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    Mahabharata Story: युधिष्ठिर के साथ कौन पहुंचा था स्वर्ग, अर्जुन या भीम नहीं है इसका जवाब

    Updated: Wed, 19 Feb 2025 03:37 PM (IST)

    युधिष्ठिर पांचों पांडवों का सबसे बड़ा भाई और महाभारत के मुख्य पात्रों में से एक है। उन्हें धर्मराज युधिष्ठिर भी कहा जाता है क्योंकि वह हमेशा धर्म और सत्य का साथ देते थे। इस कथा से काफी लोग परिचित होंगे कि पांचों भाइयों और द्रौपदी में से युधिष्ठिर ही स्वर्ग तक पहुंच पाए थे लेकिन क्या आप इसका कारण जानते हैं।

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    Mahabharata Story युधिष्ठिर को क्यां कहा जाता है धर्मराज?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। महाभारत काल (Mahabharat Katha) के युधिष्ठिर एक निष्काम धर्मात्मा थे। वह कुंती की संतान थे ते, जो उन्हें एक दिव्य वरदान के रूप में यमराज से प्राप्त हुए थे। धर्मराज को यमराज का ही स्वरूप माना जाता है, इसलिए वह धर्मराज युधिष्ठिर कहलाते हैं। ऐसे में चलिए जानते हैं कि आखिर महाभारत के युद्ध की समाप्ति के बाद युधिष्ठिर सहित अन्य पांडवों का क्या हुआ।

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    अंत में कौन रहा जीवित

    पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद पांचों भाई और द्रौपदी हिमालय की ओर स्वर्गारोहण के लिए निकल गए। स्वर्ग यात्रा के दौरान द्रौपदी समेत भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव का देहावसान (मृत्यु) हो गया। अंत में केवल युधिष्ठिर और एक कुत्ता, जो यमराज के दूत का स्वरूप था केवल वही जीवित बचे और स्वर्ग तक पहुंचने में सफल रहे।

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    स्वर्ग में मिली दिव्य देह

    जब युधिष्ठिर स्वर्ग के द्वार पर पहुंचे, तो वहां उनकी मुलाकात इंद्र देव से हुई। इंद्र ने युधिष्ठिर के सामने यह शर्त रखी कि तुम जीवित अवस्था में ही स्वर्ग में रह सकते हो, लेकिन इसके लिए तुम्हें इस कुत्ते को यहीं छोड़ना होगा।

    इसपर धर्मराज इंद्र देव से कहते हैं कि 'जिस स्वर्ग के लिए आश्रित शरणागत धर्म का त्याग करना पड़े, मुझे ऐसे स्वर्ग की कोई आवश्यकता नहीं है'। तब यमराज के दूत अपने असली रूप में आ गए और युधिष्ठिर ने शरीर के साथ ही स्वर्ग में प्रवेश किया। स्वर्ग में उन्हें एक दिव्य देह प्राप्त हुई। 

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    केवल धर्मराज ही क्यों पहुंचे स्वर्ग

    युधिष्ठिर के रूप में यमराज ने पूरे जीवन धर्म और सत्य को सर्वोपरि रखा था। उन्होंने अपने पूरे जीवन में केवल अच्छे कर्म किए थे और धर्म के मार्ग से नहीं भटके, जबकि अन्य पांडवों ने युद्ध जीतने के लिए सभी मांपदंडों को अपनाया था। यही कारण है कि सभी में से केवल युधिष्ठिर को ही मोक्ष मिला, अर्थात वह जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो गए । 

    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।