Ganesh Chaturthi 2025: गणेश चतुर्थी पर क्यों नहीं देखना चाहिए चांद? जानें इसके पीछे की पौराणिक कथा
ज्योतिषियों की मानें तो भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी (Ganesh Chaturthi moon story) के दिन चंद्र दर्शन नहीं करना चाहिए। अनदेखी करने से व्यक्ति पाप का भागीदार होता है। उस पर भगवान गणेश की कृपा नहीं बरसती है। इसके लिए गणेश चतुर्थी पर चंद्रमा का दीदार नहीं करना चाहिए।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में भाद्रपद माह का विशेष महत्व है। इस माह के शुक्ल पक्ष में गणेश महोत्सव मनाया जाता है। दस दिवसीय गणेश महोत्सव की शुरुआत भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से होती है। वहीं, अनंत चतुर्दशी तिथि के दिन गणेश महोत्सव का समापन होता है।
इस साल 27 अगस्त से लेकर 06 सितंबर तक गणेश महोत्सव है। इस दौरान रिद्धि-सिद्धि के दाता भगवान गणेश की भक्ति भाव से पूजा की जाएगी। साथ ही उनके निमित्त भक्ति एवं साधना की जाएगी। भगवान गणेश की पूजा करने से जीवन में व्याप्त दुख और क्लेश दूर हो जाते हैं।
साथ ही सुख और सौभाग्य में भी वृद्धि होती है। लेकिन क्या आपको पता है कि गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन की मनाही है? अगर गलती से देख भी लेते हैं, तो साधक पाप के भागी बनते हैं। आइए, इससे संबंधित पौराणिक कथा जानते हैं-
पौराणिक कथा (Ganesh Chaturthi moon story)
गणेश पुराण के अनुसार, चिर काल में महर्षि नारद अपने आराध्य भगवान शिव से मिलने कैलाश पहुंचे। कुशलक्षेम पूछने के बाद उन्होंने भगवान शिव को एक दिव्य फल दिया और कहा कि जो आपको प्रिय है- उसे ही यह फल प्रदान करें। उस समय भगवान कार्तिकेय और गणेश दोनों ही शिवजी से दिव्य फल देने की मांग करने लगे। यह देख देवों के देव महादेव धर्म संकट में फंस गए।
दिव्य फल को लेकर उनके मन में यह दुविधा थी कि वह फल दोनों लड़कों (कार्तिकेय और गणेश जी) में किसे दें। यह जान उन्होंने सभी देवगणों को कैलाश पर बुलाया। उस समय भगवान कार्तिकेय और भगवान गणेश भी कैलाश पर मौजूद थे। तब भगवान शिव ने ब्रह्मा जी से पूछा-हे ब्रह्मदेव! आप परम ज्ञानी हैं।
आप ही बताएं कि यह फल किसे दिया जाए। दोनों ही दिव्य फल के हकदार हैं। मैं दुविधा में हूं और इस वजह से मेरे द्वारा कोई गलती न हो जाए। तब ब्रह्मा जी ने कहा कि यदि फल एक ही है, तो इस फल का हकदार कार्तिकेय हैं। बड़ा होने के चलते कार्तिकेय को ही यह दिव्य फल मिलना चाहिए।
यह सुनकर भगवान शिव ने तत्क्षण कार्तिकेय जी को दिव्य फल प्रदान कर दिया। यह देख भगवान गणेश रुष्ट हो गए। उन्होंने ब्रह्मा जी को सबक सीखने को सोच ली। सभा समाप्त होने के बाद सभी अपने लोक चले गए।
गणेश जी भी ब्रह्म लोक पहुंच गए और उग्र रूप में आकर ब्रह्मा जी के कार्य में विघ्न डालने लगे। यह देख चंद्र देव जोर-जोर से हंसने लगे। स्वयं का उपहास देख भगवान गणेश ने चंद्र देव को शाप दिया कि आज के बाद तुम किसी के देखने योग्य नहीं रहेगा। अगर कोई देख भी लेता है, तो वह पाप का भागी होगा। कालांतर में ऐसा ही हुआ। चंद्र देव का तेज खो गया।
उस समय देवताओं ने भगवान गणेश की विशेष पूजा की। कठिन भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान गणेश ने दर्शन देकर कहा- मेरा वचन मिथ्या नहीं हो सकता। साल भर नहीं पर तुम एक दिन के लिए अवश्य ही शापित रहोगे। तुम गं मंत्र का जप करो। इससे तुम्हारा कल्याण होगा।
कालांतर में भगवान गणेश ने चंद्र देव को यह कहकर शाप मुक्त किया कि भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी पर तुम्हारा दर्शन करने वाला व्यक्ति पाप का भागी होगा। अन्य चतुर्थी पर बिना चंद्र दर्शन के व्रत पूरा नहीं होगा। इसके लिए भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर चंद्र दर्शन करने की मनाही है।
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