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    Jagannath Puri: जगन्नाथ मंदिर में एकादशी पर क्यों खाए जाते हैं चावल, जानिए पौराणिक कथा

    जगन्नाथ मंदिर ऐसे विख्यात मंदिरों में शामिल है जिसकी मान्यता विदेशों में भी फैली हुई है। यह मंदिर ऐसे कई तरह के रहस्यों से भरा हुआ है जिनका विज्ञान के पास भी आज तक कोई जवाब नहीं है। कहा जाता है कि इस मंदिर में एकादशी तिथि का प्रभाव नहीं पड़ता। चलिए जानते हैं इसके पीछे की कथा।

    By Suman Saini Edited By: Suman Saini Updated: Tue, 15 Jul 2025 04:40 PM (IST)
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    क्या है Jagannath Puri के महाप्रसाद का महत्व?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। एकादशी तिथि को हिंदू धर्म में विशेष महत्व दिया गया है। इस दिन पर भगवान विष्णु के निमित्त व्रत किया जाता है। मान्यता है कि इस तिथि पर चावल नहीं खाने चाहिए। लेकिन वहीं, पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर में एकादशी के दिन भी चावल खाने की परंपरा चली आ रही है। इसके पीछे एक बहुत ही रोचक कथा मिलती है, चलिए जानते हैं उसके बारे में।

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    क्या है पौराणिक कथा

    विष्णु पुराण में इस बात का जिक्र है कि एकादशी के दिन चावल खाने से पुण्य फल की प्राप्ति नहीं होती है। लेकिन वहीं जगन्नाथ मंदिर में एकादशी पर विशेष रूप से चावल का सेवन किया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार ब्रह्मा जी को जगन्नाथ पुरी भगवान जगन्नाथ का महाप्रसाद खाने की इच्छा हुई, जिसके लिए वह जगन्नाथ मंदिर पहुंचे। लेकिन तब तक महाप्रसाद खत्म हो चुका था।

    (Picture Credit: Freepik)

    भगवान जगन्नाथ प्रकट हुए

    तब उनकी नजर एक कुत्ते पर पड़ती है, जो एक पत्तल में थोड़े से बचे हुए चावल खा रहा था। तब ब्रह्मा जी भी उस कुत्ते के पास बैठ गए और चावल खाने लगे। जिस दिन यह घटना घटी उस दिन संयोग से एकादशी थी।

    यह दृश्य देखकर भगवान जगन्नाथ प्रकट हुए और ब्रह्मा जी से बोले कि आज से मेरे महाप्रसाद में एकादशी का कोई नियम लागू नहीं होगा। कहा जाता है कि उसी दिन से जगन्नाथ पुरी में एकादशी या फिर अन्य किसी तिथि पर भगवान जगन्नाथ के महाप्रसाद पर किसी भी व्रत या तिथि का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

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    एकादशी पर क्यों नहीं खाए जाते चावल

    पौराणिक कथा के अनुसार, एकादशी के दिन महर्षि मेधा ने मां शक्ति के क्रोध से बचने के लिए अपने शरीर का त्याग दिया था। इसके बाद वह चावल और जौ के रूप में प्रकट हुए। इसलिए, यह माना जाता है कि एकादशी के दिन चावल महर्षि मेधा के शरीर के अंगों को खाने के समान है।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।