Kaal Bhairav Jayanti पर ग्रहों का महासंयोग, इस समय करें भगवान शिव की पूजा, चमक उठेगा सोया भाग्य
कालभैरव जयंती भगवान शिव के रौद्र रूप की स्मृति में मनाई जाती है, जो भय पर विजय और धर्म की रक्षा का प्रतीक है। वर्ष 2025 में यह पावन पर्व 12 नवंबर, बुधवार को पड़ेगा। इस दिन ब्रह्म योग, शुक्ल योग और आश्लेषा नक्षत्र जैसे अत्यंत शुभ संयोग बन रहे हैं, जो साधना, तांत्रिक उपासना और भैरव आराधना के लिए विशेष फलदायी हैं। बुधवार को अष्टमी तिथि का होना पूजा के फल को कई गुना बढ़ा देता है, जिससे यह दिन आध्यात्मिक शक्ति और भय से मुक्ति प्राप्त करने के लिए अत्यंत शुभ है।

Kaal Bhairav Jayanti पर क्या करें और क्या न करें?
दिव्या गौतम, एस्ट्रोपत्री। कालभैरव जयंती भगवान शिव के उस रौद्र रूप की स्मृति में मनाई जाती है, जब उन्होंने ब्रह्मा जी के अहंकार का नाश करने के लिए भैरव स्वरूप धारण किया था। यह दिवस केवल पूजा का नहीं, बल्कि भय पर विजय और धर्म की रक्षा का प्रतीक माना जाता है।

हर वर्ष यह पर्व अगहन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को आता है। वर्ष 2025 में यह पावन जयंती 12 नवंबर, बुधवार को मनाई जाएगी। इस दिन ब्रह्म योग, शुक्ल योग और आश्लेषा नक्षत्र जैसे शुभ संयोग बन रहे हैं, जो साधना, तांत्रिक उपासना और भैरव आराधना के लिए अत्यंत उत्तम माने गए हैं।
इस दिन बनने वाले योग
इस दिन का आरंभ शुक्ल योग से होगा, जो प्रातः 08:02 बजे तक रहेगा। शुक्ल योग मन की पवित्रता और सात्त्विक भावनाओं को प्रबल करता है। इसके बाद दिनभर ब्रह्म योग प्रभावी रहेगा, जो ज्ञान, साधना और मंत्र-सिद्धि के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। इसके अतिरिक्त, इस दिन बालव करण (10:57 बजे तक) और कौलव करण (10:58 बजे तक) रहेंगे दोनों ही पूजन और व्रत के आरंभ के लिए शुभ हैं।
इस कालभैरव जयंती पर अष्टमी तिथि, आश्लेषा नक्षत्र, शुक्ल योग, ब्रह्म योग और कौलव करण का दुर्लभ संगम बन रहा है। यह दिन भक्ति, साधना, और रक्षा-सिद्धि के लिए अत्यंत शुभ रहेगा। रात्रिकालीन समय में दीपदान, भैरव चालीसा, और कुत्तों को भोजन कराने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है।
शुक्ल योग और ब्रह्म योग का मिलन साधक को आध्यात्मिक शक्ति, आत्मसंयम और भय से मुक्ति प्रदान करता है। यह दिन केवल पूजा का नहीं, बल्कि अंधकार पर प्रकाश, भय पर निर्भयता और अज्ञान पर ज्ञान की विजय का प्रतीक है।
तिथि और पूजा का समय
इस वर्ष कालभैरव जयंती की अष्टमी तिथि 11 नवंबर की रात 11:08 बजे से शुरू होकर 12 नवंबर की रात 10:58 बजे तक रहेगी। यह संपूर्ण अवधि भगवान कालभैरव की आराधना के लिए अत्यंत पवित्र मानी गई है, विशेषकर रात्रिकाल में पूजा करने से भक्त को शीघ्र फल प्राप्त होता है।
अष्टमी तिथि तांत्रिक और गूढ़ साधनाओं के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है, क्योंकि इस दिन की ऊर्जा भैरव साधना से सीधा जुड़ाव रखती है। जब यह तिथि बुधवार को आती है, तो बुध की ग्रह-शक्ति भैरव उपासना के फल को कई गुना बढ़ा देती है, जिससे पूजा अत्यंत सिद्धिदायक बन जाती है।
नक्षत्र और ग्रह स्थिति
12 नवंबर को पूरे दिन आश्लेषा नक्षत्र का प्रभाव रहेगा, जो सायं 06:35 बजे तक सक्रिय रहेगा। यह नक्षत्र रहस्यमय साधना, भैरव उपासना और तांत्रिक सिद्धि के लिए अत्यंत अनुकूल माना जाता है। इस नक्षत्र के प्रभाव से साधक का मन अधिक केंद्रित, गंभीर और आध्यात्मिक हो जाता है।
यह नक्षत्र अंतर्ज्ञान को जागृत कर भक्ति को गहराई देता है। सायंकाल के बाद जब चंद्रमा सिंह राशि में प्रवेश करेंगे, तब शौर्य और आत्मविश्वास में वृद्धि होगी। तुला राशि में स्थित सूर्यदेव इस दिन संतुलन और विवेक का मार्ग दिखाते हैं, जिससे भक्ति और शक्ति दोनों का सुंदर संतुलन बनता है।
लेखक: दिव्या गौतम, Astropatri.com अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए hello@astropatri.com पर संपर्क करें।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।