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    भगवान का शृंगार परंपरा नहीं साधना है, जानिए इसका महत्व

    By Jagran NewsEdited By: Vaishnavi Dwivedi
    Updated: Mon, 23 Jun 2025 10:42 AM (IST)

    मंदिरों में देवी-देवताओं के विग्रह शृंगार में परिधानों का विशेष महत्व है, जो श्रद्धा और आस्था का प्रतीक हैं। अयोध्या के रामलला, वृंदावन के बांके बिहार ...और पढ़ें

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    भगवान के शृंगार का महत्व।

    शालिनी देवरानी, लेखिका। मंदिरों में विग्रह शृंगार में परिधानों का विशेष महत्व है। अयोध्या में बसे प्रभु रामलला हों, त्रिकुटा पर्वत पर विराजीं मां वैष्णो देवी हों या वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में सजे नंदलाल, विग्रह को अर्पित वस्त्रों का एक-एक धागा गूंथने की कहानी साझा कर रही हैं शालिनी देवरानी। जन्मभूमि परिसर अयोध्या में जब प्रभु श्रीराम रंगीन परिधानों और सुंदर आभूषणों से सुसज्जित होकर बाल रूप में दर्शन देते हैं, तो वे सौम्यता, शक्ति और मर्यादा का दिव्य संगम नजर आते हैं। उनके शांत और तेजस्वी मुख मंडल की आभा ऐसी है कि वे बच्चों को सखा से लगते हैं, तो बड़ों को पालनहार। वहीं वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में पुष्प मालाओं, मोरपंख और सुंदर परिधानों संग मनमोहक मुस्कान लिए बाल गोपाल, भक्तों के हृदय को वात्सल्य, करुणा और प्रेम से भर देते हैं।

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    उधर, त्रिकुटा पर्वत पर लाल चुनरी और रत्न जड़ित आभूषणों से सुसज्जित मां वैष्णो देवी- अनंत श्रद्धा, अपार शक्ति और गहन करुणा का ऐसा दिव्य स्वरूप रचती हैं, जिनके दर्शन मात्र से ही हर पीड़ा मिट जाती है। परिधान, शृंगार और भाव... ये तीनों मिलकर जब ईश्वर के दिव्य विग्रहों को परिपूर्ण करते हैं, तब जन्म लेती है एक ऐसी अनुभूति, जिसे केवल अनुभव किया जा सकता है।

    आत्मा को अतुलनीय आनंद

    मंदिरों में ईश्वर के विग्रह रूपों का शृंगार कोई औपचारिक परंपरा मात्र नहीं, ये साक्षात साधना है, जिसे श्रद्धा और आस्था से बुना जाता है। इनका हर धागा किसी साधक का अटूट प्रेम होता है, हर कढ़ाई में गहरी साधना होती है और हर रंग में छिपा होता है किसी भक्त का निश्छल समर्पण। हर वस्त्र मौसम, पर्व व दिवस के आधार पर चयनित होता है। गर्मी में मलमल की शीतलता, तो सर्दी में ऊनी वस्त्रों की उष्मा स्नेहिल स्पर्श देती है। वहीं त्योहार व विशेष अवसरों पर पर रेशमी परिधानों में राजसी आभा नजर आती है।

    यह शृंगार केवल सौंदर्य प्रदर्शन नहीं, प्रेम और अपनेपन का सजीव उदाहरण है। हर दिन एक नया रूप, हर दिन नई आभा। रंग व अलंकरण भले ही अलग हों, पर उनकी दिव्यता और भक्तों की भावना सदा एक सी रहती है। वस्त्र रेशमी हों, सूती या मलमल, प्रभु की छवि में ढलकर वे स्वयं उनकी दिव्यता का विस्तार बन जाते हैं।

    सुंदर कलाकृतियों और महीन कारीगरी से सजे वस्त्र, रत्न जड़ित आभूषण और सिर पर सुशोभित मुकुट मिलकर एक ऐसा अनुपम शृंगार रचते हैं, जो एक ही पल में मन को मोहित कर लेता है। उनके दर्शन मात्र से ही हृदय पुलकित हो जाता है और आत्मा अभिभूत।

