बिहार में कांग्रेस की सक्रियता से बढ़ी राजद की चिंता, बैकफुट पर महसूस कर रहे तेजस्वी; बदलनी पड़ी रणनीति
राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा ने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है। राजद को अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर होना पड़ा है। तेजस्वी यादव जो पहले अगड़ा-पिछड़ा की बात करते थे अब समावेशी राजनीति की ओर लौट रहे हैं। कांग्रेस की सक्रियता से राजद चिंतित है क्योंकि राहुल की यात्रा से कांग्रेसियों में उत्साह जगा है।

अरविंद शर्मा, जागरण, नई दिल्ली। राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा ने बिहार की राजनीति में अप्रत्याशित हलचल पैदा कर दी है। असर इतना गहरा है कि महागठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी राजद को अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर होना पड़ गया है। पिछले विधानसभा चुनाव से उलट तेजस्वी यादव इस बार अब तक अगड़ा-पिछड़ा की बहस को हवा दे रहे थे, लेकिन अब अचानक समावेशी एटूजेड राजनीति की ओर लौटते दिखाई दे रहे हैं।
लगभग दो सप्ताह से उनका कोई ऐसा बयान नहीं आया है, जिसमें अगड़ा-पिछड़ा की बहस हो। दरअसल, बिहार में कांग्रेस की अति सक्रियता ने राजद की चिंता बढ़ा दी है। राहुल की यात्रा ने कांग्रेसियों में उत्साह जगाया और यह संदेश दिया। यात्रा में आई भीड़ ने राजद को इस आशंका से बैकफुट पर जाने के लिए विवश किया कि राजद का आधार वोट (मुस्लिम-यादव) तो कांग्रेस को मिलेगा ही, साथ ही सवर्ण एवं अन्य जातीय समूहों का झुकाव भी अगर बढ़ा तो कांग्रेस अपने हिस्से में आई अधिकतर सीटों पर जीत हासिल कर सकती है।
लालू प्रसाद की विरासत से अलग राह अपनाई
ऐसे में उसका स्ट्राइक रेट सुधर जाएगा और महागठबंधन में उसकी सौदेबाजी की ताक़त बढ़ जाएगी। पिछले विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव ने लालू प्रसाद की विरासत से अलग राह अपनाई थी। उन्होंने न केवल पोस्टरों से लालू-राबड़ी काल की छवि हटाई थी, बल्कि जातीय समीकरण को भी हाशिये पर रखकर रोजगार और विकास के विमर्श को आगे बढ़ाया था, मगर इस बार उन्होंने राहुल की यात्रा से पहले अगड़ा-पिछड़ा के सवाल को उछालना शुरू कर दिया था।
लेकिन यात्रा में उमड़ी भीड़ ने उनकी इस रणनीति को झटका पहुंचाया। तेजस्वी शायद समझने लगे हैं कि जातीय राजनीति पर ज्यादा जोर देने से कांग्रेस को अप्रत्याशित लाभ मिल सकता है। राजद के आंतरिक सर्वेक्षण भी इसी खतरे की पुष्टि करते हैं। सर्वे की रिपोर्ट बताती है कि राहुल गांधी की सक्रियता से दशकों से हाशिये पर खड़ी कांग्रेस अचानक चर्चा के केंद्र में आ गई है। लोकसभा चुनाव में राजद की तुलना में बेहतर स्ट्राइक रेट हासिल कर चुकी कांग्रेस अगर विधानसभा में भी वही प्रदर्शन दोहराती है तो राजद की स्थिति कमजोर हो सकती है।
मंदिरों में जाना भी कांग्रेस की नई रणनीति
यात्रा के दौरान राहुल का मंदिरों में जाना भी कांग्रेस की नई रणनीति का हिस्सा था। इससे राजद को यह संकेत मिला कि उसे सनातन विरोधी बयानों से बचना होगा। यही कारण है कि पूर्व शिक्षा मंत्री प्रो. चंद्रशेखर और विधायक फत्ते बहादुर कुशवाहा जैसे बयानवीर नेताओं को राजद ने इस बार हाशिये पर डाल दिया है। तेजस्वी यादव ने भी यात्रा के दौरान अपने भाषणों में जातीय मुद्दों से पूरी तरह दूरी बनाई।
उन्होंने लोकतंत्र, मताधिकार और राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की अपील पर ज्यादा जोर दिया। यानी कांग्रेस की बढ़ती ताक़त ने राजद को उसकी सीमाओं का एहसास करा दिया और मजबूर किया कि वह फिर से बहुजन की जगह सर्वजन (एटूजेड) की राजनीति का झंडा उठाए। स्पष्ट है कि आने वाले चुनावी समीकरण इसी बदलाव से तय होंगे।
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