भगवान शिव ने क्यों धारण किया था ज्योति रूप? जानिए मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की अद्भुत कथा
हिंदू धर्म में 12 ज्योतिर्लिंगों का विशेष महत्व माना गया है जिसमें से दूसरा ज्योतिर्लिंग है मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग (Mallikarjuna Jyotirlinga)। यह आंध्र प्रदेश के श्रीशैलम में स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग की मान्यता दूर-दूर तर फैली हुई है। साथ ही इस ज्योतिर्लिंग के प्रकट होने की कथा भी बहुत ही अद्भुत है। चलिए जानते हैं इसके बारे में।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। शिव पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, जहां-जहां भगवान शिव ज्योति के रूप में उत्पन्न हुए थे, उन स्थानों पर ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं। हिंदू धर्म में इन 12 ज्योतिर्लिंगों का विशेष महत्व माना जाता है। आज हम आपको मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग (Mallikarjuna Jyotirlinga Katha) की कथा बताने जा रहे हैं।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की महिमा
मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर जिसे श्रीशैलम मंदिर के नाम से भी जाना जाता है शैल पर्वत पर स्थित है। इस मंदिर को "दक्षिण का कैलाश" भी कहा जाता है। इस ज्योतिर्लिंग की कथा भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय से जुड़ी हुई है।
मंदिर की महिमा का वर्णन कई प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है, जिसके अनुसार, श्रीशैलेश्वर ज्योतिर्लिंग के समान इस भूमंडल में कोई दूसरा ज्योतिर्लिंग नहीं है। ब्रह्मांड में भगवान शिव का एकमात्र धाम होगा, जो प्रलय के बाद भी रहने वाला है। साथ ही इस मंदिर से जुड़ी मान्यता है कि इस मंदिर में स्थापित ज्योतिर्लिंग की पूजा करने से साधक को अश्वमेघ यज्ञ के समान पुण्य मिलता है।
क्या है पौराणिक कथा (Mallikarjuna Jyotirlinga Katha)
शिव पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव और माता पार्वती यह तय नहीं कर पा रहे थे, कि उन्हें कार्तिकेय जी और गणेश भगवान में से किसका पहले विवाह करना चाहिए। तब यह तय किया गया कि जो भी उन दोनों में से पहले पृथ्वी की परिक्रमा पूरी करेगा, उसी का विवाह पहले किया जाएगा।
यह सुनते ही भगवान कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर सवार होकर पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए निकल गए। लेकिन गणेश जी ने अपने वाहन चूहे पर बैठकर भगवान शिव और माता पार्वती की परिक्रमा करनी शुरू कर दी। जब उन्होंने इसका कारण पूछा, तो गणेश जी ने कहा कि माता-पिता की परिक्रमा करना संसार की परिक्रमा करने के बराबर है।
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नाराज हो गए कार्तिकेय जी
यह सुनकर भगवान शिव और माता पार्वती बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने गणेश जी का विवाह करा दिया। जब कार्तिकेय जी पृथ्वी की परिक्रमा कर वापिस लौटे, तो सारी बात जानकर वह क्रोधित हो गए और नाराज होकर क्रौंच पर्वत (श्रीशैल पर्वत) पर चले गए।
पुत्र के वियोग से दुखी होकर भगवान शिव और पार्वती भी उन्हें मनाने के लिए जाते हैं, लेकिन कार्तिकेय जी नहीं मानते। तब भगवान शिव स्वयं को ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट करते हैं। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग में मल्लिका का अर्थ है माता पार्वती और अर्जुन का अर्थ है भगवान शिव।
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