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    'पंजाब सरकार का ADTT टेंडर बन रहा एक बड़ा घोटाला', सड़क सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ. कमल सोई ने क्यों लगाए गंभीर आरोप?

    Updated: Fri, 12 Sep 2025 07:23 PM (IST)

    सड़क सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ. कमल सोई ने पंजाब सरकार के एडीटीटी टेंडर को घोटाला बताया है जो चुनिंदा निजी कंपनियों को फायदा पहुँचाने के लिए बनाया गया है। उन्होंने पुराने भ्रष्टाचार के मामलों का हवाला दिया और एचएएमएस तकनीक को नजरअंदाज करने पर सवाल उठाए। डॉ. सोई ने सरकार से आरएफपी वापस लेने एचएएमएस लागू करने और लाइसेंसिंग में पारदर्शिता लाने की अपील की है।

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    सड़क सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ. कमल सोई ने पंजाब सरकार के एडीटीटी टेंडर को घोटाला बताया है (फोटो: जागरण)

    जागरण संवाददाता, चंडीगढ़। अंतरराष्ट्रीय सड़क सुरक्षा विशेषज्ञ डॉ. कमल सोई, जो राहत – द सेफ कम्युनिटी फाउंडेशन और सोसाइटी फॉर करप्शन फ्री इंडिया (एससीएफआई) के चेयरमैन हैं, ने आरोप लगाया है कि पंजाब सरकार द्वारा हाल ही में जारी ऑटोमेटेड ड्राइविंग टेस्ट ट्रैक्स (एडीटीटी) का नया टेंडर “घोटाला बन रहा” है और इसे चुनिंदा निजी कंपनियों को फायदा पहुँचाने के लिए तैयार किया गया है।

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    चंडीगढ़ में प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए डॉ. सोई ने अप्रैल 2025 की उस कार्रवाई को याद दिलाया, जब पंजाब विजिलेंस ब्यूरो ने पूरे राज्य के रीजनल ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी कार्यालयों और ड्राइविंग टेस्ट ट्रैकों पर छापेमारी कर “लाइसेंस के लिए रिश्वत” के बड़े रैकेट का भंडाफोड़ किया था।

    इन छापों में 24 गिरफ्तारियाँ हुईं, 16 एफआईआर दर्ज की गईं और वरिष्ठ अधिकारियों—एक एडीजीपी, एक एसएसपी (विजिलेंस) और एक एआईजी स्तर के अधिकारी को निलंबित किया गया।

    उन्होंने यह भी बताया कि उस समय माइक्रोसॉफ्ट इंडिया की एचएएमएस टेक्नोलॉजी को एसएएस नगर, मोहाली में ड्राइविंग लाइसेंस कंपेटेंसी टेस्ट के लिए लागू करने में स्टेट ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट ने जानबूझकर देरी की थी। यह पायलट प्रोजेक्ट कई महीनों से तैयार था लेकिन उसे रोककर रखा गया। मीडिया के हस्तक्षेप के बाद ही एचएएमएस लागू किया गया।

    सिर्फ़ मीडिया के माध्यम से मुद्दा उठाए जाने के बाद ही एचएएमएस लागू किया गया। अब तक मोहाली के एस.ए.एस. नगर स्थित टेस्टिंग ट्रैक पर एचएएमएस का उपयोग करके 10,000 से अधिक टेस्ट किए जा चुके हैं, जिनके नतीजे चौंकाने वाले हैं।

    मोहाली में एचएएमएस -बेस्ड टेस्ट में केवल 40% पासिंग रेट दर्ज हुआ है, जबकि पंजाब के अन्य हिस्सों में यह दर 99% है। यह गंभीर चिंता का विषय है, जिस पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी कई बार राज्य सरकार को फटकार लगाई है।

    इसके बावजूद, राज्य सरकार ने अब टेंडर नोटिफिकेशन नंबर: पीएसटीएस/1361, दिनांक 05.09.2025 के तहत एक आरएफपी जारी किया है। यह आरएफपी सेवा प्रदाताओं के चयन के लिए है, ताकि अगले 5 वर्षों की अवधि के लिए ऑटोमेटेड ड्राइविंग टेस्ट ट्रैक के क्रियान्वयन, संचालन और रखरखाव, ड्राइविंग लाइसेंस के निजीकरण तथा अन्य संबद्ध सेवाओं को पंजाब स्टेट ट्रांसपोर्ट सोसाइटी को उपलब्ध कराया जा सके। यह पूरा मामला हेराफेरी, पक्षपात और भ्रष्टाचार की बू देता है।

     एचएएमएस तकनीक के प्रभावी और सफल साबित होने के बावजूद, जारी की गई आरएफपी इसे पूरी तरह नज़रअंदाज़ करती है और इसके स्थान पर वीडियो एनालिटिक्स-आधारित सिस्टम की मांग करती है वही तकनीक, जो पहले से लागू है और जिसका वर्षों से दुरुपयोग और शोषण होता आ रहा है। आखिरकार जो तकनीक प्रभावी है उसे क्यों खारिज किया जा रहा है, जब तक कि इसके पीछे कोई छुपे हुए हित न हों?

