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    Neelkantheshwar Temple: इस मंदिर में भगवान शिव के दर्शन से दूर होता है शत्रु भय, समुद्र मंथन से जुड़ा है कनेक्शन

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Tue, 30 Jul 2024 09:12 PM (IST)

    मध्य प्रदेश प्राचीन विशेषता के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है। इस प्रदेश में स्थित उज्जैन शहर आस्था का केंद्र है। उज्जैन में विश्व प्रसिद्धि महाकालेश्वर मंदिर है। इसके आलावा प्रदेश में नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर समेत कई (Daksheswar Mahadev Temple) प्रमुख मंदिर हैं। इस मंदिर में भगवान शिव स्वयंभू स्थापित हैं। धार्मिक मत है कि बाबा की नगरी की धार्मिक यात्रा करने से सभी बिगड़े काम बन जाते हैं।

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    Neelkantheshwar Mahadev Temple: नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास एवं धार्मिक महत्व

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Neelkantheshwar Mahadev Temple: सावन का पावन महीना देवों के देव महादेव को समर्पित होता है। इस महीने में श्रद्धा और भक्ति भाव से महादेव और मां पार्वती की पूजा की जाती है। साथ ही सावन सोमवार और मंगलवार के दिन मंगला गौरी व्रत रखा जाता है। सावन सोमवार व्रत करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। साथ ही जीवन में खुशियों का आगमन होता है। इस अवसर पर देशभर में स्थित सभी बड़े एवं छोटे मंदिर में भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है। इस समय भगवान शिव का जलाभिषेक एवं रुद्राभिषेक किया जाता है। सनातन शास्त्रों में निहित है कि भगवान शिव जलाभिषेक से शीघ्र प्रसन्न होते हैं। उनकी कृपा से मनचाही मुराद पूरी होती है। लेकिन क्या आपको पता है कि देश में एक ऐसा भी शिव मंदिर है, जहां ब्रह्म मुहूर्त में ग्यारह प्रकांड पंडित मंत्रोउच्चारण कर महादेव का अभिषेक करते हैं ?  आइए, इस मंदिर के बारे में जानते हैं-

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    कहां है नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर ?

    भगवान शिव को समर्पित नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर मध्य प्रदेश स्थित बाबा की नगरी उज्जैन के पिपली नाका चौराहा पर स्थित है। इतिहासकारों की मानें तो यह मंदिर सदियों पुराना है। तत्कालीन समय में बाबा की नगरी महाकाल वन नाम से प्रसिद्ध था। इस वन में चौरासी भगवान शिव (मंदिर) हैं। इनमें उज्जैन के पीपलीनाका चौराहा पर स्थित नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर 54 वे हैं। इस मंदिर में देवों के देव महादेव (स्वयंभू शिवलिंग), मां पार्वती, भगवान गणेश, भगवान कार्तिकेय एवं बाबा की सवारी नंदी जी की प्रतिमा स्थापित हैं। 

    क्या है कथा ?

    स्कंद पुराण में नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर की महिमा का वर्णन है। इस पुराण के अनुसार, प्राचीन समय में सत्यविक्रम नामक राजा शत्रुओं से पराजित होने के बाद वन की ओर कूच कर गए। सत्यविक्रम महाकाल वन में विचरण कर रहे थे। उसी समय उनकी भेंट एक तपस्वी से होती है। तपस्वी ने अपने तपोबल से राजन को पहचान लिया। तब राजा सत्यविक्रम ने अपनी आपबीती सुनाई। उस समय तपस्वी ने राजा को भगवान शिव की आराधना करने की सलाह दी। कालांतर में राजा सत्यविक्रम ने भगवान शिव की तपस्या की। कठिन भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने राजा सत्यविक्रम को अजेय होने का वरदान दिया। इसके लिए कहा जाता है कि नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर में भगवान शिव के दर्शन से शत्रुओं पर विजयश्री प्राप्त होती है। 

    पूजा-अभिषेक

    ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव ने महाकाल वन (तत्कालीन) में ही समुद्र मंथन के समय विषपान किया था। नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर सदियों पुराने पौराणिक महत्व को संजोए रखे हैं। इस मंदिर में स्थित शिवलिंग स्वयंभू हैं। नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर में सोमवार, कृष्ण एवं शुक्ल की त्रयोदशी एवं सावन माह में प्रतिदिन ब्रह्म बेला में भगवान शिव का भक्ति भाव से अभिषेक किया जाता है। इसके साथ ही सामान्य दिनों में भी भगवान शिव की विधि विधान से पूजा की जाती है। धार्मिक मत है कि नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर में बाबा के दर्शन करने से कुंडली में व्याप्त अशुभ ग्रहों का प्रभाव समाप्त हो जाता है।  

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।