Nag Panchami 2022: दुनिया का एकलौता मंदिर जहां नाग शैय्या पर विराजित है भोलेनाथ, साल में एक बार ही देते हैं दर्शन
Nag Panchmi 2022 आज नाग पंचमी के पर्व में नागों की पूजा का विधान है। इसके साथ ही उज्जैन स्थित नागचंद्रेश्वर मंदिर का पट आज खोल दिए गए हैं। नागपंचमी के मौके पर 24 घंटे के लिए भगवान श्रद्धालुओं को दर्शन देते हैं।

नई दिल्ली, Nagchandreshwar Mandir: श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन नाग देवता की पूजा का विधान है। वैसे तो भारत में अनेकों सर्प मंदिर है। लेकिन उज्जैन में स्थित नागचंद्रेश्वर का अपना एक अलग महत्व है। यह मंदिर महाकाल मंदिर की तीसरी मंजिल में स्थिति है। ये मंदिर सालभर में सिर्फ नागपंचमी के दिन ही पूरे 24 घंटे के लिए खोला जाता है। माना जाता है कि यहां पर नागराज तक्षक स्वयं विराजित है। इस मंदिर में दर्शन करने मात्र से हर तरह के सर्प दोष से छुटकारा मिल जाता है।
नागचंद्रेश्वर मंदिर में स्थापित है प्राचीन मूर्ति
बताया जाता है कि इस मंदिर में विराजित भगवान नागचंद्रेश्वर की मूर्ति 11वीं शताब्दी की है जिसे नेपाल से मंगवाया गया था। माना जाता है कि लगभग 1050 ईस्वी में परमार राजा भोज ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। इसके बाद सिंधिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया में 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था।
वर्ष में एक बार होने वाले भगवान श्री नागचंद्रेश्वर जी के दर्शन।
हर हर महादेव। pic.twitter.com/iHMZR2CBfs
— सुरेश कुमार खन्ना (@SureshKKhanna) August 2, 2022
इस मंदिर में इस तरह विराजित है भोलेनाथ
महाकाल मंदिर स्थित नागचंद्रेश्वर भगवान की प्रतिमा 11वीं शताब्दी की बताई जाती है। जहां पर फन फैलाए नाग के आसन पर भगवान शिव और मां पार्वती बैठे हुए हैं। माना जाता है कि दुनिया का यह इकलौता मंदिर है जहां शिवजी पूरे परिवार के साथ दशमुखी सर्प में विराजित है।
दर्शन मात्र से मिलती है सर्प दोष से मुक्ति
इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि यहां पर नागचंद्रेश्वर के दर्शन करने मात्र से हर तरह के सर्प दोष से मुक्ति मिल जाती है।
एक ही दिन क्यों खुलता है नागचंद्रेश्वर मंदिर ?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, नागों के राजा तक्षक ने शिवजी को मनाने के लिए घोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने सर्पों के राजा तक्षक नाग को अमरत्व का वरदान दे दिया। माना जाता है कि तक्षक राजा ने प्रभु के सानिध्य में वास करना शुरू कर दिया, लेकिन महाकाल की वन में वास करने से पूर्व यहीं मंशा थी कि उनके एकांत में किसी भी तरह का विघ्य ना हो। इसी परंपरा के कारण वर्ष में सिर्फ एक बार इस मंदिर के कपाट खोले जाते हैं और शेष समय कपाट बंद रहते है।
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Pic Credit- Twitter/SureshKKhanna
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