सावन में हरि-हर की पूजा का विशेष संयोग, इस एक दिन के व्रत से पूरी होंगी मनोकामनाएं
सावन महीने में कामिका एकादशी का विशेष महत्व है जो भगवान शिव और विष्णु दोनों को समर्पित है। इस दिन भक्त हरि और हर की पूजा करके आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। यह एकादशी 21 जुलाई को मनाई जाएगी इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से सुख समृद्धि और मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित होता है। इसी महीने में एकादशी के दो व्रत भी रखे जाएंगे। कृष्ण पक्ष की एकादशी 21 जुलाई दिन सोमवार के दिन मनाई जाएगी।
सोमवार होने के कारण इस एकादशी का महत्व काफी अधिक होगा। कारण यह है कि सावन का सोमवार भोलेनाथ को समर्पित है, जबकि एकादशी की तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है।
इसी वजह से सावन की इस कामिका एकादशी के दिन हरि यानी भगवान विष्णु के साथ ही हर यानी भोलेनाथ की पूजा का विशेष संयोग बनेगा। कामदा एकादशी के लक्ष्मी-नारायण के साथ-साथ शिव-पार्वती की भी पूजा करें। इस दिन व्रत रखने से सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी।
कामिका एकादशी की तिथि
पंचांग के अनुसार, सावन महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 20 जुलाई को दोपहर 12 बजकर 12 मिनट से शुरू होगी। एकादशी की तिथि 21 जुलाई को सोमवार के दिन सुबह 9 बजकर 38 मिनट तक रहेगी। ऐसे में उदया तिथि को लेने की वजह से 21 जुलाई 2025 को कामिका एकादशी का व्रत किया जाएगा।
घर में आएगी सुख-समृद्धि
सोमवार को भोलेनाथ के भक्त शिवलिंग का अभिषेक करके उनकी प्रसन्नता के लिए भी व्रत रखेंगे। ऐसे में हरि-हर की पूजा का फल एक साथ मिलने से साधकों के जीवन में चल रही परेशानियों का अंत हो सकता है। उन्हें सुख, संपत्ति, सौभाग्य, धन-धान्य की प्राप्ति हो सकती है।
इस एकादशी के दिन व्रत रखकर भगवान शिव और भगवान विष्णु की पूजा एक साथ करने से घर में सुख-समृद्धि की वृद्धि होगी। इस दिन सच्चे मन से जो भी मनोकामनाएं की जाएंगे, वह जरूर पूरी होंगी।
कामिका एकादशी की ऐसे करें पूजा
- सुबह स्नान आदि दैनिक नित्य कर्म करने के बाद साफ-स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- एक चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर उस पर भगवान विष्णु की मूर्ति रखें।
- पीले फूल, फल, धूप, दीप, चंदन और नैवेद्य आदि अर्पित करके पूजा करें।
- भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें और फिर विष्णु जी की आरती करें।
- यदि कोई मनोकामना है, तो उसे सच्चे दिल से भगवान के सामने कहें।
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भगवान विष्णु का स्तुति मंत्र
शांताकारं भुजगशयनं, पद्मनाभं सुरेशं, विश्वाधारं गगनसदृशं, मेघवर्णं शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं, योगिभिर्ध्यानगम्यम्, वन्दे विष्णुं भवभयहरं, सर्वलोकैकनाथम्।।
इसका अर्थ है- जो शांत स्वरूप वाले हैं, जो आदिशेष सर्प पर विराजमान हैं, जिनकी नाभि पर कमल है और जो देवताओं के स्वामी हैं, जो ब्रह्मांड को धारण करते हैं, जो आकाश के समान असीम और अनंत हैं, जिनका रंग मेघ के समान नीला है और जिनका शरीर सुंदर और शुभ है। जो देवी लक्ष्मी के पति हैं, जिनके नेत्र कमल के समान हैं और जो ध्यान द्वारा योगियों को प्राप्त हो सकते हैं, उन विष्णु को नमस्कार है, जो संसार के भय को दूर करते हैं और जो समस्त लोकों के स्वामी हैं।
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