Pitru Paksha 2025: गयाजी में पिंडदान करना क्यों है जरुरी? जानें इसके पीछे के कारण
गयाजी में पिंडदान का विशेष महत्व है जहां पितृ पक्ष में पिंडदान (Pind Daan in Gaya) करने से पितरों को मोक्ष मिलता है। मान्यता है कि गयासुर राक्षस को भगवान विष्णु से वरदान मिला था जिसके कारण यहां पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और पितृ दोष से मुक्ति मिलती है तो आइए इससे जुड़ी प्रमुख बातों को विस्तार से जानते हैं।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली।Pitru Paksha 2025: गयाजी में पिंडदान का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि यहां पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष मिलता है और उनकी आत्मा को शांति मिलती है। यह एक ऐसा पवित्र स्थान है, जहां पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध कर्म करने से पितरों का आशीर्वाद मिलता है। इसी वजह से पितृ पक्ष में लाखों लोग अपने पूर्वजों का पिंडदान (Pind Daan in Gaya) करने के लिए गयाजी आते हैं, तो आइए इससे जुड़ी प्रमुख बातों को जानते हैं -
गयाजी में पिंडदान क्यों है जरूरी?
मोक्ष की प्राप्ति - हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि गयाजी में पिंडदान करने से पितरों को सीधे मोक्ष की प्राप्ति होती है। पुराणों के अनुसार, भगवान विष्णु ने गया में एक राक्षस, गयासुर, को वरदान दिया था कि जो भी व्यक्ति वहां श्राद्ध कर्म करेगा, उसके पितरों को मोक्ष मिलेगा।
फल्गु नदी का महत्व - गया में बहने वाली फल्गु नदी का भी विशेष धार्मिक महत्व है। पिंडदान के अनुष्ठान में इस नदी में स्नान और तर्पण जरूर करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि फल्गु नदी में पिंडदान करने से पितरों को सीधे स्वर्ग का मार्ग मिलता है।
विष्णु पद मंदिर - गया में स्थित विष्णु पद मंदिर में पिंडदान करने का खास महत्व है। इस मंदिर में भगवान विष्णु के चरण-चिह्न हैं। ऐसा माना जाता है कि यहां पिंडदान करने से पितरों के पैरों को मोक्ष मिलता है।
पितृ दोष से मुक्ति - कहा जाता है कि जिन लोगों की कुंडली में पितृ दोष का प्रभाव होता है, उन्हें गया में पिंडदान करने की सलाह दी जाती है। यह पिंडदान पितृ दोष को दूर करने में मदद करता है। इसके साथ ही इससे परिवार में सुख-समृद्धि आती है।
पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, गयासुर नामक एक राक्षस ने ब्रह्मा जी से वरदान मांगा था कि वह इतना पवित्र हो जाए कि लोग उसके दर्शन मात्र से पाप मुक्त हो जाएं। वरदान मिलने के बाद गयासुर ने लोगों को मोक्ष देना शुरू कर दिया। यमराज इससे चिंतित हो गए। तब उन्होंने देवताओं से सहायता मांगी।
देवताओं ने गयासुर के पास जाकर यज्ञ करने की इच्छा जताई। गयासुर इसके लिए तैयार हो गया और देवताओं को अपनी पीठ पर यज्ञ करने की अनुमति दी। जब देवताओं ने यज्ञ शुरू किया, तो गयासुर ने अपनी पीठ पर बोझ महसूस किया। ब्रह्मा जी ने गयासुर को यज्ञ पूरा होने तक न हिलने का आदेश दिया।
जब गयासुर ने हिलने की कोशिश की, तो ब्रह्मा जी ने उसके शरीर पर एक बड़ा पत्थर रख दिया, जिसे धर्मशिला कहा जाता है। इस पत्थर के नीचे गयासुर दब गया। प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने गयासुर को वरदान दिया कि यह स्थान गयाजी के नाम से जाना जाएगा और जो भी व्यक्ति यहां पिंडदान करेगा, उसके पितरों को मोक्ष मिलेगा। इसी वजह से गयाजी में पिंडदान को इतना महत्वपूर्ण माना जाता है।
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