Ganesh Chaturthi 2025: गणेश उत्सव के दूसरे दिन करें ये काम, होंगे राजा की तरह धनवान
गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi 2025) हर साल पूर्ण भव्यता के साथ मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इन दस दिनों में भगवान गणेश भक्तों के बीच आकर उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। वहीं गणेश उत्सव के दूसरे दिन श्री गणपति अथर्वशीर्ष स्तुति का पाठ करने से धन और समृद्धि मिलती है जो इस प्रकार है -

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। गणेश चतुर्थी का त्योहार देशभर में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। 10 दिनों तक चलने वाला यह उत्सव भगवान गणेश के भक्तों के लिए बेहद खास होता है। इस दौरान भक्त अपने घरों में गणपति बप्पा की प्रतिमा स्थापित करते हैं और उनकी विधि-विधान से पूजा करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इन 10 दिनों में भगवान गणेश धरती पर अपने भक्तों के बीच आते हैं और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
गणेश उत्सव के दूसरे दिन (Ganesh Chaturthi 2025) का भी विशेष महत्व होता है। अगर आप धन-संपत्ति और सुख-समृद्धि चाहते हैं, तो इस दिन ''श्री गणपति अथर्वशीर्ष स्तुति'' का पाठ जरूर करें। इससे आपके जीवन में पैसों की तंगी दूर हो सकती है, तो चलिए पढ़ते हैं।
।। अथ श्री गणपति अथर्वशीर्ष स्तुति ।।
ॐ नमस्ते गणपतये।
त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि।।
त्वमेव केवलं कर्त्ताऽसि।
त्वमेव केवलं धर्तासि।।
त्वमेव केवलं हर्ताऽसि।
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि।।
त्वं साक्षादत्मासि नित्यम्।
ऋतं वच्मि।। सत्यं वच्मि।।
अव त्वं मां।। अव वक्तारं।।
अव श्रोतारं। अवदातारं।।
अव धातारम अवानूचानमवशिष्यं।।
अव पश्चातात्।। अवं पुरस्तात्।।
अवोत्तरातात्।। अव दक्षिणात्तात्।।
अव चोर्ध्वात्तात।। अवाधरात्तात।।
सर्वतो मां पाहिपाहि समंतात्।।
त्वं वाङग्मयचस्त्वं चिन्मय।
त्वं वाङग्मयचस्त्वं ब्रह्ममय:।।
त्वं सच्चिदानंदा द्वितियोऽसि।
त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि।
त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि।।
सर्व जगदिदं त्वत्तो जायते।
सर्व जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति।
सर्व जगदिदं त्वयि लयमेष्यति।।
सर्व जगदिदं त्वयि प्रत्येति।।
त्वं भूमिरापोनलोऽनिलो नभ:।।
त्वं चत्वारिवाक्पदानी।।
त्वं गुणयत्रयातीत: त्वमवस्थात्रयातीत:।
त्वं देहत्रयातीत: त्वं कालत्रयातीत:।
त्वं मूलाधार स्थितोऽसि नित्यं।
त्वं शक्ति त्रयात्मक:।।
त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यम्।
त्वं शक्तित्रयात्मक:।।
त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं।
त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रुद्रस्त्वं इन्द्रस्त्वं अग्निस्त्वं।
वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं ब्रह्मभूर्भुव: स्वरोम्।।
गणादिं पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरं।।
अनुस्वार: परतर:।। अर्धेन्दुलसितं।।
तारेण ऋद्धं।। एतत्तव मनुस्वरूपं।।
गकार: पूर्व रूपं अकारो मध्यरूपं।
अनुस्वारश्चान्त्य रूपं।। बिन्दुरूत्तर रूपं।।
नाद: संधानं।। संहिता संधि: सैषा गणेश विद्या।।
गणक ऋषि: निचृद्रायत्रीछंद:।। गणपति देवता।।
।।ॐ गं गणपतये नम:।।
॥ गाइये गणपति जगवंदन स्तुति॥
गाइये गणपति जगवंदन ।
शंकर सुवन भवानी के नंदन ॥
सिद्धि सदन गजवदन विनायक ।
कृपा सिंधु सुंदर सब लायक ॥
गाइये गणपति जगवंदन ।
शंकर सुवन भवानी के नंदन ॥
मोदक प्रिय मुद मंगल दाता ।
विद्या बारिधि बुद्धि विधाता ॥
गाइये गणपति जगवंदन ।
शंकर सुवन भवानी के नंदन ॥
मांगत तुलसीदास कर जोरे ।
बसहिं रामसिय मानस मोरे ॥
गाइये गणपति जगवंदन ।
शंकर सुवन भवानी के नंदन ॥
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