Jyeshtha Amavasya पर करें ये पाठ, पितृ होंगे प्रसन्न, मिलेगा सुख-समृद्धि का आशीर्वाद
धार्मिक दृष्टि से अमावस्या को खास महत्व दिया गया है। इस बार ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि 27 मई को है। साथ ही इस दिन पर शनि जयंती भी मनाई जाएगी। अमावस्या के दिन पितरों के लिए तर्पण दान और स्नान करने का भी विधान है। ऐसे में आप इस दिन पर पितरों की कृपा प्राप्ति के लिए ये पाठ कर सकते हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हर महीने में एक बार अमावस्या तिथि आती है, जो हिंदू धर्म की महत्वपूर्ण तिथियों में शामिल है। इस दिन पर स्नान, दान, जप, तर्पण, पिंडदान आदि कर्म करने से जातक को शुभ परिणाम मिलते हैं। ऐसे में आप ज्येष्ठ माह (Jyeshtha Amavasya 2025) पर पितरों की कृपा प्राप्ति के लिए शनि कवच और शनि स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं।
ज्येष्ठ अमावस्या का महत्व
ज्येष्ठ अमावस्या का धार्मिक महत्व होने के साथ-साथ ज्योतिषीय महत्व भी है। अमावस्या तिथि को पितरों को शांत करने के लिए श्रेष्ठ माना गया है। ज्येष्ठ अमावस्या के दिन आप विशेष अनुष्ठानों द्वारा पितृ दोष के साथ-साथ शनि दोष और कालसर्प योग आदि से भी मुक्ति मिल सकती है। इस तिथि पर ध्यान, मंत् और जाप करने से ग्रहों के अशुभ प्रभाव को भी शांत किया जा सकता है।
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पितृ कवच (Pitra Dosh Kavach)
कृणुष्व पाजः प्रसितिम् न पृथ्वीम् याही राजेव अमवान् इभेन।
तृष्वीम् अनु प्रसितिम् द्रूणानो अस्ता असि विध्य रक्षसः तपिष्ठैः॥
तव भ्रमासऽ आशुया पतन्त्यनु स्पृश धृषता शोशुचानः।
तपूंष्यग्ने जुह्वा पतंगान् सन्दितो विसृज विष्व-गुल्काः॥
प्रति स्पशो विसृज तूर्णितमो भवा पायु-र्विशोऽ अस्या अदब्धः।
यो ना दूरेऽ अघशंसो योऽ अन्त्यग्ने माकिष्टे व्यथिरा दधर्षीत्॥
उदग्ने तिष्ठ प्रत्या-तनुष्व न्यमित्रान् ऽओषतात् तिग्महेते।
यो नोऽ अरातिम् समिधान चक्रे नीचा तं धक्ष्यत सं न शुष्कम्॥
ऊर्ध्वो भव प्रति विध्याधि अस्मत् आविः कृणुष्व दैव्यान्यग्ने।
अव स्थिरा तनुहि यातु-जूनाम् जामिम् अजामिम् प्रमृणीहि शत्रून्।
अमावस्या का दिन पितरों की कृपा प्राप्ति के लिए बहुत ही खास माना जाता है। ऐसे में आप इस दिन पर पितृ कवच और पितृ स्तोत्र का पाठ करके पितरों की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
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पितृ स्तोत्र
अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम् ।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा ।
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् ।।
मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा ।
तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि ।।
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा ।
द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।
देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान् ।
अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि: ।।
प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च ।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि: ।।
नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ।।
सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा ।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ।।
अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम् ।
अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत: ।।
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तय:।
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण: ।।
तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस:।
नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज ।।
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