'वंदे मातरम को मिले राष्ट्रगान जैसा सम्मान', सदन में गरजे राजनाथ सिंह; कांग्रेस पर साधा निशाना
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में वंदे मातरम को राष्ट्रगान के समान सम्मान देने का प्रस्ताव रखा, जिससे एक राष्ट्रीय बहस छिड़ गई। उन्होंने कहा कि स ...और पढ़ें
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सदन में गरजे राजनाथ सिंह कांग्रेस पर साधा निशाना (फाइल फोटो)
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ पर लोकसभा में हुई विशेष चर्चा सिर्फ औपचारिक कार्यक्रम नहीं रही, बल्कि राष्ट्र की सांस्कृतिक चेतना को नए सिरे से परिभाषित करने वाले विमर्श में बदल गई।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सदन में जिस गंभीरता से यह प्रस्ताव रखा कि संविधान के अनुच्छेद 51(ए) में नया मौलिक कर्तव्य जोड़कर वंदे मातरम को राष्ट्रगान जैसा सम्मान देने पर विचार होना चाहिए, उसने इस चर्चा को राष्ट्रीय बहस में तब्दील कर दिया।
उनकी दलील थी कि स्वतंत्रता के बाद वंदे मातरम को वह प्रतिष्ठा नहीं मिल सकी, जिसका वह हकदार था। इसलिए समय आ गया है कि इस ऐतिहासिक भूल को सुधारा जाए और दोनों प्रतीकों को समान आदर दिया जाए। ध्यान रहे कि इसका यह अर्थ होगा कि हर किसी को वंदे मातरम को भी जन गण मन की तरह ही आदर देना होगा।
राजनाथ सिंह ने क्या कहा?
यह संवैधानिक कर्तव्यों में शामिल होगा और इसका निरादर करने पर कानूनी कार्रवाई का भी रास्ता खुल सकता है। जबकि कई दल व नेता खुलेआम वंदे मातरम का विरोध करते हैं। राजनाथ सिंह ने अपने भाषण में यह धारणा तोड़ने की कोशिश की कि वंदे मातरम किसी सांप्रदायिक विचार का परिचायक है।
उनका कहना था कि कुछ कट्टरपंथियों ने जानबूझकर इसे धर्म के चश्मे से देखने की कोशिश की, जबकि यह गीत भारत माता के प्रति समर्पण और स्वतंत्रता की पुकार का प्रतीक है। उन्होंने भावपूर्ण अंदाज में कहा कि जन गण मन और वंदे मातरम भारत माता की दो आंखें हैं-एक की गरिमा दूसरे से अलग नहीं हो सकती।
लंबे समय तक वंदे मातरम की मूल भावना को तोड़ा-मरोड़ा गया, जबकि न तो इसका रचना-काल किसी धार्मिक विवाद से जुड़ा था और न इसकी आत्मा किसी संप्रदाय के विरोध में खड़ी थी।उन्होंने कांग्रेस की नेहरू-सरकार पर यह आरोप भी लगाया कि राष्ट्रगीत को अनावश्यक रूप से खंडित कर उसकी मूल भावना को ठेस पहुंचाई गई।
राजनाथ का तर्क था कि भारतीय परंपरा जोड़ने की रही है, मगर जिन्ना के नजरिये से देखने वालों ने वंदे मातरम को संदेह की कसौटी पर कसकर उसका राजनीतिक उपयोग कर लिया। यह आरोप सिर्फ इतिहास की समीक्षा नहीं, बल्कि वर्तमान राजनीति की दिशा पर संकेत भी था, जिसमें वे तुष्टिकरण को सबसे बड़ी समस्या बताते रहे।
'वंदे मातरम बना प्रतिरोध का मंत्र'
रक्षा मंत्री ने याद दिलाया कि वंदे मातरम किसी क्षेत्रीय भावना का गीत नहीं बल्कि पूरे उपमहाद्वीप में स्वतंत्रता की चेतना का साझा प्रतीक रहा है। बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा बंगाल में लिखा गया यह गीत जल्द ही उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक स्वतंत्रता आंदोलन की रगों में दौड़ने लगा। पंजाब से तमिलनाडु और महाराष्ट्र से उत्तर भारत तक यह नारा ब्रिटिश शासन के खिलाफ प्रतिरोध का मंत्र बना।
विदेशों में रहने वाले भारतीयों के बीच भी इसकी गूंज स्वतंत्रता की चाह का प्रमाण थी। उनके अनुसार, वंदे मातरम ने सिर्फ आंदोलन नहीं जगाया, बल्कि एक सांस्कृतिक एकता की भावना को भी मजबूती दी।राजनाथ ¨सह ने अफसोस जताया कि बंकिमचंद्र की विरासत और यहां तक कि वह स्थान जहां यह गीत रचा गया, लंबे समय तक उपेक्षित रहा। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि केंद्र सरकार द्वारा बांग्ला को प्राचीन भाषा का दर्जा देना बंकिम बाबू के योगदान को मिली मान्यता का द्योतक है।

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