    दिल्ली के हस्तशिल्प से सजते रामलला

    अयोध्या जाने वाला हर श्रद्धालु सोचता है, आज प्रभु किस रूप में दर्शन देंगे? कभी गुलाबी परिधान में सजे रामलला के मुख मंडल पर बाल्य रूप की कोमलता दिखती है, कभी श्वेत वस्त्रों में सौम्यता, तो कभी पीतांबर वस्त्रों में मर्यादा पुरुषोत्तम की गरिमा। रामलला का रूप जितना अलौकिक, उतने ही अद्वितीय हैं उनके परिधान। खास बात ये है कि प्रेम और भक्ति से सजे ये परिधान रोजाना दिल्ली से अयोध्या भेजे जाते हैं और प्रभु की इस सेवा में जुटे हैं ग्रेटर कैलाश निवासी-1 निवासी डिजायनर मनीष त्रिपाठी। वे परंपरागत शिल्प, प्राचीन हस्तकला, आधुनिक सौंदर्यबोध और गहन भक्ति के मिश्रण से ऐसे परिधान सजाते हैं, जिससे रामलला की दिव्यता निखर जाती है।

    मनीष बताते हैं कि, यह सिर्फ परिधान नहीं, एक साधना है जिसमें हर धागा भक्ति से बुना गया है, हर रंग में भावों की गहराई है। करीब 12 श्रम साधकों की टीम के साथ राम सेवा में लगे हैं।

    जैसा मौसम वैसे परिधान

    परिधान केवल शोभा नहीं, मौसम और परंपरा का ध्यान रखते हुए भी गढ़े जाते हैं। त्योहारों पर रेशमी, गर्मी में मलमल और कड़ाके की सर्दी में पश्मीना व ऊनी वस्त्र। सभी प्रमुख मंदिरों में ईश्वर के विग्रह रूपों के वस्त्र मौसम के मुताबिक बदले जाते हैं। रामलला की बात करें तो उनके हर परिधान में दो राज्यों की कला का संगम होता है-जैसे मध्य प्रदेश के चंदेरी सिल्क पर गुजरात का अजरख प्रिंट, मुर्शिदाबाद, बंगाल के काटन पर राजस्थानी बांधनी, चंदेरी पर राजस्थान का बगरू, कर्नाटक या काशी सिल्क पर ओडिशा का संबलपुरी डिजाइन बनाया जाता है।

    उसी तरह बांके बिहारी मंदिर में भी बाल गोपाल अलग-अलग मौसम के हिसाब से वस्त्रों में दिखेंगे, जैसे गर्मी में आरामदायक सूती, तो सर्दी में शाल, गर्म टोपी और स्वेटर पहने हुए!

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    सहजता, कोमलता और गरिमा का सम्मिश्रण

    रामलला हों या बाल गोपाल- ये ईश्वर के बाल्य रूप हैं और आस्था व प्रेम के गहरे प्रतीक भी। ऐसे में इन विग्रहों का शृंगार धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि ऐसे भावनात्मक जुड़ाव की अभिव्यक्ति है, जैसे एक मां अपने बालक के लिए रखती है। इनमें कोमलता, गहराई और गरिमा तीनों का समावेश होता है। मनीष त्रिपाठी बताते हैं, ‘रामलला मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, इसलिए उनके वस्त्रों में राजसी गरिमा झलकनी चाहिए और बाल रूप में हैं तो सहजता भी रहनी चाहिए।

    वस्त्रों की लाइनिंग विशेष रूप से मलमल की होती है, ताकि प्रभु को स्पर्श चुभे नहीं। रामलला के परिधान हर दिन के भाव व ऊर्जा के भी प्रतीक हैं, इसलिए वे सोमवार को श्वेत, मंगलवार को लाल, बुधवार को हरे, गुरुवार को पीले, शुक्रवार को क्रीम, शनिवार को नीले और रविवार का गुलाबी रंगों में नजर आते हैं। विशेष पर्व व त्योहारों पर प्रभु पीतांबर वस्त्र धारण करते हैं। उनके वस्त्रों पर वैष्णव पद्धति के मंगलचिह्न जैसे शंख, चक्र, पद्म और मयूर आदि उकेरे जाते हैं।

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