010-2012 तक सीईसी रहे, ने कभी मतदाता सूचियों की विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआइआर) का आदेश क्यों नहीं दिया। यह उनका संवैधानिक कर्तव्य था कि वे कार्रवाई करें!
विवादित विचारों का स्वागत है- मालवीय
उन्होंने कहा कि न तो कुरैशी और न ही उनके उत्तराधिकारी (जिसमें अशोक लवासा और ओ.पी. रावत शामिल हैं) ने 2003 के बाद से कोई एसआइआर शुरू किया। और फिर भी ये लोग अब वर्तमान एसआइआर के मीडिया के आलोचक बने हुए हैं। मालवीय ने कहा, ''विवादित विचारों का स्वागत है, लेकिन जवाबदेही उन लोगों से शुरू होनी चाहिए जिन्होंने मौका पाया और कुछ नहीं किया।''
मालवीय ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रणाली की तुलना करते हुए कहा, ''पहले प्रधानमंत्री अकेले सीईसी की नियुक्ति करते थे। आज विपक्ष के नेता समेत एक तीन सदस्यीय पैनल निर्णय लेता है।''
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