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    Bada Mangal 2025: अंतिम बड़े मंगल पर इस नियम से करें आरती, शुभ फलों की होगी प्राप्ति

    Updated: Tue, 10 Jun 2025 08:18 AM (IST)

    आज ज्येष्ठ महीने का अंतिम बड़ा मंगल (Bada Mangal 2025) मनाया जा रहा है। भक्तों में इसका बहुत महत्व है। इसे बुढ़वा मंगल भी कहते हैं। इस दिन हनुमान जी की पूजा-अर्चना की जाती है और उपवास रखा जाता है। कहा जाता है कि प्रभु राम और हनुमान जी की आरती के बिना यह दिन अधूरा रहता है तो आइए करते हैं।

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    Bada Mangal 5th 2025: हनुमान जी की आरती। (Img Caption - Freepic)

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। आज ज्येष्ठ महीने का अंतिम बड़ा मंगल मनाया जा रहा है, जिसका भक्तों के बीच बहुत ज्यादा महत्व है। इसे बुढ़वा मंगल भी कहा जाता है। इस दिन भक्त भगवान हनुमान जी की पूजा-अर्चना करते हैं और कठिन उपवास रखते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह पर्व (Bada Mangal 5th 2025) हर साल ज्येष्ठ महीने में मनाया जाता है। ऐसे में इस दिन सुबह साधक पवित्र मन के साथ दिन की शुरुआत करें। फिर स्नान करें।

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    हनुमान जी के सामने दीपक जलाएं। उन्हें लाल चोला, लड्डू, तुलसी दल और लाल फूल चढ़ाएं। कपूर और दीपक से भव्य आरती करें। साथ में राम जी की आरती भी जरूर करें, क्योंकि प्रभु राम के बिना वीर हनुमान की पूजा अधूरी मानी जाती है, तो चलिए आरती करते हैं।

    ।। हनुमान जी की आरती।। (Hanuman Ji Ki Aarti Lyrics)

    आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।

    जाके बल से गिरिवर कांपे। रोग दोष जाके निकट न झांके।।

    अंजनि पुत्र महाबलदायी। संतान के प्रभु सदा सहाई।।

    दे बीरा रघुनाथ पठाए। लंका जारी सिया सुध लाए।।

    लंका सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई।।

    लंका जारी असुर संहारे। सियारामजी के काज संवारे।।

    लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे। आणि संजीवन प्राण उबारे।।

    पैठि पताल तोरि जमकारे। अहिरावण की भुजा उखाड़े।।

    बाएं भुजा असुर दल मारे। दाहिने भुजा संतजन तारे।।

    सुर-नर-मुनि जन आरती उतारे। जै जै जै हनुमान उचारे।।

    कंचन थार कपूर लौ छाई। आरती करत अंजना माई।।

    लंकविध्वंस कीन्ह रघुराई। तुलसीदास प्रभु कीरति गाई।।

    ।।भगवान राम की आरती।। (Shri Ramchandra Ji Aarti)

    श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भव भय दारुणम्।

    नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम्।।

    कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम्।

    पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम्।।

    भजु दीन बंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम्।

    रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम्।।

    सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं।

    आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर-धूषणं।।

    इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।

    मम ह्रदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम्।।

    मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरों।

    करुना निधान सुजान सिलू सनेहू जानत रावरो।।

    एही भांती गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषी अली।

    तुलसी भवानी पूजि पूनी पूनी मुदित मन मंदिर चली।।

    दोहा- जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।

    मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे।।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।