'लापरवाही से मौत के केस में समझौता मान्य नहीं, FIR नहीं होगी रद', हाईकोर्ट का सख्त फैसला
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने कहा कि लापरवाही से मौत के मामलों में दर्ज एफआईआर समझौते के आधार पर रद्द नहीं की जा सकती। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वास्तविक पीड़ित मृतक होता है, न कि एफआईआर दर्ज कराने वाला। न्यायमूर्ति सुमित गोयल ने कहा कि मृतक सहमति देने में असमर्थ होता है, इसलिए समझौता मान्य नहीं है। अदालत ने एक याचिका खारिज करते हुए कहा कि ऐसे मामलों में समझौते से कानून का शासन कमजोर होगा।
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लापरवाही से मौत के मामले में दर्ज एफआइआर समझौते से नहीं हो सकती रद: हाई कोर्ट
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि लापरवाही से मौत के मामलों में दर्ज एफआइआर को समझौते के आधार पर रद नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में असली पीड़ित मृतक होता है न कि एफआइआर दर्ज कराने वाला या उसके स्वजन। इसलिए स्वजन द्वारा किया समझौता कानूनी तौर पर मान्य नहीं हो सकता।
जस्टिस सुमित गोयल ने कहा कि समझौते का पूरा सिद्धांत पीड़ित की स्वैच्छिक सहमति पर आधारित होता है, लेकिन मौत के मामलों में मृतक अपनी सहमति दे ही नहीं सकता इसलिए यह आधार शुरू से ही असंभव है।
यह फैसला उस मामले में आया जिसमें जून 2022 में दर्ज एफआइआर और मोगा की अदालत की ओर से चार अप्रैल 2024 को सुनाई गई सजा को रद करने की मांग की गई थी। याचिकाकर्ता ने बताया था कि वह शिकायतकर्ता के साथ समझौता कर चुका है पर हाई कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया।
कोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता या मृतक के स्वजन वास्तविक पीड़ित नहीं हैं और वे मृतक की ओर से किसी समझौते का अधिकार नहीं रखते है। जस्टिस गोयल ने स्पष्ट कहा कि मौत जैसे अपरिवर्तनीय नुकसान वाले मामलों में समझौता न केवल कानूनी रूप से कमजोर है, बल्कि समाज के हितों के भी खिलाफ है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि ऐसे मामलों में समझौते के नाम पर एफआइआर रद होने लगे तो यह कानून के शासन को कमजोर करेगा और गंभीर अपराध की गंभीरता को तुच्छ बना देगा।
अदालत ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि ऐसे मामलों में समझौते का कोई स्थान नहीं है क्योंकि मृतक ही असली पीड़ित है और उसकी आवाज कानूनी रूप से कभी सहमति नहीं दे सकती है।

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