Pradosh Vrat 2025: सोम प्रदोष व्रत पर इस विधि से करें महादेव की पूजा, यहां पढ़ें मंत्र और आरती
हर महीने में दो बार प्रदोष व्रत किया जाता है, जिसमें प्रदोष काल में महादेव की पूजा-अर्चना की जाती है। नवंबर का पहला प्रदोष आज यानी 3 नवंबर को किया जा रहा है। इस दिन शिव जी की विशेष रूप से पूजा-अर्चना करने से साधक को महादेव की कृपा मिलती है। चलिए पढ़ते हैं भगवान शिव की पूजा विधि, मंत्र और आरती।
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Som Pradosh Vrat 2025 (Background Picture Credit: Freepik)
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। प्रदोष व्रत को महादेव की कृपा प्राप्ति के लिए एक उत्तम दिन माना जाता है। सोमवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष को सोम प्रदोष (Som Pradosh Vrat 2025) व्रत के नाम से जाना जाता है। इस दिन प्रदोष काल में शिव जी की पूजा-अर्चना करने से साधक को जीवन में शुभ परिणाम मिलने लगते हैं।
शिव जी की पूजा विधि
- सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवितृ हो जाएं।
- मंदिर की साफ-सफाई कर गंगाजल का छिड़काव करें।
- एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर शिव जी और पार्वती माता की मूर्ति स्थापित करें।
- कच्चे दूध, गंगाजल, और शुद्ध जल से शिव जी का अभिषेक करें।
- पूजा में बेलपत्र, धतूरा और भांग आदि अर्पित करें।
- भोग के रूप में महादेव को मखाने की खीर, फल, हलवा आदि अर्पित कर सकते हैं।
- माता पार्वती को 16 शृंगार की सामग्री अर्पित करें।
- दीप जलाकर महादेव और माता पार्वती की आरती करें।
- पूजा समाप्त होने के बाद सभी लोगों में प्रसाद बांटें।
- शाम के समय शुभ मुहूर्त में पुनः इसी विधि से पूजा करें।
इस दिन पर पूजा का मुहूर्त कुछ इस प्रकार रहेगा - प्रदोष पूजा मुहूर्त - शाम 6 बजकर 3 मिनट से रात 8 बजकर 34 मिनट से

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भगवान शिव के मंत्र -
1. ॐ नमः शिवाय
2. ॐ नमो भगवते रूद्राय
3. ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात
4. ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्
5. कर्पूरगौरं करुणावतारं
संसारसारम् भुजगेन्द्रहारम् ।
सदावसन्तं हृदयारविन्दे
भवं भवानीसहितं नमामि
शिव जी की आरती (Shiv Ji Ki Aarti)
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखत त्रिभुवन जन मोहे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघंबर अंगे।
सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

(Picture Credit: Freepik) (AI Image)
कर के मध्य कमण्डल चक्र त्रिशूलधारी।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूरे का भोजन, भस्मी में वासा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥ स्वामी ओम जय शिव ओंकारा॥
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