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    Pradosh Vrat 2025: इस चमत्कारी स्तोत्र के पाठ से प्रसन्न होंगे महादेव, अन्न-धन से भर जाएंगे भंडार

    Updated: Tue, 19 Aug 2025 08:30 PM (IST)

    धार्मिक मत है कि बुध प्रदोष व्रत के दिन शिव-शक्ति की पूजा करने से साधक के सकल मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। साथ ही जीवन में व्याप्त सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति मिलती है। इस शुभ अवसर पर मंदिरों में देवों के देव महादेव की विशेष पूजा की जाती है।

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    Pradosh Vrat 2025: भगवान शिव को कैसे प्रसन्न करें?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। त्रयोदशी तिथि भगवान शिव को अति प्रिय है। इस शुभ अवसर पर प्रदोष व्रत मनाया जाता है। प्रदोष व्रत के दिन देवों के देव महादेव और मां पार्वती की पूजा की जाती है। साथ ही मनचाही मुराद पाने के लिए व्रत रखा जाता है। इस व्रत को स्त्री और पुरुष दोनों ही कर सकते हैं।

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    प्रदोष व्रत का फल दिन अनुसार प्राप्त होता है। भाद्रपद महीने का पहला प्रदोष व्रत बुधवार 20 अगस्त को है। बुधवार के दिन पड़ने के चलते यह बुध प्रदोष व्रत कहलाएगा। बुध प्रदोष व्रत करने से साधक की मनचाही मुराद पूरी होती है। साथ ही आर्थिक स्थिति भी मजबूत होती है।

    अगर आप भी आर्थिक विषमता को दूर करना चाहते हैं, तो बुध प्रदोष व्रत के दिन भक्ति भाव से भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करें। साथ ही पूजा के समय इस स्तोत्र का पाठ अवश्य करें।

    दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र

    विश्वेश्वराय नरकार्णवतारणाय कर्णामृताय शशिशेखरधारणाय ।

    कर्पूरकान्तिधवलाय जटाधराय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    गौरीप्रियाय रजनीशकलाधराय कालान्तकाय भुजगाधिपकङ्कणाय ।

    गङ्गाधराय गजराजविमर्दनाय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    भक्तप्रियाय भवरोगभयापहाय उग्राय दुर्गभवसागरतारणाय ।

    ज्योतिर्मयाय गुणनामसुकृत्यकाय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    चर्मांबराय शवभस्मविलेपनाय भालेक्षणाय मणिकुण्डलमण्डिताय ।

    मंजीरपादयुगलाय जटाधराय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    पञ्चाननाय फणिराजविभूषणाय हेमांशुकाय भुवनत्रय मण्डिताय ।

    आनन्दभूमिवरदाय तमोमयाय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    गौरीविलासभवनाय महेश्वराय पञ्चाननाय शरणागतकल्पकाय ।

    शर्वाय सर्वजगतामधिपाय तस्मै दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    भानुप्रियाय भवसागरतारणाय कालान्तकाय कमलासनपूजिताय ।

    नेत्रत्रयाय शुभलक्षणलक्षिताय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    रामप्रियाय राघुनाथवरप्रदाय नागप्रियाय नरकार्णवतारणाय ।

    पुण्येषु पुण्यभरिताय सुरार्चिताय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    मुक्तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय गीतप्रियाय वृषभेश्वरवाहनाय ।

    मातङ्गचर्मवसनाय महेश्वराय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    वसिष्ठेनकृतं स्तोत्रं सर्व दारिद्‌र्यनाशनम् ।

    सर्वसंपत्करं शीघ्रं पुत्रपौत्रादिवर्धनम् ॥

    ऋणहर्ता श्री गणेश स्तोत्र

    सृष्ट्यादौ ब्रह्मणा सम्यक् पूजितः फलसिद्धये।

    सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु मे॥

    त्रिपुरस्य वधात्पूर्वं शम्भुना सम्यगर्चितः।

    सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु मे॥

    हिरण्यकश्यपादीनां वधार्थे विष्णुनार्चितः।

    सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु मे॥

    महिषस्य वधे देव्या गणनाथः प्रपूजितः।

    सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु मे॥

    तारकस्य वधात्पूर्वं कुमारेण प्रपूजितः।

    सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु मे॥

    भास्करेण गणेशस्तु पूजितश्छविसिद्धये।

    सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु मे॥

    शशिना कान्तिसिद्ध्यर्थं पूजितो गणनायकः।

    सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु मे॥

    पालनाय च तपसा विश्वामित्रेण पूजितः।

    सदैव पार्वतीपुत्र ऋणनाशं करोतु मे॥

    इदं त्वृणहरं स्तोत्रं तीव्रदारिद्र्यनाशनम्।

    एकवारं पठेन्नित्यं वर्षमेकं समाहितः॥

    दारिद्र्यं दारुणं त्यक्त्वा कुबेरसमतां व्रजेत्।

    फडन्तोऽयं महामन्त्रः सार्धपञ्चदशाक्षरः॥

    अस्यैवायुतसंख्याभिः पुरश्चरणमीरितम।

    सहस्रावर्तनात् सद्यो वाञ्छितं लभते फलम्॥

    भूत-प्रेत-पिशाचानां नाशनं स्मृतिमात्रतः॥

    ऋणमुक्ति श्री गणेश स्तोत्र

    ॐ स्मरामि देवदेवेशंवक्रतुण्डं महाबलम्।

    षडक्षरं कृपासिन्धुंनमामि ऋणमुक्तये॥

    महागणपतिं वन्देमहासेतुं महाबलम्।

    एकमेवाद्वितीयं तुनमामि ऋणमुक्तये॥

    एकाक्षरं त्वेकदन्तमेकंब्रह्म सनातनम्।

    महाविघ्नहरं देवंनमामि ऋणमुक्तये॥

    शुक्लाम्बरं शुक्लवर्णंशुक्लगन्धानुलेपनम्।

    सर्वशुक्लमयं देवंनमामि ऋणमुक्तये॥

    रक्ताम्बरं रक्तवर्णंरक्तगन्धानुलेपनम्।

    रक्तपुष्पैः पूज्यमानंनमामि ऋणमुक्तये॥

    कृष्णाम्बरं कृष्णवर्णंकृष्णगन्धानुलेपनम्।

    कृष्णयज्ञोपवीतं चनमामि ऋणमुक्तये॥

    पीताम्बरं पीतवर्णपीतगन्धानुलेपनम्।

    पीतपुष्पैः पूज्यमानंनमामि ऋणमुक्तये॥

    सर्वात्मकं सर्ववर्णंसर्वगन्धानुलेपनम्।

    सर्वपुष्पैः पूज्यमानंनमामि ऋणमुक्तये॥

    एतद् ऋणहरं स्तोत्रंत्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः।

    षण्मासाभ्यन्तरे तस्यऋणच्छेदो न संशयः॥

    सहस्रदशकं कृत्वाऋणमुक्तो धनी भवेत्॥

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