    यदि विभाग एचएएमएस पायलट को असफल मानता है, तो उसे इसे आधिकारिक रूप से घोषित करना चाहिए। लेकिन यदि पायलट को सफल माना जाता है, तो पूरे राज्य में इसे लागू न करने का कोई तार्किक कारण नहीं है। अन्यथा यह स्थिति विभाग की नियत और पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े करती है।”

    जारी की गई आरएफपी में अलग-अलग कार्यों टेक्नोलॉजी उपलब्ध कराना, ड्राइविंग लाइसेंस प्रिंटिंग और हेल्पडेस्क संचालन को एक ही टेंडर में जोड़ दिया गया है। यह एक हास्यास्पद ढांचा है, जिसे छुपे हुए उद्देश्यों के तहत तैयार किया गया लगता है। इसके अलावा, प्री-क्वालिफिकेशन मानदंड में टेस्टिंग और प्रिंटिंग दोनों के लिए समान अनुभव की शर्त रखना भी बेहद संदिग्ध है। इस तरह का टेंडर ढांचा निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा या जनहित सुनिश्चित करने के बजाय कुछ चुनिंदा निजी खिलाड़ियों को फायदा पहुँचाने के लिए बनाया गया प्रतीत होता है।

    जारी की गई आरएफपी में चुने गए बिडर्स को ड्राइविंग टेस्ट ट्रैक्स पर नए आरटीओ सेवा केंद्र बनाने का प्रावधान रखा गया है। लेकिन एक अहम सवाल यह है कि इन ट्रैक्स के भीतर आखिर ऐसी निर्माण गतिविधियों के लिए निर्धारित जगह कहाँ है?

    आरएफपी की धारा 13.4.2 में बोली लगाने वालों से कहा गया है कि वे बोली की जाँच के समय एक पूरा और चलने वाला एडीटीटी सिस्टम दिखाएँ। इसका मूल्यांकन में 30 प्रतिशत वेटेज रखा गया है। यह शर्त सिर्फ़ एक दिखावा है।

    ऐसा करने के लिए बोलीदाताओं को पहले से बने ट्रैक को अपग्रेड करना होगा, नया ढांचा खड़ा करना होगा, सर्वर लगाना होगा और सॉफ़्टवेयर चलाना होगा वह भी कॉन्ट्रैक्ट मिलने से पहले। चूँकि पंजाब के सभी ट्रैक पहले से चल रहे हैं, इसलिए सिर्फ़ डेमो के लिए इतना बड़ा काम करना नामुमकिन है। यह शर्त असली प्रतिस्पर्धा को खत्म करने का बहाना लगती है।

    आरएफपी की धारा 13.5.2 (10) सरकार को यह अधिकार देती है कि यदि “पर्याप्त बोलीदाता” क्वालिफाई न करें, तो सभी ज़ोन या कई ज़ोन एक ही बोलीदाता को दिए जा सकते हैं। यह शर्त साफ़ तौर पर किसी पहले से तय निजी कंपनी को फायदा पहुँचाने और उसे एकाधिकार (Monopoly) दिलाने की कोशिश है।

    प्रति-टेस्ट शुल्क पर कोई सीमा तय नहीं की गई है, जबकि सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने इसकी सिफारिश 300 रुपये प्रति टेस्ट के रूप में की है। सीमा तय न होने से निजी कंपनियाँ मनमाने और अधिक शुल्क वसूल सकती हैं, जिसका सीधा बोझ अंततः पंजाब के आम नागरिकों पर पड़ेगा।

    पहले राज्य सरकार यह प्रोजेक्ट सीएसआर पहलों के ज़रिए बिना किसी लागत के चला रही थी। लेकिन अब इस आरएफपी मॉडल में बदलाव करके सरकार न केवल अपनी मौजूदा आमदनी छोड़ रही है, बल्कि पंजाब के लोगों पर बेवजह का आर्थिक बोझ भी डाल रही है—यह भ्रष्टाचार और शोषण का दोहरा प्रहार है।

    तुरंत हस्तक्षेप की मांग करते हुए डॉ. सोई ने पंजाब सरकार से आग्रह किया कि:

    * मौजूदा आरएफपी को तुरंत वापस लिया जाए।

    * सभी टेस्ट ट्रैक्स पर बिना देरी के एचएएमएस तकनीक लागू की जाए।

    * लाइसेंसिंग प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित की जाए।

    * नागरिकों को कार्टेल द्वारा तय किए गए मनमाने शुल्क से बचाया जाए।

    उन्होंने माननीय मुख्यमंत्री और माननीय राज्यपाल, पंजाब से तुरंत हस्तक्षेप कर इस बड़े घोटाले को रोकने की अपील की। डॉ. सोई ने कहा कि यदि ऐसा नहीं हुआ, तो पंजाब के लोगों को न्याय दिलाने के लिए हमारे पास न्यायपालिका का दरवाज़ा खटखटाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा।