Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    जानते हैं कहां नीलकंठ बने थे शिवजी, विष पीने के बाद किस जगह पर बैठकर किया था ध्यान

    Updated: Thu, 17 Jul 2025 04:00 PM (IST)

    पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान निकले विष को भगवान शिव ने कंठ में धारण किया जिससे उनका गला नीला पड़ गया। विष के प्रभाव को कम करने के लिए वह हिमालय की ओर बढ़े और मणिकूट पर्वत पर नदियों के संगम के पास समाधि लगाई। देवताओं ने उनका जलाभिषेक किया।

    Hero Image
    यह जगह धार्मिक उत्साह, पौराणिक महत्व और खूबसूरत पहाड़ों से घिरी हुई है।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन की घटना के दौरान सबसे पहले हलाहल विष निकला था। यह पूरी सृष्टि को समाप्त कर सकता था। जन कल्याण के लिए भगवान भोलेनाथ ने इस विष को पीकर अपने कंठ में धारण कर लिया। मगर, विष के प्रभाव से शिवजी का गला नीला पड़ गया। 

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    विष पान की वजह से भोलेनाथ को अत्यधिक गर्मी लगने लगी। इससे बेचैन होकर वह शीतलता की खोज में हिमालय की तरफ बढ़ चले। मणिकूट पर्वत पर पंकजा और मधुमती नदी के संगम पर एक वृक्ष के नीचे वर्षों तक समाधि लगाकर बैठे रहे। 

    देवी-देवताओं ने शिवजी को शीतलता देने के लिए उनका जल से अभिषेक किया। इसके बाद उन्होंने अपनी आंखें खोली और कैलाश पर चले गए। वहां जाने से पहले इस जगह का नाम भोलेनाथ का नाम नीलकंठ रखा गया। इसी वजह से आज भी इस स्थान को नीलकंठ महादेव के नाम से जाना जाता है।

    वर्षों तक लगाई थी वृक्ष के नीचे समाधि

    जिस वृक्ष के नीचे भगवान शिव ने ध्यान लगाया था, वहां आज एक भव्य नक्काशीदार मंदिर बना है। अपनी आकाशीय आभा और पौराणिक महत्व को संजोय सदियों पुराने इस मंदिर में हर साल लाखों की संख्या में देशभर से भोले के भक्त दर्शन करने आते हैं। 

    ऋषिकेश से 12 किमी ऊपर पहाड़ों पर घने जंगलों से घिरी एक पहाड़ी पर इस विष को पिया था। आज उस जगह पर नीलकंठ महादेव के नाम से प्रसिद्ध मंदिर बना हुआ है। यह जगह धार्मिक उत्साह, पौराणिक महत्व और खूबसूरत पहाड़ों से घिरी हुई है। 

    यह भी पढ़ें- Sawan 2025: दक्षिण का कैलास है दूसरा ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन, शिखर दर्शन से नहीं होता पुनर्जन्म

    कैसे पहुंचे मंदिर तक 

    नीलकंठ महादेव मंदिर सुबह 5:00 बजे से दोपहर 1:00 बजे तक खुला रहता है। इसके बाद शाम 4:00 बजे से रात 9:00 बजे तक मंदिर के पट खुलते हैं। ऋषिकेश रेलवे स्टेशन इस मंदिर से करीब 36.8 किमी दूर है। 

    नजदीकी हवाई अड्डा देहरादून का जॉली ग्रांट एयर पोर्ट है, मंदिर से करीब 54 किमी दूर है। नजदीकी बस स्टॉप ऋषिकेश बस स्टैंड मंदिर से करीब 37.6 किमी दूर है। टैक्सी के जरिये करीब दो घंटे में मंदिर पहुंचा जा सकता है। ऋषिकेश से मंदिर जाने के लिए किराये पर स्कूटी और बाइक भी मिलती हैं। 

    यह भी पढ़ें- शादी में हो रही है देरी या नहीं मिल रहा है रिश्ता, हरियाली तीज को इन उपायों से जल्द बजेगी शहनाई

    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।