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    Budhwar Puja: भगवान गणेश की पूजा में जरूर करें इस स्तोत्र का पाठ, सभी विघ्न दूर करेंगे बप्पा

    Updated: Wed, 19 Nov 2025 07:00 AM (IST)

    बुधवार का दिन मुख्य रूप से भगवान गणेश की आराधना के लिए समर्पित माना गया है। अगर आप श्रद्धाभाव से गणेश जी की पूजा करते हैं, तो इससे सभी संकट दूर होते हैं। ऐसे में आप बुधवार की पूजा में इस खास स्तोत्र का पाठ कर लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

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    भगवान गणेश को कैसे करें प्रसन्न? (Picture Credit: Freepik)

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। किसी भी शुभ कार्य से पहले गणेश जी का आवहान जरूर किया जाता है, ताकि वह कार्य बिना किसी विघ्न के पूरा हो सके। बुधवार के दिन गणेश जी की विशेष पूजा-अर्चना से आपको जीवन में काफी अच्छे परिणाम मिल सकते हैं। ऐसे में पूजा के दौरान श्री गणेश पंचरत्न स्तोत्र का पाठ जरूर करें।

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    श्री गणेश पंचरत्न स्तोत्र (Sri Ganesh Pancharatnam Stotra)

    मुदाकरात्तमोदकं सदा विमुक्तिसाधकं

    कलाधरावतंसकं विलासिलोकरक्षकम् ।

    अनायकैकनायकं विनाशितेभदैत्यकं

    नताशुभाशुनाशकं नमामि तं विनायकम् ॥१॥

    नतेतरातिभीकरं नवोदितार्कभास्वरं

    नमत्सुरारिनिर्जरं नताधिकापदुद्धरम् ।

    सुरेश्वरं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरं

    महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ॥२॥

    समस्तलोकशंकरं निरस्तदैत्यकुञ्जरं

    दरेतरोदरं वरं वरेभवक्त्रमक्षरम् ।

    कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करं

    मनस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम् ॥३॥

    अकिंचनार्तिमार्जनं चिरन्तनोक्तिभाजनं

    पुरारिपूर्वनन्दनं सुरारिगर्वचर्वणम् ।

    प्रपञ्चनाशभीषणं धनंजयादिभूषणम्

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    (Picture Credit: Freepik)

    कपोलदानवारणं भजे पुराणवारणम् ॥४॥

    नितान्तकान्तदन्तकान्तिमन्तकान्तकात्मजं

    अचिन्त्यरूपमन्तहीनमन्तरायकृन्तनम् ।

    हृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनां

    तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि सन्ततम् ॥५॥

    महागणेशपञ्चरत्नमादरेण योऽन्वहं

    प्रजल्पति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम् ।

    अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रतां

    समाहितायुरष्टभूतिमभ्युपैति सोऽचिरात् ॥६॥

    गणेश स्तोत्र

    प्रणम्य शिरसा देवं गौरी विनायकम् ।

    भक्तावासं स्मेर नित्यमाय्ः कामार्थसिद्धये ॥1॥

    प्रथमं वक्रतुडं च एकदंत द्वितीयकम् ।

    तृतियं कृष्णपिंगात्क्षं गजववत्रं चतुर्थकम् ॥2॥

    लंबोदरं पंचम च पष्ठं विकटमेव च ।

    सप्तमं विघ्नराजेंद्रं धूम्रवर्ण तथाष्टमम् ॥3॥

    नवमं भाल चंद्रं च दशमं तु विनायकम् ।

    एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजानन् ॥4॥

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    द्वादशैतानि नामानि त्रिसंघ्यंयः पठेन्नरः ।

    न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो ॥5॥

    विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् ।

    पुत्रार्थी लभते पुत्रान्मो क्षार्थी लभते गतिम् ॥6॥

    जपेद्णपतिस्तोत्रं षडिभर्मासैः फलं लभते ।

    संवत्सरेण सिद्धिंच लभते नात्र संशयः ॥7॥

    अष्टभ्यो ब्राह्मणे भ्यश्र्च लिखित्वा फलं लभते ।

    तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादतः ॥8॥

    ॥ इति श्री नारद पुराणे संकष्टनाशनं नाम श्री गणपति स्तोत्रं संपूर्णम् ॥

    गणेश जी के मंत्र

    1. वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ ।
    निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥

    2. "ऊं गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा"

    3. गणेश गायत्री मंत्र - ॐ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभः। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥

    4. गणेश बीज मंत्र - "ऊ गं गणपतये नमः" 

    5. गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारु भक्षणमं।

    उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम।

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