बंगाल चुनाव में झामुमो का 'प्लान बी': ममता का साथ या बिहार जैसा अनुभव?
West Bengal Assembly Election 2026: पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले सियासी समीकरण बदलने लगे हैं। बंगाल के आदिवासी बहुल इलाकों में हेमंत सोरेन की झ ...और पढ़ें

बंगाल चुनाव में झामुमो की 'चुप्पी' के पीछे क्या कोई बड़ी डील है? फोटो- एआई एडिटेड जागरण
प्रदीप सिंह, झारखंड। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव की आहट तेज होते ही सियासी सरगर्मी अपने चरम पर है। भाजपा की आक्रामक राजनीति, केंद्रीय नेतृत्व की लगातार सक्रियता और 2021 के चुनाव में मुख्य विपक्षी दल बनने का अनुभव ये सभी कारक तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी के लिए इस चुनाव को बेहद अहम बना देते हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इस बार झारखंड से बाहर सियासी विस्तार की इच्छा पाले झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और तृणमूल कांग्रेस के बीच तालमेल ठोस रूप ले पाएगा या फिर झामुमो को बिहार जैसा ही अनुभव झेलना पड़ेगा?
पिछले चुनाव में क्या अलग हुआ था?
पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा सत्ता से भले दूर रह गई हो, लेकिन 77 सीटों तक पहुंचना किसी भी राजनीतिक दल के लिए असाधारण छलांग मानी जाएगी। खासकर उत्तर बंगाल, जंगल महल और आदिवासी बहुल इलाकों में भाजपा की पैठ ने तृणमूल कांग्रेस के सामने नई चुनौती खड़ी की। ममता बनर्जी इस बार उसी सामाजिक आधार को फिर से मजबूत करने में जुटी हैं, जहां कहीं न कहीं भाजपा सेंध लगाने में सफल रही थी।
बंगाल के झारखंड से सटे जिलों में आदिवासी मतदाताओं की निर्णायक भूमिका है। यही वह क्षेत्र है, जहां झामुमो की ऐतिहासिक स्वीकार्यता रही है। दिवंगत दिशोम गुरु शिबू सोरेन का इन इलाकों में लंबा राजनीतिक जुड़ाव रहा है। वे न केवल झारखंड, बल्कि बंगाल के आदिवासी इलाकों में भी सम्मान और पहचान रखते थे। यही विरासत आज हेमंत सोरेन के राजनीतिक कद को इन क्षेत्रों में प्रभावशाली बनाती है।
क्या बंगाल में गेम चेंजर हो सकती है झामुमो?
बंगाल में लगभग एक दर्जन विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां झामुमो की भूमिका गेम चेंजर हो सकती है। झामुमो यदि सीधे चुनाव लड़े या तृणमूल के साथ स्पष्ट तालमेल में जाए तो आदिवासी वोटों के ध्रुवीकरण को रोकने में ममता बनर्जी को लाभ मिल सकता है। खासकर वहां, जहां भाजपा ने आदिवासी असंतोष को मुद्दा बनाकर अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश की है।
हेमंत सोरेन और ममता बनर्जी के राजनीतिक रिश्ते नए नहीं हैं। गैर भाजपा शासित प्रांतों, संघीय ढांचे और राज्यों के अधिकारों के सवाल पर दोनों नेताओं की सोच में साम्य दिखता है। पिछले विधानसभा चुनाव में औपचारिक गठबंधन भले न हो सका हो, लेकिन ममता बनर्जी के आग्रह पर हेमंत सोरेन ने तृणमूल उम्मीदवारों के समर्थन में प्रचार किया था।
यह संकेत था कि राजनीतिक दरवाजे पूरी तरह बंद नहीं हैं। हालांकि, पिछली बार तालमेल न बन पाना झामुमो के लिए एक अधूरा अवसर साबित हुआ। संगठनात्मक सीमाएं, सीटों के बंटवारे पर सहमति न बनना ये सभी कारण तब आड़े आए।
इस बार यदि झामुमो सिर्फ समर्थन तक सीमित रहता है और उसे ठोस सीटें नहीं मिलतीं तो उसके लिए यह फिर एक प्रतीकात्मक भूमिका बनकर रह सकती है। हालिया बिहार चुनाव में झामुमो का अनुभव निराशाजनक रहा है। शुरुआती दौर में राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस की ओर से सीटें दिए जाने का संकेत मिला, लेकिन अंतिम समय में झामुमो को चुनाव लड़ने का अवसर ही नहीं मिला।
इस घटनाक्रम ने झामुमो नेतृत्व को यह सिखाया कि केवल आश्वासन पर्याप्त नहीं, बल्कि लिखित और स्पष्ट समझौता जरूरी है। बंगाल में भी यही सबसे बड़ा सवाल है क्या झामुमो इस बार केवल भरोसे पर चलेगा, या ठोस राजनीतिक हिस्सेदारी की मांग करेगा?
ममता और हेमंत के लिए क्या हैं बंगाल चुनाव के मायने?
ममता बनर्जी के लिए भी यह चुनाव करो या मरो जैसा है। भाजपा के बढ़ते चुनावी रथ के बीच छोटे-मंझोले सहयोगियों को साथ लेना उनकी मजबूरी बनती जा रही है। झामुमो का साथ लेने से उन्हें दोहरे लाभ मिल सकते हैं- एक आदिवासी इलाकों में भाजपा के खिलाफ मजबूत संदेश और दूसरा राष्ट्रीय स्तर पर गैर भाजपा एकता का संकेत।
झामुमो के लिए बंगाल चुनाव केवल सीटों का सवाल नहीं, बल्कि राजनीतिक पहचान का भी प्रश्न है। यदि वह तृणमूल के साथ सम्मानजनक समझौते में जाता है तो वह स्वयं को झारखंड से बाहर एक क्षेत्रीय आदिवासी ताकत के रूप में और मजबूत कर सकता है। लेकिन यदि बिहार की तरह उसे आखिरी समय में किनारे कर दिया गया तो यह उसके राजनीतिक आत्मविश्वास को एक झटका देगा, ऐसा कहा जा सकता है।
यदि स्पष्ट तालमेल, सम्मानजनक सीटें और साझा प्रचार रणनीति बनती है, तो बंगाल में यह गठबंधन भाजपा के लिए चुनौती खड़ी कर सकता है। लेकिन अगर बात केवल आश्वासन और प्रतीकात्मक समर्थन तक सीमित रही तो झामुमो के लिए बंगाल भी बिहार जैसा कड़वा अनुभव बन सकता है। फिलहाल दोनों दलों के बीच आरंभिक दौर की बातचीत आरंभ हुई है। स्पष्ट परिणाम के लिए अभी कुछ दिनों तक प्रतीक्षा करनी होगी।

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