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    Bada Mangal 2025: बड़े मंगल के दिन जरूर करें हनुमान जी की ये आरती, सभी सुखों की होगी प्राप्ति

    Updated: Tue, 13 May 2025 06:30 AM (IST)

    ज्येष्ठ माह में पड़ने वाले सभी मंगलवार को बड़ा मंगल (Bada Mangal 2025) के नाम से जाना जाता है। इस दिन हनुमान जी और भगवान श्रीराम की विशेष पूजा-अर्चना करने का विधान है। धार्मिक मान्यता के अनुसार बड़ा मंगल व्रत करने से जीवन के सभी दुख और दर्द दूर होते हैं। इस दिन पूजा के समय हनुमान जी और भगवान श्रीराम की आरती जरूर करनी चाहिए।

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    Bada Mangal 2025: कैसे करें जीवन के संकटों को दूर (Pic Credit- Freepik)

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वैदिक पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह की शुरुआत बड़े मंगल से हो रही है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, मंगलवार के दिन पहली बार हनुमान जी की मुलाकात भगवान श्रीराम से हुई थी। इसलिए ज्येष्ठ माह के सभी मंगलवार को बड़ा मंगल में रूप में मनाया जाता है।

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    इस खास अवसर पर हनुमान जी (Hanuman Ji ki Aarti Lyrics) और भगवान श्रीराम की विधिपूर्वक पूजा और व्रत किया जाता है। साथ ही पूजा के समय आरती जरूर करनी चाहिए। ऐसा माना जाता है कि बड़े मंगल के दिन आरती करने से साधक की सभी मुरादें पूरी होती हैं और जीवन में सभी सुखों की प्राप्ति होती है।

    (Pic Credit- Freepik)

    हनुमान जी की आरती (Hanuman Ji Ki Aarti Lyrics)

    आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।

    जाके बल से गिरिवर कांपे। रोग दोष जाके निकट न झांके।।

    अंजनि पुत्र महाबलदायी। संतान के प्रभु सदा सहाई।।

    दे बीरा रघुनाथ पठाए। लंका जारी सिया सुध लाए।।

    लंका सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई।।

    लंका जारी असुर संहारे। सियारामजी के काज संवारे।।

    लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे। आणि संजीवन प्राण उबारे।।

    पैठि पताल तोरि जमकारे। अहिरावण की भुजा उखाड़े।।

    बाएं भुजा असुर दल मारे। दाहिने भुजा संतजन तारे।।

    सुर-नर-मुनि जन आरती उतारे। जै जै जै हनुमान उचारे।।

    कंचन थार कपूर लौ छाई। आरती करत अंजना माई।।

    लंकविध्वंस कीन्ह रघुराई। तुलसीदास प्रभु कीरति गाई।।

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    भगवान राम की आरती (Shri Ramchandra Ji Aarti)

    श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भव भय दारुणम्।

    नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम्।।

    कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम्।

    पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम्।।

    भजु दीन बंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम्।

    रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम्।।

    सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं।

    आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर-धूषणं।।

    इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।

    मम ह्रदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम्।।

    मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरों।

    करुना निधान सुजान सिलू सनेहू जानत रावरो।।

    एही भांती गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषी अली।

    तुलसी भवानी पूजि पूनी पूनी मुदित मन मंदिर चली।।

    दोहा- जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।

    मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे।।

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    अस्वीकरण: ''इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है''।