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    Santan Saptami 2025: संतान सप्तमी पर करें इस चालीसा का पाठ, संतान से जुड़ी मुश्किलें होंगी दूर

    Updated: Thu, 28 Aug 2025 12:33 PM (IST)

    संतान सप्तमी व्रत (Santan Saptami 2025) संतान की सुख-समृद्धि और सुरक्षा के लिए किया जाता है। हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को महिलाएं अपनी संतान की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए यह व्रत रखती हैं और भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं।

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    Santan Saptami 2025: संतान सप्तमी पर करें ये काम।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। संतान सप्तमी व्रत बहुत शुभ माना गया है। यह संतान की सुख-समृद्धि और सुरक्षा के लिए रखा जाता है। यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को किया जाता है, जो इस साल 30 अगस्त, 2025 को पड़ रहा है। इस दिन महिलाएं अपनी संतान की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य के लिए व्रत रखती हैं और भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं।

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    वहीं, संतान से जुड़ी सभी मुश्किलों को दूर करने के लिए इस तिथि (Santan Saptami 2025) पर गणेश चालीसा का पाठ करना भी बहुत ही लाभकारी माना गया है, जो इस प्रकार है -

    ॥गणेश चालीसा॥

    ॥ दोहा ॥

    जय गणपति सदगुण सदन,कविवर बदन कृपाल।

    विघ्न हरण मंगल करण,जय जय गिरिजालाल॥

    ॥ चौपाई ॥

    जय जय जय गणपति गणराजू।

    मंगल भरण करण शुभः काजू॥

    जै गजबदन सदन सुखदाता।

    विश्व विनायका बुद्धि विधाता॥

    वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावना।

    तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन॥

    राजत मणि मुक्तन उर माला।

    स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला॥

    पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं।

    मोदक भोग सुगन्धित फूलं॥

    सुन्दर पीताम्बर तन साजित।

    चरण पादुका मुनि मन राजित॥

    धनि शिव सुवन षडानन भ्राता।

    गौरी लालन विश्व-विख्याता॥

    ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे।

    मुषक वाहन सोहत द्वारे॥

    कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी।

    अति शुची पावन मंगलकारी॥

    एक समय गिरिराज कुमारी।

    पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी॥

    भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा।

    तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा॥

    अतिथि जानी के गौरी सुखारी।

    बहुविधि सेवा करी तुम्हारी॥

    अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा।

    मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा॥

    मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला।

    बिना गर्भ धारण यहि काला॥

    गणनायक गुण ज्ञान निधाना।

    पूजित प्रथम रूप भगवाना॥

    अस कही अन्तर्धान रूप हवै।

    पालना पर बालक स्वरूप हवै॥

    बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना।

    लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना॥

    सकल मगन, सुखमंगल गावहिं।

    नाभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं॥

    शम्भु, उमा, बहुदान लुटावहिं।

    सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं॥

    लखि अति आनन्द मंगल साजा।

    देखन भी आये शनि राजा॥

    निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं।

    बालक, देखन चाहत नाहीं॥

    गिरिजा कछु मन भेद बढायो।

    उत्सव मोर, न शनि तुही भायो॥

    कहत लगे शनि, मन सकुचाई।

    का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई॥

    नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ।

    शनि सों बालक देखन कहयऊ॥

    पदतहिं शनि दृग कोण प्रकाशा।

    बालक सिर उड़ि गयो अकाशा॥

    गिरिजा गिरी विकल हवै धरणी।

    सो दुःख दशा गयो नहीं वरणी॥

    हाहाकार मच्यौ कैलाशा।

    शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा॥

    तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो।

    काटी चक्र सो गज सिर लाये॥

    बालक के धड़ ऊपर धारयो।

    प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो॥

    नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे।

    प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे॥

    बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा।

    पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा॥

    चले षडानन, भरमि भुलाई।

    रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई॥

    चरण मातु-पितु के धर लीन्हें।

    तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें॥

    धनि गणेश कही शिव हिये हरषे।

    नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे॥

    तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई।

    शेष सहसमुख सके न गाई॥

    मैं मतिहीन मलीन दुखारी।

    करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी॥

    भजत रामसुन्दर प्रभुदासा।

    जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा॥

    अब प्रभु दया दीना पर कीजै।

    अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै॥

    ।।दोहा।।

    श्री गणेश यह चालीसा,पाठ करै कर ध्यान।

    नित नव मंगल गृह बसै,लहे जगत सन्मान॥

    सम्बन्ध अपने सहस्र दश,ऋषि पंचमी दिनेश।

    पूरण चालीसा भयो,मंगल मूर्ती गणेश॥

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