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    Guru Nanak Jayanti 2025: जीवन की हर उलझन दूर करेंगे गुरु नानक देव जी के 4 प्रमुख उपदेश, हर पीढ़ी के लिए हैं अनमोल

    Updated: Sun, 02 Nov 2025 05:30 PM (IST)

    गुरु नानक देव जी की जयंती 5 नवंबर को मनाई जाएगी। उनके उपदेश मानवता, समानता और सत्य पर आधारित हैं, जिसमें बताया गया है कि ईश्वर एक है और हर जीव में विद्यमान है। सच्चा धर्म प्रेम, करुणा और सेवा में निहित है। उनके चार सिद्धांत - एक ओंकार (ईश्वर एक), नाम जपना (ईश्वर का स्मरण), किरत करना (ईमानदारी से कमाना) और वंड छकना (बांटकर खाना) - जीवन को सार्थक बनाते हैं। उन्होंने जाति-धर्म के भेद मिटाकर सभी को समान देखने की प्रेरणा दी, जो आज भी प्रासंगिक है।  

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    Guru Nanak Jayanti 2025: गुरु नानक जयंती का धार्मिक महत्व 

    दिव्या गौतम, एस्ट्रोपत्री। इस वर्ष 5 नवंबर को गुरु नानक देव जी की जयंती मनाई जाएगी। जिसे गुरुपर्व भी कहा जाता है। गुरु नानक देव जी के मुख्य उपदेश मानवता, समानता और सत्य के मूल सिद्धांतों पर आधारित हैं। उन्होंने सिखाया कि ईश्वर एक है और वह हर जीव में विद्यमान है। गुरु जी ने लोगों को बताया कि सच्चा धर्म किसी पूजा-पद्धति में नहीं, बल्कि प्रेम, करुणा और सेवा में निहित है।

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    guru nanak ji

    उनके चार प्रमुख सिद्धांत एक ओंकार, नाम जपना, किरत करना और वंड छकना जीवन को सार्थक बनाने का मार्ग दिखाते हैं। उन्होंने जाति, धर्म और पंथ के भेद मिटाकर सभी को समान दृष्टि से देखने की प्रेरणा दी। उनके उपदेश आज भी जीवन का सच्चा मार्गदर्शन हैं।


    एक ओंकार- ईश्वर एक है

    गुरु नानक देव जी का सबसे महत्वपूर्ण उपदेश था “एक ओंकार सतनाम” उन्होंने बताया कि ईश्वर एक ही है, जो निराकार, असीम और सर्वव्यापक है। वह किसी एक धर्म, जाति या देश तक सीमित नहीं, बल्कि हर जीव के भीतर विद्यमान है। उन्होंने कहा कि ईश्वर को मंदिर, मस्जिद या किसी बाहरी रूप में नहीं, बल्कि अपने हृदय में खोजो। जब मनुष्य यह समझ लेता है कि सबमें वही एक परमात्मा है, तो भेदभाव, घृणा और अहंकार मिट जाते हैं। यह उपदेश मानवता को एकता, प्रेम और समानता के पथ पर ले जाने वाला दिव्य संदेश बना।

    नाम जपना- ईश्वर का स्मरण

    गुरु नानक देव जी ने “नाम जपना” को जीवन की सबसे पवित्र साधना बताया। इसका अर्थ केवल जिह्वा से ईश्वर का नाम लेना नहीं, बल्कि हृदय से उस परम सत्ता का अनुभव करना है। जब मनुष्य हर कार्य में प्रभु को याद रखता है, तो उसका मन पवित्र और शांत रहता है। यह स्मरण व्यक्ति के भीतर करुणा, प्रेम और विनम्रता को जन्म देता है। नाम जपना के माध्यम से गुरु नानक देव जी ने सिखाया कि सच्चा आनंद और मुक्ति बाहरी सुखों में नहीं, बल्कि ईश्वर की उपस्थिति को हर क्षण महसूस करने में है।

    किरत करना- ईमानदारी से जीवन यापन

    गुरु नानक देव जी ने सिखाया कि “कर्म ही पूजा है” और सच्ची भक्ति वही है जो ईमानदार श्रम से जुड़ी हो। उन्होंने बताया कि बिना परिश्रम के प्राप्त वस्तु टिकती नहीं और न ही आत्मिक शांति देती है। किरत करना का अर्थ है ईमानदारी, निष्ठा और न्याय के साथ अपनी जीविका अर्जित करना। गुरु जी ने लोगों को सिखाया कि दूसरों का हक छीने बिना, सच्चे मन से मेहनत करो और अपने कर्मों से ही ईश्वर की आराधना करो। यह उपदेश जीवन में आत्मसम्मान, आत्मनिर्भरता और संतोष का आधार बन गया।

    वंड छकना- बांटने की भावना

    गुरु नानक देव जी ने “वंड छकना” का संदेश देकर निस्वार्थता और साझेदारी की भावना जगाई। उन्होंने कहा कि ईश्वर की कृपा उसी पर बरसती है जो अपनी कमाई में से जरूरतमंदों के साथ बांटता है। यह केवल दान नहीं, बल्कि प्रेम और समानता की भावना है। गुरु जी ने सिखाया कि जब व्यक्ति अपने धन, भोजन या समय का कुछ अंश दूसरों की सेवा में लगाता है, तो उसका मन हल्का और आत्मा शांत होती है। यही भावना आगे चलकर “लंगर” परंपरा में परिवर्तित हुई, जो आज भी मानव एकता और करुणा का प्रतीक बनी हुई है।

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    लेखक: दिव्या गौतम, Astropatri.com अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए hello@astropatri.com पर संपर्क करें।