Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    लुधियाना की जिम संचालक पूनम बनीं लावारिस लाशों की ‘वारिस’, अब तक किए 100 से अधिक के अंतिम संस्कार

    By Asha Rani Edited By: Vipin Kumar
    Updated: Tue, 29 Nov 2022 03:13 PM (IST)

    पंजाब में एक जिम संचालक मानवता की मिसाल पेश कर रही है। लुधियाना की पुलिस कालोनी में रहने वाली 29 वर्षीय पूनम पठानिया पिछले 5 वर्षों से 100 से अधिक लाशाें का अंतिम संस्कार करवा चुकी है। वह सामाजिक सरोकार का कार्य कर रही है।

    Hero Image
    लुधियाना की पूनम पठानिया शवाें का अंतिम संस्कार करती हुई। (जागरण)

    आशा मेहता, लुधियाना। शहर के चंडीगढ़ रोड स्थित पुलिस कालोनी में रहने वाली 29 वर्षीय पूनम पठानिया पिछले पांच वर्षों से लावारिस लाशों की वारिस बनकर मानवता और सेवाभाव की अनूठी मिसाल पेश करते हुए सामाजिक सरोकार का कार्य कर रही है। शहर में लावारिस लाश मिलने पर उसे मुखाग्नि देने से लेकर अंतिम संस्कार भी खुद ही करती हैं। पेशे से जिम संचालक पूनम का कहना है कि अब तक सौ से अधिक लाशों का विधि विधान से अंतिम संस्कार कर चुकी है। उनके इस सेवाभाव की हर कोई तारीफ करता हैं। पूनम कहती हैं कि लावारिस लाशों की वारिस बनने के बाद उन्हें बेहद सुकून महसूस होता है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    ऐसे मिली प्रेरणा

    पूनम कहती हैं कि पांच पहले उनके एक छात्र की मां बीमार हो गई थी और उसके पिता नहीं थे। ऐसे में वह छात्र की मां को कई बार अस्पताल इलाज के लिए लेकर आती जाती थी। कुछ समय बाद उनकी बीमारी की वजह से मौत हो गई। अस्पताल से जब शव को लेकर आए तो आस-पड़ोस के लोगों से लेकर रिश्तेदारों में किसी ने भी उस शव को नहलाया नहीं। अंतिम संस्कार से पहले शव को नहलाया जाता है। सब खड़े होकर देख रहे थे। इसके बाद वह आगे आई और डेडबाडी को नहलाया। इसके बाद लाश को श्मशानघाट में ले जाया गया।

    उसके कुछ समय के बाद उनके एक और स्टूडेंटस की मां को ब्रेस्ट कैंसर हो गया और उनकी मौत हो गई। वे परिवार के साथ श्मशानघाट गई और फिर हरिद्वार जाकर दूसरी रस्मों में शामिल हुई। यह सब करके उन्हें बेहद सुकून मिला। इसके बाद वर्ष 2018 में फैसला लिया कि वह लावारिस लाशों का संस्कार करवाएगी।

    परिवार से सहयोग, समाज से मिले ताने

    पूनम कहती हैं कि लावारिस लाशों का संस्कार करने को लेकर जब परिवार से बात की तो पहले तो उन्होंने आनाकानी की, लेकिन बाद में सहयोग देने लगे। परिवार में मां, पिता, भाई, बहन, दादा दादी,चाचा चाची है। अब परिवार को मुझ पर गर्व है। हालांकि समाज से उन्हें अब तक ताने सुनने पड़ते हैं। आस पड़ोस, रिश्तेदार और दूसरे कई लोगों के ताने सुनने पड़ते हैं कि लड़की हूं, मुझे लाशों को नही छूना चाहिए। सही नहीं होता है। अंतिम संस्कार लड़कों का काम है। लेकिन मुझे लोगों के तानों से फर्क नहीं पड़ता। लोगों की बातें एक कान से सुनती हूं दूसरे से निकाल देती हूं। उन्होंने कहा कि सभी लोगों में सेवाभाव की भावना होनी बहुत जरूरी है।

    बुजुर्गों को राशन और लड़कियों की शादी में करती हैं मदद

    पूनम का कहना है कि ब्लड डोनेशन के लिए भी एक ग्रुप बनाया है। जब भी किसी को ब्लड की जरूरत होती है, तो अस्पताल जाकर ब्लड डोनेट करती है। दूसरे लोगों को भी प्रेरित करती हैं। इसके अलावा कोविड के दौरान राशन की सेवा भी की। इसके साथ ही जब किसी जरूरतमंद लड़की की शादी होती है तो शगुन, बर्तन या जरूरत का सामान देकर सेवा करती है। 2025 तक एक ऐसा घर बनाने की ख्वाहिश है जहां बेसहारा बुजुगों को सहारा दे सके। वे खुद के पैसों के अलावा, दोस्तों और स्टूडेंट्स की मदद से सेवा कर रही है

    अपनी जेब से करती हूं खर्च

    पूनम कहती हैं कि एक के महीने में तीन से चार लाशों का अंतिम संस्कार करती हैं। एक संस्कार में तीन से चार हजार रुपये लगते हैं। यह खर्च मैं खुद ही निकालती हूं। हालांकि कभी-कभी जिम में आने वाले स्टूडेंट भी मदद कर देते हैं। किसी एनजीओ या किसी अन्य सरकारी संस्था से मदद नही ली। पांच सालों में कितने संस्कार किए, कभी इसकी गिनती नहीं की। पूनम बताती हैं कि अलग-अलग थानों में उसने मोबाइल नंबर दे रखा है। पुलिस को अगर कहीं भी लावारिस लाश मिलती है, तो उन्हें फोन आ जाता है।