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    कैग ऑडिट रिपोर्ट ने चंडीगढ़ पीजीआई की खोल दी पोल, फंड वापसी पर उठने लगे सवाल

    Updated: Tue, 16 Sep 2025 11:38 AM (IST)

    पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीजीआई) के 70 रिसर्च प्रोजेक्ट्स में 70 लाख रुपये फंसे हुए हैं। कैग ऑडिट रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि 31 मार्च 2021 तक ये प्रोजेक्ट्स निष्क्रिय थे और फंड वापस नहीं किया गया। ऑडिट टीम ने पीजीआई से सभी प्रोजेक्ट्स की लिस्ट मांगी है जिनका पैसा अभी तक वापस नहीं हुआ है। यह मामला पीजीआई की जवाबदेही पर सवाल उठाता है।

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    70 रिसर्च प्रोजेक्ट्स बंद होने का मामला सामने आया है।

    जागरण संवाददाता, चंडीगढ़। पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च ( पीजीआइ) के रिसर्च ग्रांट सेल (आरजीसी) में करोड़ों का फंड अनसुलझा पड़ा है। इसके साथ रिसर्च इंस्टीट्यूट में 70 रिसर्च प्रोजेक्ट्स बंद होने का मामला सामने आया है। पीजीआई में रिसर्च करने के लिए कई एजेंसियां फंड देती है, लेकिन फंड लेने के बाद भी संस्थान में प्रोजेक्ट्स बंद होना संस्थान की लापरवाही को उजागर करता है। इसका खुलासा कैग ऑडिट रिपोर्ट में हुआ है।

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    रिपोर्ट के अनुसार 31 मार्च 2021 तक कुल 70 प्रोजेक्ट्स निष्क्रिय पड़े मिले, जिनमें 70.11 लाख रुपये का बैलेंस बंद पड़ा है। ये प्रोजेक्ट्स 9 मई 2018 से 31 दिसंबर 2020 के बीच बंद हुए थे। ऑडिट ने सवाल उठाया है कि यह रकम आखिर क्यों स्पाॅन्सर एजेंसियों को वापस नहीं की गई। जांच में यह भी साफ नहीं हुआ कि ये प्रोजेक्ट्स औपचारिक रूप से पूरे हुए या बीच में ही बंद कर दिए गए।

    ऑडिट करने आई टीम ने पीजीआई प्रशासन से उन सभी प्रोजेक्ट्स की लिस्ट मांगी है, जिनका पैसा अब तक वापस नहीं किया गया है। इस लिस्ट में हर प्रोजेक्ट का नाम, एजेंसी का नाम, प्रोजेक्ट शुरू और खत्म होने की तारीख, एजेंसी से मिले फंड की राशि, पीजीआई द्वारा खर्च की गई राशि और बची हुई रकम का ब्यौरा शामिल करने को कहा गया है।

    रिसर्च प्रोजेक्ट्स की साख पर सवाल

    विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह का अनसुलझा फंड न केवल रिसर्च प्रोजेक्ट्स की साख पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि भविष्य में नई एजेंसियों से फंडिंग आने पर भी असर डाल सकता है। इस बारे में संस्थान के प्रवक्ता का कहना है कि संबंधित ऑडिट आपत्ति पर अपना जवाब पहले ही ऑडिट टीम को भेजा जा चुका है। साथ ही, संबंधित प्रोजेक्ट्स का विवरण और शेष राशि की स्थिति समय-समय पर साझा की जाती रही है।