चंडीगढ़ में डंपिंग ग्राउंड साइट पर प्रबंधन में गड़बड़ी, मानसून में कचरे के साथ मिला बारिश का पानी, एनजीटी के पास पहुंची रिपोर्ट
चंडीगढ़ के डड्डूमाजरा लैंडफिल साइट पर कुप्रबंधन को लेकर सीपीसीबी ने एनजीटी में चिंता जताई है। मानसून में बारिश का पानी कचरे से मिलने के कारण स्थिति गंभीर हो गई। बिना टेंडर के पीएसयू को काम दिया गया, जो समय पर पूरा नहीं हुआ। बायो माइनिंग में गड़बड़ियों की शिकायत केंद्र तक पहुंची है, जिसमें सीबीआई जांच की मांग की गई है।

चंडीगढ़ में धनास रोड पर कचरे का पहाड़। यहां से गुजरने वाले लोग हो रहे परेशान।
राजेश ढल्ल, चंडीगढ़ । नगर निगम के अधिकारियों के हवाई दावों की पोल हर रोज खुलती जा रही है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के समक्ष दाखिल एक स्टेटस रिपोर्ट में सीपीसीसी ने इस मुद्दे की ओर इशारा किया है। रिपोर्ट के अनुसार, मानसून के दौरान शहर में भारी वर्षा हुई थी, जिसके कारण बारिश का पानी ठोस कचरे के साथ मिल गया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सीपीसीसी अधिकारियों ने साइट के नियमित निरीक्षण के दौरान पाया कि लैंडफिल साइट पर प्रबंधन में गड़बड़ी हो रही है। इसके तुरंत बाद नगर निगम (एमसी) को नोटिस जारी किया गया, जिसमें कुप्रबंधन की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए निर्देश दिए गए कि किसी भी स्थिति में साफ की गई साइटों पर अप्रसंस्कृत कचरा न डाला जाए। यह भी कहा गया कि बाउंड्री वाल की मरम्मत की जाए ताकि कोई भी लीचेट (रिसाव) पटियाला की राव (चो) में न पहुंचे।
रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्तमान में साइट पर दो लीचेट ट्रीटमेंट प्लांट (एलटीपी) कार्यरत हैं। एक 100 केएलडी क्षमता वाला गीले कचरे के कम्पोस्ट प्लांट पर और दूसरा 26 केएलडी क्षमता वाला नए लैंडफिल क्षेत्र में लगा है। सीपीसीसी ने कहा कि एलटीपी से निकलने वाले ट्रीटेड अपशिष्ट जल की गुणवत्ता में सुधार हुआ है, लेकिन यह अभी भी मानक से ऊपर है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि अंतरिम व्यवस्था के रूप में, नगर निगम बद्दी (हिमाचल प्रदेश) स्थित कामन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (सीईटीपी) से समझौता करने की प्रक्रिया में है, ताकि ट्रीटेड अपशिष्ट को वहां भेजकर और बेहतर तरीके से शुद्ध किया जा सके। रिपोर्ट के अनुसार, अगस्त और अक्टूबर माह में किए गए नमूना परीक्षणों के दौरान पटियाला की राव में लीचेट के मिश्रण के कोई प्रमाण नहीं मिले हैं। पटियाला की राव पंजाब क्षेत्र से चंडीगढ़ में बहती है, और अपस्ट्रीम (पंजाब क्षेत्र से पहले) तथा डाउनस्ट्रीम (चंडीगढ़ क्षेत्र के बाद) के नमूनों में लीचेट की कोई मिलावट नहीं पाई गई।
नवंबर में काम पूरा करने का दावा
नगर निगम ने दावा किया है कि कचरा प्रबंधन को विशेष रूप से मानसून के दौरान बेहतर करने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। डंपिंग ग्राउंड के कचरे का बायो-रीमेडिएशन कार्य नवंबर 2025 तक पूरा कर लिया जाएगा।
बाउंड्री वाल की मरम्मत की जा रही है ताकि किसी भी स्थिति में रिसाव बाहर न निकले। मानसून में लीचेट को नियंत्रित करने के लिए चैनल बनाए जा रहे हैं और गीले कचरे के संयंत्र के आसपास पक्की फर्श डाली जा रही है ताकि लीचेट जमा न हो।
इसके अतिरिक्त 250 केएलडी क्षमता वाला एक नया लीचेट ट्रीटमेंट प्लांट भी लैंडफिल साइट के अंतिम छोर पर स्थापित करने की योजना है, ताकि भारी वर्षा के दौरान उत्पन्न सभी लीचेट को उपचार के बाद ही पर्यावरण में छोड़ा जा सके। यह बात नगर निगम ने अपने हलफनामे में एनजीटी को बताई है।
एनजीटी का डर दिखा, महंगे रेट पर काम अलाॅट कराया
बायो माइनिंग के काम में निगम के अधिकारियों ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल का डर दिखाकर इस साल मार्च माह में दो पीएसयू को महंगे दामों पर काम अलाट किया था। चीफ इंजीनियर ने दावा किया था कि यह दो पीएसयू मई माह के अंत तक डंपिंग ग्राउंड से डेढ़ लाख टन कचरा उठा देंगे। हालत यह है कि सात माह बीत जाने के बावजूद आधा कचरा भी इन पीएसयू ने नहीं उठाया है। नगर निगम ने यह काम अर्जेंट बताकर बिना किसी टेंडर के पीएसयू को दिया। पीएसयू ने काम प्राइवेट कंपनियों को सबलेट कर दिया।
पीएसयू को अलाॅटमेंट पर सवाल
शहर में बायो माइनिंग के काम में गड़बड़ियों की शिकायत केंद्र के पास भी पहुंच गई हैं। इस शिकायत में कहा गया है कि निगम के अधिकारियों ने न केवल राजस्व का नुकसान पहुंचाया बल्कि सीवीसी और जनरल फाइनेंशियल रूल्स की वाॅयलेशन कर चहेती कंपनियों को बैक डोर एंट्री दी। पीएसयू को केवल बिना टेंडर के काम देने का जरिया बनाया। इस पूरी प्रक्रिया की सीबीआई जांच की मांग भी की जा रही है।
दस साल में कचरे को प्रोसेस और गारबेज प्लांट पर हुए खर्चें की जांच होनी चाहिए। हैरानी की बात है कि जैसे-जैसे खर्चा किया जा रहा है, वैसे-वैसे कचरे का पहाड़ बढ़ता जा रहा है।
-सतीश कैंथ, पूर्व पार्षद

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