Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Ground Report: सुल्तानपुर लोधी में बाढ़ के कारण अपने ही घरों में कैद हुए लोग, कैसे ट्रैक पर लौट पाएगी जिंदगी?

    Updated: Fri, 05 Sep 2025 04:26 PM (IST)

    कपूरथला के सुल्तानपुर लोधी में बाढ़ से हालात गंभीर हैं। गांव सांगर में 75 वर्षीय दलवीर कौर बताती हैं कि 20-22 दिनों से वे घर से बाहर नहीं निकल पाई हैं चारों तरफ पानी भरा हुआ है। 50 किलों में फसल डूब गई है। खीजरपुर लख बरेया बऊपुर सहित 15 गांवों के लोग परेशान हैं।

    Hero Image
    कपूरथला के सुल्तानपुर लोधी में बाढ़ की वजह से लोग घरों में कैद होकर रह गए हैं (फोटो: जागरण)

    जागरण संवाददाता, सुल्तानपुर लोधी\कपूरथला। ‘पिछले 20-22 दिनां तों एद्दां दे हालात बने होए ने कि घर तों बार पैर नी रख सकदे। 11 अगस्त नूं पिंड विच पानी आना शुरू होया सी। 50 किले विच लगाई फसल डुब गई। की करिए... 88 तों बाद हर दो-तिन साल बाद एद्दां ही चली जांदा जी। हले तां लोकी मदद कर रहे। हड़ दा पानी निकल जाण तों बाद असली परेशानी होवेगी।’

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    यह बात चारों तरफ से सात से आठ फीट पानी में डूबे गांव सांगर की 75 वर्षीय दलवीर कौर ने कही। वह इस बात को लेकर चिंतित हैं कि बाढ़ का पानी निकलने के बाद जो परेशानी होगी इसका सामना कैसे करेंगे।

    परिवार का हाल जानने और मदद के लिए किश्ती से उनके घर पहुंचे लोगों से वे आंखों में उम्मीद और चेहरे पर हल्की सी मुस्कान लिए मिलती हैं। परिवार के बाकी लोग और बच्चे भी आंगन में इकट्ठा हो जाते हैं। मुसीबत से घिरे होने के बावजूद मेहमानों को दलवीर कौर बिना चाय के नहीं भेजना चाहती।

    बात करते वक्त भावुक हुई 75 वर्षीय दलवीर कौर

    बात करते हुए आंखें थोड़ी नम और आवाज भारी हो जाती है। कहती हैं, ‘वर्ष 1988 के बाद कुछ साल बाढ़ नहीं आई, लेकिन उसके बाद तो हर दो-तीन साल बाद पानी आ जाता है। इतना पानी तो कई साल के बाद आया, जो आंगन की दहलीज तक पहुंच गया। तीनों भाइयों के घर एक साथ हैं।

    घर में बच्चे, बहुएं, बुजुर्ग और करीब 20 पशुधन हैं। दिन तो जैसे-तैसे कट जाता है, लेकिन रात नहीं कटती। रात को उठ-उठ कर पानी का स्तर देखना पड़ता है। अगर अचानक पानी बढ़ गया तो क्या करेंगे। घर में तीन ट्रैक्टर हैं, लेकिन वे इतने पानी में किसी काम नहीं आ सकते।

    रात को लाइट की व्यवस्था के लिए घर में जनरेटर भी है। बच्चों की आनलाइन कक्षाएं लगती हैं, उनके मोबाइल आदि चार्ज हो जाते हैं। हालांकि गांव के बाकी घरों में इतनी व्यवस्था नहीं है। वे कहती हैं कि असली परीक्षा तो बाढ़ का पानी निकल जाने के बाद शुरू होगी, जब चारों ओर गाद भरी होगी।

    फसल तो बर्बाद हो ही चुकी है। अगली फसल के लिए खेत नए सिरे से तैयार करने पड़ेंगे। गाद के कारण रास्तों का पता नहीं चलेगा। इसमें चलना भी मुश्किल होगा।

    पानी में मरे जानवरों और बदबू की समस्या परेशान करेगी। पशुओं के लिए कुछ महीने चारा नहीं मिल पाएगा। उस समय यह सब खुद करना होगा। गांव खीजरपुर, लख बरेया, बऊपुर, सांगर सहित करीब दस किलीमीटर में आने वाले 15 गांवों में ऐसी ही स्थिति है।

    किमी क्षेत्र में बाढ़ के पानी के कारण लोग घर से बाहर नहीं जा पा रहे

    घर के बाहर पानी भरा है, छत भी टपकने लगी गांव बऊपुर की लखबीर कौर बेटी वीरपाल कौर व पति के साथ बाढ़ आने के बाद से घर पर ही हैं। तीन दिन पहले पानी बढ़ा तो साथ के घर में रहने वाले देवर बलविंदर सिंह पत्नी अमनदीप को लेकर चले गए।

    पानी कमरों में पहुंच गया। लखबीर कौर कहती हैं कि वह घर छोड़कर कहां जा सकते हैं। पशुओं का क्या होगा। अभी सूखे चारे से गुजारा चल रहा है। वर्षा इतनी हो रही है कि छत भी टपकने लगी है। फसल डूब गई है। बाद में क्या होगा सबसे बड़ी चिंता यही है।

    बेटी 12वीं कक्षा में टिब्बा स्कूल में पढ़ती है। एक महीने से स्कूल नहीं जा पाई। बिजली नहीं है। रात अंधेरे में डर के साए में गुजरती है। अभी पता नहीं कितने दिन ये और चलेगा।

    पानी निकलने पर मदद को आएं लोग गांव लख बरेया से बऊपुर की ओर जाने पर बीच में पुल है। पुल का आगे का हिस्सा डूब गया है। आगे सिर्फ पानी ही पानी दिखता है। धुस्सी बांध से लेकर पुल के दूसरे छोर तक राहत सामग्री लेकर गाड़ियां खड़ी हैं। किसी ने लंगर लगाया है तो कोई पानी की बोतलें लेकर पहुंचा है।

    पानी निकलने पर लोगों से लगाई मदद करने की गुहार

    कुछ संस्थाओं ने डाक्टरों की टीम और एंबुलेंस भेज रखी हैं। लोग बड़ी संख्या में राहत सामग्री लेकर पहुंच रहे हैं। संस्थाएं सामान लेकर पहुंच रहे लोगों से कह रही हैं कि उनके पास अभी खाने-पीने की बहुत सामग्री है। मदद की जरूरत तब पड़ेगी जब पानी यहां से निकल जाएगा। तब हालात बहुत खराब होंगे। उस समय मदद लेकर आएं।

    किश्ती की आवाज सुन बाहर निकलते हैं लोग सुल्तानपुर लोधी क्षेत्र के बाढ़ में डूबे करीब 15 गांवों के लोगों के लिए किश्ती ही सबसे बड़ा सहारा है। जब भी कोई किश्ती घर के आसपास से गुजरती है तो लोग कमरों से बाहर निकलकर आंगन या छत पर पहुंच जाते हैं।

    आंखें उम्मीद से किश्ती की तरफ देखती हैं कि शायद कोई मदद के लिए आया है। पानी के घिरे होने पर भी लोगों में इतना जज्बा है कि कुछ लोग छत पर चढ़कर या आंगन में खड़े होकर हाथ हिलाकर यह भी बताते हैं कि सब ठीक है।

    comedy show banner
    comedy show banner