Mahabharata Story: धृतराष्ट्र की कौन-सी संतान युद्ध के बाद भी रही जीवित, जानिए उस कौरव की कथा
महाभारत ग्रंथ (Mahabharat Katha) में वर्णित कथा के अनुसार महर्षि वेदव्यास ने गांधारी को 100 पुत्रों का आशीर्वाद दिया था जिनका जन्म बड़े ही खास तरीके से हुआ था। महाभारत के युद्ध में गांधारी के सभी पुत्र मारे गए लेकिन क्या आप जानते हैं कि उसकी एक संतान ऐसी भी थी जो युद्ध के बाद भी जीवित रही चलिए जानते हैं उसके बारे में।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। महाभारत काल (Mahabharat Story) में ऐसी कई घटनाएं हुईं, जो व्यक्ति को आश्चर्य में डाल देती हैं। ऐसी ही कथा कौरवों के जन्म की भी है। आज हम आपको इकलौते ऐसे कौरव के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसने पांडवों की तरफ से युद्ध लड़ा था। चलिए जानते हैं उसकी कथा।
कौन-सा पुत्र रहा जीवित
महाभारत की एक कथा के अनुसार, युयुत्सु धृतराष्ट्र का पुत्र था, जिसने पांडवों की तरफ से युद्ध लड़ा था। वह असल में धृतराष्ट्र और गांधारी की दासी सुगाधा का पुत्र था, इस प्रकार वह कौरवों के सौतेला भाई था, लेकिन उसकी शिक्षा-दीक्षा अन्य कौरवों की तरह ही हुई थी। युयुत्सु धर्म का साथ देने वाला था, जिसने युधिष्ठिर के समझाने पर युद्ध में अंत में पांडवों का साथ दिया। साथ ही वह अकेला ऐसा कौरव था, जो महाभारत के युद्ध के बाद जीवित बचा था।
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गांधारी की थी एक बेटी
महाभारत में वर्णित कथा के अनुसार, गांधारी के 100 थे और एक पुत्री भी थी, जिसका नाम दुशाला था। दुशाला का विवाह राजा जयद्रथ से हुआ था। कथा के अनुसार, गांधारी को महर्षि वेदव्यास ने सौ पुत्रों की माता होने का वरदान दिया था। जब गांधारी गर्भवती हुई, तो उसने दो वर्ष तक गर्भ धारण किया। इसके बाद उसके पेट से एक लोहे के गोले के समान एक मांस पिंड निकला। इस स्थिति में उसने महर्षि वेदव्यास को याद किया और वह प्रकट हो गए।
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कैसै हुआ दुशाला का जन्म
तब वेदव्यास ने गांधारी को यह सुझाव दिया कि, इस मांस पिंड के 100 टुकड़े करो, लेकिन गांधारी से उसके 101 टुकड़े हो गए। तब इन टुकड़ों को अगल-अलग मिट्टी के घड़ों में रख दिया गया। कुछ समय बाद इन घड़ों से बच्चों का जन्म हुआ। 100 घड़ों से तो पुत्र प्राप्त हुए, लेकिन एक घड़े से पुत्री की उत्पत्ति हुई, जिसका नाम दुशाला रखा गया। इस प्रकार दुशाला गांधारी की वह संतान है, जो युद्ध के बाद भी जीवित रही।
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