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    Ashadha Purnima 2025: आषाढ़ पूर्णिमा पर पूजा के समय करें इस स्तोत्र का पाठ, धन की परेशानी हो जाएगी दूर

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Wed, 09 Jul 2025 06:19 PM (IST)

    ज्योतिषियों की मानें तो गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima 2025) के दिन कई मंगलकारी शुभ योग बन रहे हैं। इन योग में भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होगी। साथ ही सभी संकटों से मुक्ति मिलेगी। इस शुभ अवसर पर अन्न और धन का दान किया जाता है।

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    Ashadha Purnima 2025: आषाढ़ पूर्णिमा का धार्मिक महत्व

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। देश भर में 10 जुलाई को आषाढ़ पूर्णिमा मनाई जाएगी। पूर्णिमा तिथि लक्ष्मी नारायण जी को समर्पित होता है। इस शुभ अवसर पर बड़ी संख्या में साधक गंगा समेत पवित्र नदियों में आस्था की डुबकी लगाते हैं और लक्ष्मी नारायण जी की पूजा करते हैं। पूर्णिमा तिथि पर दान करने का भी विधान है।

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    धार्मिक मत है कि पूर्णिमा तिथि पर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करने से साधक के सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही जीवन में व्याप्त हर परेशानी दूर हो जाती है। अगर आप भी लक्ष्मी नारायण जी की कृपा पाना चाहते हैं, तो आषाढ़ पूर्णिमा के दिन स्नान-ध्यान के बाद विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय इस स्तोत्र का पाठ करें।

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    ।। अथ श्री-सूक्त मंत्र पाठ ।।

    ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं, सुवर्णरजतस्त्रजाम् ।

    चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आ वह ।।

    तां म आ वह जातवेदो, लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।

    यस्यां हिरण्यं विन्देयं, गामश्वं पुरूषानहम् ।।

    अश्वपूर्वां रथमध्यां, हस्तिनादप्रमोदिनीम् ।

    श्रियं देवीमुप ह्वये, श्रीर्मा देवी जुषताम् ।।

    कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।

    पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम् ।।

    चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् ।

    तां पद्मिनीमीं शरणं प्र पद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ।।

    आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽक्ष बिल्वः ।

    तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मीः ।।

    उपैतु मां दैवसखः, कीर्तिश्च मणिना सह ।

    प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्, कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ।।

    क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।

    अभतिमसमृद्धिं च, सर्वां निर्णुद मे गृहात् ।।

    गन्धद्वारां दुराधर्षां, नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।

    ईश्वरीं सर्वभूतानां, तामिहोप ह्वये श्रियम् ।।

    मनसः काममाकूतिं, वाचः सत्यमशीमहि ।

    पशूनां रूपमन्नस्य, मयि श्रीः श्रयतां यशः ।।

    कर्दमेन प्रजा भूता मयि सम्भव कर्दम ।

    श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ।।

    आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे ।

    नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ।।

    आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलां पद्ममालिनीम् ।

    चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आ वह ।।

    आर्द्रां य करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् ।

    सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ।।

    तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।

    यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम् ।।

    य: शुचि: प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम् ।

    सूक्तं पंचदशर्चं च श्रीकाम: सततं जपेत् ।।

    धनदा लक्ष्मी स्तोत्र (Dhanadalakshmi Stotram)

    ॥ धनदा उवाच ॥

    देवी देवमुपागम्य नीलकण्ठं मम प्रियम्।

    कृपया पार्वती प्राह शंकरं करुणाकरम्॥1॥

    ॥ देव्युवाच ॥

    ब्रूहि वल्लभ साधूनां दरिद्राणां कुटुम्बिनाम्।

    दरिद्र दलनोपायमंजसैव धनप्रदम्॥

    ॥ शिव उवाच ॥

    पूजयन् पार्वतीवाक्यमिदमाह महेश्वरः।

    उचितं जगदम्बासि तव भूतानुकम्पया॥

    स सीतं सानुजं रामं सांजनेयं सहानुगम्।

    प्रणम्य परमानन्दं वक्ष्येऽहं स्तोत्रमुत्तमम्॥

    धनदं श्रद्धानानां सद्यः सुलभकारकम्।

    योगक्षेमकरं सत्यं सत्यमेव वचो मम॥

    पठंतः पाठयंतोऽपि ब्रह्मणैरास्तिकोत्तमैः।

    धनलाभो भवेदाशु नाशमेति दरिद्रता॥

    भूभवांशभवां भूत्यै भक्तिकल्पलतां शुभाम्।

    प्रार्थयत्तां यथाकामं कामधेनुस्वरूपिणीम्॥

    धनदे धनदे देवि दानशीले दयाकरे।

    त्वं प्रसीद महेशानि! यदर्थं प्रार्थयाम्यहम्॥

    धराऽमरप्रिये पुण्ये धन्ये धनदपूजिते।

    सुधनं र्धामिके देहि यजमानाय सत्वरम्॥

    रम्ये रुद्रप्रिये रूपे रामरूपे रतिप्रिये।

    शिखीसखमनोमूर्त्ते प्रसीद प्रणते मयि॥

    आरक्त-चरणाम्भोजे सिद्धि-सर्वार्थदायिके।

    दिव्याम्बरधरे दिव्ये दिव्यमाल्यानुशोभिते॥

    समस्तगुणसम्पन्ने सर्वलक्षणलक्षिते।

    शरच्चन्द्रमुखे नीले नील नीरज लोचने॥

    चंचरीक चमू चारु श्रीहार कुटिलालके।

    मत्ते भगवती मातः कलकण्ठरवामृते॥

    हासाऽवलोकनैर्दिव्यैर्भक्तचिन्तापहारिके।

    रूप लावण्य तारूण्य कारूण्य गुणभाजने॥

    क्वणत्कंकणमंजीरे लसल्लीलाकराम्बुजे।

    रुद्रप्रकाशिते तत्त्वे धर्माधरे धरालये॥

    प्रयच्छ यजमानाय धनं धर्मेकसाधनम्।

    मातस्त्वं मेऽविलम्बेन दिशस्व जगदम्बिके॥

    कृपया करुरागारे प्रार्थितं कुरु मे शुभे।

    वसुधे वसुधारूपे वसु वासव वन्दिते॥

    धनदे यजमानाय वरदे वरदा भव।

    ब्रह्मण्यैर्ब्राह्मणैः पूज्ये पार्वतीशिवशंकरे॥

    स्तोत्रं दरिद्रताव्याधिशमनं सुधनप्रदम्।

    श्रीकरे शंकरे श्रीदे प्रसीद मयिकिंकरे॥

    पार्वतीशप्रसादेन सुरेश किंकरेरितम्।

    श्रद्धया ये पठिष्यन्ति पाठयिष्यन्ति भक्तितः॥

    सहस्रमयुतं लक्षं धनलाभो भवेद् ध्रुवम्

    धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।

    भवन्तु त्वत्प्रसादान्मे धन-धान्यादिसम्पदः॥

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।