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    Bada Mangal 2nd 2025: दूसरे बड़े मंगल पर हनुमान जी की इस आरती से करें सभी मनोकामनाएं पूरी

    Updated: Tue, 20 May 2025 06:30 AM (IST)

    ज्येष्ठ महीने के सभी मंगलवार को बड़ा मंगल कहा जाता है। इस दिन हनुमान जी की पूजा और व्रत का महत्व है। आज दूसरा बड़ा मंगल है। मान्यता है कि इस उपवास से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और संकट दूर होते हैबजरंगबली की कृपा पाने के लिए हनुमान जी और भगवान राम की आरती करना शुभ माना जाता है।

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    Bada Mangal 2nd 2025: हनुमान जी की आरती।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। ज्येष्ठ महीने में पड़ने वाले सभी मंगलवार को बड़ा मंगल और बुढ़वा मंगल कहा जाता है। इस दिन साधक राम भक्त भगवान हनुमान की पूजा-अर्चना करते हैं। इस दिन व्रत रखने की भी मान्यता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल ज्येष्ठ महीने का दूसरा बड़ा मंगल (Bada Mangal 2nd 2025) 20 मई, 2025 यानी आज मनाया जा रहा है। माना जाता है कि इस कठिन उपवास का पालन करने से सभी मनाकामनाओं की पूर्ति होती है।

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    इसके साथ ही जीवन में आने वाले संकटों से छुटकारा मिलता है। ऐसे में जो लोग बजरंगबली की कृपा पाने की इच्छा रखते हैं, उन्हें इस दिन उनकी और भगवान राम की भव्य आरती जरूर करनी चाहिए, जो इस प्रकार हैं।

    ।। हनुमान जी की आरती।। (Hanuman Ji Ki Aarti Lyrics)

    आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।

    जाके बल से गिरिवर कांपे। रोग दोष जाके निकट न झांके।।

    अंजनि पुत्र महाबलदायी। संतान के प्रभु सदा सहाई।।

    दे बीरा रघुनाथ पठाए। लंका जारी सिया सुध लाए।।

    लंका सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई।।

    लंका जारी असुर संहारे। सियारामजी के काज संवारे।।

    लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे। आणि संजीवन प्राण उबारे।।

    पैठि पताल तोरि जमकारे। अहिरावण की भुजा उखाड़े।।

    बाएं भुजा असुर दल मारे। दाहिने भुजा संतजन तारे।।

    सुर-नर-मुनि जन आरती उतारे। जै जै जै हनुमान उचारे।।

    कंचन थार कपूर लौ छाई। आरती करत अंजना माई।।

    लंकविध्वंस कीन्ह रघुराई। तुलसीदास प्रभु कीरति गाई।।

    ।।भगवान राम की आरती।। (Shri Ramchandra Ji Aarti)

    श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भव भय दारुणम्।

    नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम्।।

    कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम्।

    पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम्।।

    भजु दीन बंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम्।

    रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम्।।

    सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं।

    आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर-धूषणं।।

    इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।

    मम ह्रदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम्।।

    मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरों।

    करुना निधान सुजान सिलू सनेहू जानत रावरो।।

    एही भांती गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषी अली।

    तुलसी भवानी पूजि पूनी पूनी मुदित मन मंदिर चली।।

    दोहा- जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।

    मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे।।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।