Rama Ekadashi 2025: रमा एकादशी के दिन जरूर करें इस व्रत कथा का पाठ, मिलेगा पूर्ण फल
इस बार रमा एकादशी का व्रत शुक्रवार 17 अक्टूबर को किया जा रहा है, जो कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष में आती है। एकादशी तिथि को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्ति के लिए एक उत्तम तिथि माना गया है। किसी भी व्रत में कथा का पाठ करना जरूरी माना जाता है, वरना उसका पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता। ऐसे में एकादशी के दिन भी व्रत कथा का पाठ जरूरी है।
-1760602129005.webp)
Rama Ekadashi 2025 vrat katha in hindi
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। एक बार धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्रीकृष्ण से कहते हैं कि हे भगवन मुझे कार्तिक कृष्ण एकादशी की महिमा के बारे में बताइए। तब भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिर को कार्तिक कृष्ण एकादशी यानी रमा एकादशी (Rama Ekadashi 2025) का महत्व बताते हुए कहा कि इस व्रत को करने से व्यक्ति की जाने-अनजाने में किए हुए पाप नष्ट हो जाते हैं। चलिए पढ़ते हैं रमा एकादशी की व्रत कथा।
रमा एकादशी की कथा
कथा के अनुसार, बहुत समय पहले मुचुकुंद नामक एक महान राजा राज्य करता था। वह बहुत ही सत्यवादी, धर्मपरायण था और भगवान विष्णु के परम भक्त भी था। उसकी पुत्री का नाम चंद्रभागा था, जिसका विवाह राजा चंद्रसेन के बेटे शोभन से हुआ। एक दिन शोभन ससुराल आया। उसके कुछ ही दिनों में रमा एकादशी आने वाली थी, जिस पर राजा मुचुकुंद ने पूरे नगर में यह घोषणा कर दी कि एकादशी के दिन कोई भी व्यक्ति भोजन ग्रहण नहीं करेगा। यह बात सुनकर शोभन बहुत परेशान हो गया और उसने अपनी पत्नी चंद्रभागा से कहा कि ''वह भोजन किए बिना नहीं रह सकूंगा।''
व्रत करने को तैयार हुआ शोभन
तब चंद्रभागा शोभन से कहती है कि इस नगर में केवल मनुष्य ही नहीं, बल्कि पशु-पक्षी भी एकादशी व्रत धारण करते हैं। ऐसे में अगर आपको भोजन करना है, तो नगर से कहीं दूर चले जाइए, अन्यथा आपको व्रत धारण करना होगा। यह सुनकर शोभन कहता है कि हे प्रिये, मैं इस व्रत को अवश्य करूंगा, मेरे भाग्य में जो लिखा है, वही होगा।”
शोभन ने पूरी श्रद्धा के साथ एकादशी का व्रत रखा। दिन बीतने के बाद शोभन को कमजोरी महसूस होने लगी। रात में जागरण के समय उसकी हालात और भी खराब हो गई। सुबह होने से पहले शोभन की मृत्यु हो गई। तब उसका विधिपूर्वक अंतिम संस्कार कर दिया गया। पिता की बात मानकर चंद्रभागा अपने पिता के घर ही रहने लगी।
चंद्रभागा ने भी किया व्रत
एक दिन राजा मुचुकुंद मंदराचल पर्वत पहुंचे, तो उन्होंने पाया कि रमा एकादशी के प्रभाव से उनके दामाद शोभन को वहां पर धन-धान्य से एक सुंदर देवपुर की प्राप्ति हुई है। लौटने के बाद यह बात राजा ने अपनी पुत्री को बताई, जिससे वह बहुत प्रसन्न हुई। इसके बाद चंद्रभागा ने भी रमा एकादशी का व्रत किया और व्रत के प्रभाव से वह भी अपने पति के पास चली गई।
अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।