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    Govardhan Puja के दिन जरूर करें ये आरती, बरसेगी गिरिराज महाराज की कृपा

    Updated: Wed, 22 Oct 2025 09:11 AM (IST)

    गोवर्धन पूजा हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर यानी दिवाली के एक दिन बाद मनाई जाती है। यह पर्व मुख्य रूप से भगवान कृष्ण को समर्पित है। माना जाता है कि इस दिन पर भगवान श्रीकृष्ण ने घनघोर वर्षा से ब्रजवासियों के बचाव के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाया था। इस बार गोवर्धन पूजा बुधवार, 22 अक्टूबर 2025 को की जाएगी।

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    गोवर्धन पूजा के दिन करें ये आरती। (Picture Credit: Freepik)

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja 2025) को अन्नकूट पूजा (Annakut Puja 2025) भी कहा जाता है। कई साधक इस दिन पर विश्वकर्मा जी की भी पूजा करते हैं और अपने मशीनों व उपकरणों का पूजन करते हैं। मान्यता है कि इस दिन गिरीराज महाराज की पूजा करने से धन, संतान और गौ रस में वृद्धि होती है। चलिए पढ़ते हैं गोवर्धन महाराज जी की आरती, जिसके बिना पूजन अधूरा होता है।

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    ॥ आरती श्री गोवर्धन महाराज की ॥ (Shri Govardhan Maharaj Ki Aarti)

    श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज,तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।

    तोपे पान चढ़े तोपे फूल चढ़े,तोपे चढ़े दूध की धार।

    तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।

    तेरी सात कोस की परिकम्मा,चकलेश्वर है विश्राम।

    तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।

    तेरे गले में कण्ठा साज रहेओ,ठोड़ी पे हीरा लाल।

    तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।

    तेरे कानन कुण्डल चमक रहेओ,तेरी झाँकी बनी विशाल।

    तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।

    गिरिराज धरण प्रभु तेरी शरण,करो भक्त का बेड़ा पार।

    तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ।

    Govardhan Puja 2025 (1)

    आरती कुंज बिहारी की (Aarti Kunj Bihari Ki)

    आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की
    गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला।
    श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला।

    आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
    गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली।
    लतन में ठाढ़े बनमाली; भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक,
    ललित छवि श्यामा प्यारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की।
    आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

    कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं।
    गगन सों सुमन रासि बरसै; बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग;
    अतुल रति गोप कुमारी की॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
    आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

    जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा।
    स्मरन ते होत मोह भंगा; बसी सिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच;
    चरन छवि श्रीबनवारी की॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
    आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

    चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू।
    चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू; हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद, कटत भव फंद।।
    टेर सुन दीन भिखारी की॥ श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
    आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
    आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
    आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।