Bada Mangal 4th 2025: चौथे बड़े मंगल पर करें हनुमान जी की भव्य आरती, मिलेगी प्रभु श्रीराम की कृपा
ज्येष्ठ महीने के सभी मंगलवार को बुढ़वा मंगल (Bada Mangal 4th 2025) के रूप में मनाया जाता है जो भगवान हनुमान को समर्पित है। इस दिन व्रत रखने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस साल ज्येष्ठ महीने का चौथा बड़ा मंगल 3 जून यानी आज मनाया जा रहा है। इस व्रत से भगवान राम प्रसन्न होते हैं क्योंकि यह उनके और हनुमान जी के प्रथम मिलन का प्रतीक है।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। ज्येष्ठ महीने के सभी मंगलवार को बड़ा मंगल और बुढ़वा मंगल के नाम से जाना जाता है। यह दिन भगवान हनुमान को समर्पित है। इस दिन व्रत करने से सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल ज्येष्ठ महीने का चौथा बड़ा मंगल (Bada Mangal 4th 2025) 3 जून, 2025 यानी आज मनाया जा रहा है। कहा जाता है कि इस कठिन व्रत को रखने से राम जी खुश होते हैं, क्योंकि यह उनके और पवन पुत्र के प्रथम मिलन का प्रतीक है।
ऐसे में वीर बजरंगी की कृपा पाने के लिए उनके साथ भगवान राम की भव्य आरती जरूर करें, जो इस प्रकार हैं।
।। हनुमान जी की आरती।। (Hanuman Ji Ki Aarti Lyrics)
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की।।
जाके बल से गिरिवर कांपे। रोग दोष जाके निकट न झांके।।
अंजनि पुत्र महाबलदायी। संतान के प्रभु सदा सहाई।।
दे बीरा रघुनाथ पठाए। लंका जारी सिया सुध लाए।।
लंका सो कोट समुद्र सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई।।
लंका जारी असुर संहारे। सियारामजी के काज संवारे।।
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे। आणि संजीवन प्राण उबारे।।
पैठि पताल तोरि जमकारे। अहिरावण की भुजा उखाड़े।।
बाएं भुजा असुर दल मारे। दाहिने भुजा संतजन तारे।।
सुर-नर-मुनि जन आरती उतारे। जै जै जै हनुमान उचारे।।
कंचन थार कपूर लौ छाई। आरती करत अंजना माई।।
लंकविध्वंस कीन्ह रघुराई। तुलसीदास प्रभु कीरति गाई।।
।।भगवान राम की आरती।। (Shri Ramchandra Ji Aarti)
श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भव भय दारुणम्।
नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम्।।
कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम्।
पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम्।।
भजु दीन बंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम्।
रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम्।।
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं।
आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर-धूषणं।।
इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।
मम ह्रदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम्।।
मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरों।
करुना निधान सुजान सिलू सनेहू जानत रावरो।।
एही भांती गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषी अली।
तुलसी भवानी पूजि पूनी पूनी मुदित मन मंदिर चली।।
दोहा- जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे।।
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