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    पंजाब-हरियाणा HC ने सोनिया और संजीव की समयपूर्व रिहाई पर फैसला सुरक्षित रखा, क्या है पूरा मामला?

    Updated: Sat, 22 Nov 2025 02:52 PM (IST)

    पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने सोनिया और संजीव की समयपूर्व रिहाई पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह और न्यायमूर्ति हरप्रीत कौर जीवन की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई की। अदालत ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। अब सभी को अदालत के फैसले का इंतजार है।

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    पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट फाइल फोटो

    राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। हरियाणा के चर्चित रेलू राम पुनिया हत्याकांड में उम्रकैद की सजा काट रहे पूर्व विधायक रेलू राम पूनिया की बेटी सोनिया और दामाद संजीव कुमार की समयपूर्व रिहाई याचिका पर पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया।

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    जस्टिस सूर्या प्रताप सिंह ने दोनों की ओर से दायर अलग-अलग याचिकाओं पर विस्तृत सुनवाई के बाद आदेश सुरक्षित किया।अगस्त 2001 में लितानी गांव के पास स्थित फार्म हाउस में पूर्व विधायक रेलू राम पूनिया (50), उनकी पत्नी कृष्णा देवी (41), बच्चे प्रियंका (14), सुनील (23), बहू शकुंतला (20), पोता लोकेश (4) और दो पोतियों शिवानी (2) तथा 45 दिन की प्रीति की हत्या कर दी गई थी।

    2004 में हिसार की अदालत ने संजीव और सोनिया को फांसी की सजा सुनाई, जिसे 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा। बाद में 2014 में दया याचिका में देरी का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया।

    संजीव की ओर से दलील दी कि संजीव वह 20 साल से अधिक वास्तविक सज़ा काट चुका है, जबकि छूट आदि जोड़ने पर यह अवधि 25 वर्ष 9 माह से अधिक हो जाती है। सोनिया भी 28 वर्ष से अधिक सजा भुगत चुकी हैं।

    याचिका में कहा गया कि दोषी करार दिए जाने के समय लागू हरियाणा समय पूर्व नीति 2002 के तहत वे रिहाई के पात्र हैं।सुप्रीम कोर्ट के कई व संविधान पीठ के फैसले का हवाला देते हुए कहा गया कि “ आखिरी सांस तक जेल ” जैसी सजा केवल संवैधानिक अदालत ही दे सकती है, कोई कार्यकारी कमेटी नहीं।

    याचिकाकर्ताओं ने 6 अगस्त 2024 के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें कहा गया था कि संजीव “आख़िरी सांस तक जेल में रहेगा।” दलील में कहा गया कि स्टेट लेवल कमेटी ने उनकी जेल आचरण रिपोर्ट, शिक्षा, सुधारात्मक गतिविधियों और पुनर्वास कार्यक्रमों पर विचार ही नहीं किया। इसके अलावा, एक और कैदी, जिसकी पृष्ठभूमि कहीं अधिक गंभीर थी और जिसने कई साल से पैरोल ओवरस्टे किया था, उसे रिहा कर दिया गया जबकि संजीव की याचिका खारिज कर दी गई।

    यह स्पष्ट भेदभाव है।यह भी तर्क दिया गया कि राज्य सरकार ने मामला राज्यपाल के समक्ष रखने की संवैधानिक प्रक्रिया ही नहीं अपनाई, जिससे आदेश अधिकार क्षेत्र से बाहर हो जाता है।अब हाई कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनकर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया ।