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    'नशे में गोलीबारी करने वाले BSF जवान की बर्खास्तगी सही...',अंधाधुंध फायरिंग मामले में पंजाब और हरियाणा HC का फैसला

    Updated: Sun, 07 Sep 2025 03:00 AM (IST)

    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने बीएसएफ के पूर्व कांस्टेबल राजेश कुमार की अपील खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि नशे में अंतरराष्ट्रीय सीमा पर अंधाधुंध फायरिंग गंभीर अनुशासनहीनता है जिससे कूटनीतिक विवाद हो सकता था। राजेश कुमार को 2009 में बर्खास्त किया गया था कोर्ट ने कहा कि सीमा पर तैनात जवान से उच्च अनुशासन की उम्मीद की जाती है।

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    सीमा पर नशे में बिना कारण 13 राउंड फायरिंग (हाई कोर्ट फाइल फोटो)

    दयानंद शर्मा, पंचकूला। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने पूर्व बीएसएफ कॉन्स्टेबल राजेश कुमार की अपील को सख्त शब्दों में खारिज कर दिया है।

    कोर्ट ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय सीमा जैसी संवेदनशील जगह पर नशे की हालत में अंधाधुंध फायरिंग न केवल गंभीर अनुशासनहीनता है, बल्कि इससे दो देशों के बीच कूटनीतिक विवाद भी उत्पन्न हो सकता था। इसलिए बर्खास्तगी की सजा अनुचित या असमानुपातिक नहीं मानी जा सकती।

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    राजेश कुमार ने अपनी बर्खास्तगी को चुनौती दी थी। कोर्ट ने साफ कहा कि अंतरराष्ट्रीय सीमा पर तैनात जवान से उच्च अनुशासन की अपेक्षा की जाती है, लेकिन शराब के नशे में बिना किसी कारण 13 राउंड फायरिंग करना गंभीर अनुशासनहीनता है।

    जस्टिस हरसिमरन सिंह सेठी और जस्टिस विकास सूरी की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि ऐसी परिस्थितियों में की गई फायरिंग न केवल असंयमित और अनावश्यक है बल्कि इससे देश की छवि भी खराब हो सकती है।

    कोर्ट ने कहा कि “बॉर्डर पर तैनात जवानों को उच्च अनुशासन बनाए रखना आवश्यक है। नशे में की गई फायरिंग और भी गंभीर है, क्योंकि यह सीमा क्षेत्र जैसे संवेदनशील इलाके में हुआ।”

    पूर्व कांस्टेबल राजेश कुमार को 2009 में सिक्योरिटी फोर्स कोर्ट ने दोषी करार दिया था और सेवा से बर्खास्त कर दिया था।

    आरोप था कि वह ड्यूटी पर शराब पीकर पहुंचे और इसके बाद 13 राउंड फायर कर दिए। इसके खिलाफ राजेश कुमार ने दलील दी कि उन्हें बचाव की तैयारी का पर्याप्त समय नहीं मिला और प्रमुख सबूत उन्हें केवल दो दिन पहले उपलब्ध कराए गए।

    इसके साथ ही उनके वकील ने दिल्ली हाईकोर्ट के एक फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि बीएसएफ नियम 142(2) के तहत दोष स्वीकार करने वाले बयान पर अभियुक्त का हस्ताक्षर होना आवश्यक है। राजेश कुमार का कहना था कि उनका दोष स्वीकार करना नियमों के अनुरूप दर्ज नहीं किया गया।

    खंडपीठ ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि दोष स्वीकार करने पर हस्ताक्षर की शर्त नवंबर 2011 के बाद नियमों में जोड़ी गई थी।

    राजेश कुमार के मामले में यह नियम लागू नहीं था। रिकॉर्ड से स्पष्ट है कि उन्हें आरोपों की जानकारी दी गई, दोष स्वीकार करने के परिणाम समझाए गए और उन्होंने स्वयं उसे चुनौती न देने का विकल्प चुना।

    कोर्ट ने माना कि यह कृत्य इतना गंभीर था कि सेवा से बर्खास्तगी की सजा को “अत्यधिक कठोर या असंगत” नहीं कहा जा सकता। इस प्रकार, हाईकोर्ट ने समरी सिक्योरिटी फोर्स कोर्ट और एकल पीठ के आदेश को बरकरार रखते हुए अपील खारिज कर दी।

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