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    UP Politics: BJP का 'PDA काट' दांव, क्या पूर्वांचल से मिलेगा भाजपा को अगला अध्यक्ष?

    Updated: Mon, 07 Jul 2025 02:00 PM (IST)

    उत्तर प्रदेश में सियासी हलचल जोरों पर है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए कवायद और कयास का दौर चालू है तो इधर प्रदेश अध्यक्ष की भी तलाश शुरू हो गई ह ...और पढ़ें

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    Uttar Pradesh Politics: पूर्वांचल से मिलेगा यूपी को नया अध्यक्ष?

    भारतीय बसंत कुमार, वाराणसी। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए कवायद और कयास के अनेक दौर चल रहे हैं तो प्रदेश अध्यक्ष के लिए भी यह उपक्रम जारी है। मुख्य विपक्षी समाजवादी पार्टी के पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक कार्ड के नैरेटिव की काट प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के चयन में ढूंढी जा रही होगी।

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    सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने घोर राजनीतिक-सामाजिक निहितार्थ से आजमगढ़ में अपना गृह प्रवेश किया है। पूर्वांचल की राजनीति में अपनी पैठ और गहरी करने के लिए मैनपुरी, सैफई और लखनऊ के साथ-साथ आजमगढ़ में नए भवन में प्रवेश को लेकर अखिलेश का उत्साह उनके बयानों में उमग रहा है।

    अखिलेश के लिए क्यों जरूरी है आजमगढ़?

    आजमगढ़ के उत्तर में गोरखपुर है जो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गढ़ है और उसके दक्षिण में प्रधानमंत्री मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी है। दलगत शक्ति के इन दो ध्रुवों के बीच अपने स्पेस को बचाए रखने की जुगत अखिलेश यादव के राजनीतिक भविष्य की दिशा तय करेगी। दोनों ध्रुव के मध्य आजमगढ़ घोषित तौर पर सपा का गढ़ है।

    इस समय आजमगढ़ की सभी दस सीटों पर सपा के विधायक हैं और दोनों लोकसभा सीटें भी उसके ही खाते में दर्ज हैं। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में 62 से 33 सीटों के अवरोह को रोकने या आरोह की ओर बढ़ने के लिए सपा के पीडीए (पिछड़ा-दलित और अल्पसंख्यक) बनाम भाजपा के पीडी (पिछड़ा-दलित) नैरेटिव के कील-कांटे दुरुस्त किए जा रहे हैं।

    सामने पंचायत चुनाव और उसकी पीठ पर सवार विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा कोई कोर कसर बाकी नहीं रखना चाहती है।

    भाजपा अध्‍यक्ष की लिस्‍ट में किसका नाम?

    भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए केंद्रीय मंत्री से लेकर राज्य सरकार के मंत्रियों, विधायकों से लेकर विधान परिषद सदस्यों की सूची रोज उलटी-पलटी जाती रहती है, पर यह भी सच है कि इस पार्टी में हमेशा औचक और अपूर्वानुमानित नाम के सिर सेहरा बंध जाता है।

    घोषणा से पूर्व कोई कंफर्म नहीं कर सकता कि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के लिए कौन अंतिम नाम है। पिछड़ी और दलित जातियों के कई उपनाम चर्चा के लिए तलाश लिए गए हैं।

    जाट भूपेन्द्र सिंह चौधरी का कार्यकाल पूरा हो चुका है। उनसे पूर्व भी ओबीसी अध्यक्ष रह चुके हैं।  केशव प्रसाद मौर्य 2017 में और स्वतंत्र देव सिंह 2022 में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं। सामने पंचायत चुनाव है। सभी पार्टियां अपनी सोशल इंजीनियरिंग में लगी हैं।

    पूर्वांचल की डेमोग्राफी में कितना हिट है PDA फॉर्मूला?

    आजमगढ़ के अनवरगंज में जिस आवासीय भवन और पार्टी कार्यालय का अखिलेश ने उद्घाटन किया है, उस भवन का नाम ही पीडीए भवन रखा गया है।

    अखिलेश ने कहा है कि सैफई के बाद यह उनका दूसरा स्थायी पता होगा और यह भवन ही पूर्वांचल में पार्टी का मुख्यालय भी होगा। पीडीए भवन 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए सपा की संरचनात्मक नींव है। 11 किसानों को साढ़े छह करोड़ रुपये देकर यह जमीन वर्ष 2021 में खरीदी गई थी।

    पूर्वांचल के हिस्से में 28 जिलों की 164 विधानसभा सीटें आती हैं। पूर्वांचल की डेमोग्राफी में सपा का पीडीए फार्मूला मुफीद बैठता है। यादव, कुर्मी, राजभर, कुशवाहा के साथ ही अल्पसंख्यकों का अच्छा दखल है। पार्टी के अब तक के लोकसभा चुनाव परिणाम में सबसे श्रेष्ठ परिणाम 2024 का लोकसभा चुनाव ही रहा है। 37 सीटें सपा के खाते में आईं हैं।

    'मैनपुरी दिल तो आजमगढ़ धड़कन'

    कभी मुलायम सिंह ने कहा था कि अगर मैनपुरी उनका दिल है तो आजमगढ़ उनकी धड़कन। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में दस सीट, वर्ष 2017 के चुनाव में नौ सीट और 2022 के चुनाव में पार्टी को सभी दस सीटों पर यहां विजय हासिल हुई है।

    हालांकि, मुलायम परिवार के इस सुरक्षित ठौर में दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ को उम्मीदवार बनाकर भाजपा की सेंध भी लगी थी। अखिलेश का घर सपा के घेरे को कितनी मजबूती देता है इसकी परख शेष है।

    आम महोत्सव और राजनीतिक रस का मीठा-कड़वा स्वाद

    आम के इस मौसम में राजनीति का रस शास्त्र नए-नए स्वादों का प्रकटीकरण कर रहा है। आयुर्वेद में रस शास्त्र का मुख्य उद्देश्य औषधीय गुणों वाले पदार्थों का उपयोग करके विभिन्न रोगों का इलाज करना है।

    इधर, आम महोत्सव 2025 के ठीक एक दिन पहले राजधानी में राजनीतिक रस शास्त्र का कड़वा स्वाद भी घुलता रहा। प्रसंग सोनेलाल पटेल की जयंती पर आयोजित जन स्वाभिमान दिवस का है।

    दिवस की पूर्व संध्या पर अपना दल का एक गुट अपने बागी होने का भाव पैदा करता है। परिणाम सामने था। स्वाभिमान दिवस का समस्त आयोजन अब नाट्य शास्त्र के रौद्र रस का रूप ले लेता है।

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    बागियों के अलग से अपना मोर्चा बनाने से खफा दल के प्रमुख आशीष पटेल ने संकेतों में भाजपा को ही अपने निशाने पर रखा। अब यह कयास लगाया जा रहा है कि आशीष मंत्री पद का मोह त्याग देंगे। यह सब आकस्मिक नहीं है।

    अपना दल की सांसद और केंद्र सरकार में राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल की बहन पल्लवी पटेल ने जब प्राविधिक शिक्षा विभाग की कार्यशैली पर सवाल उठाए थे और धरना दिया था, तब भी आशीष ‘अदृश्य समर्थन’ या ‘खामोशी’ पर सवाल खड़े कर रहे थे। फिलहाल, सवाल ही सवाल हैं और जवाब के लिए अभी इंतजार करना होगा।

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